◆ कोरोना काल मे प्रवासी मज़दूरों के लिए रोजगार का गहराता संकट
◆ जाने क्या हैं मजदूरों की समस्याएं और समाधान
◆ कौन हैं प्रवासी मजदूर
◆ श्रम कानून को किसने छेड़ा
◆ जाने क्या हैं वजह
युवा काफिला, भोपाल-
आज हमारे देश के विकास मे जो सबसे बड़ा भागीदार कहा जाता है वो ही आज काम का मोहताज बन गया है। यह देश की कहानी का ऐसा पन्ना है जो कभी पलटाया ही नहीं गया था। या यू कहे इनके तरफ ध्यान ही नहीं दिया गया, वर्तमान मे इन मजदूरों के साथ ऐसा क्या हो गया जिसकी वज़ह से उनको अपने गांव वापिस जाना पडा? इसपर हमने पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। न तो सरकारों ने, न आम नागरिक समाज ने इसकी चर्चा सही ढंग से की है।
कोविड-19 एक वैश्विक महामारी जिसकी वजह से इंडिया ही नहीं पूरे विश्व लॉकडाउन लग गया है। जिससे करोडों की तादाद मे मज़दूरों के काम प्रभावित हुए जिसमे संगठित और असंगठित क्षेत्र दोनों आते है। अधिकतर श्रमिक गांव से शहर की ओर आते है जो शिक्षा के अभाव मे पढ़ नही पाते और बेरोजगारी के दलदल मे फस जाते है और काम की तलाश मे महानगरो की ओर पलायन कर जाते है। फिर उन्ही शहरों मे रहकर अपनी रोजी रोटी कमाते और जीविकोपार्जन करते है। लेकिन वर्तमान समय मे महामारी की वज़ह से हर सेक्टर बंद हो चुके है और उनकी आमदनी ना होने की वज़ह से उनके पास ना खाने के लिए उचित खाद्य सामग्री है और नया ही किराया देने के लिए पैसे है। इस वज़ह से उन्हें अपने गांव की तरफ वापस लौट जाना पड़ा।
प्रवासी मज़दूर
प्रवासी श्रमिक आमतौर पर उस देश या क्षेत्र में स्थायी रूप से रहने का इरादा नहीं रखते हैं जिसमें वे काम करते है यह जो प्रवासी हैं वह अंतर्देशीय, अंतरप्रांतीय और एक ही प्रांत में हो सकते हैं और जो अपने देश के बाहर काम करने वाले चले गए उन प्रवासी श्रमिकों को विदेशी श्रमिक भी कहा जाता है।
असंगठित क्षेत्र
प्रवासी मज़दूरों के बारे मे सही आंकड़े न होने की वज़ह से इनके विकास मे एक बड़ी बाधा आ रही है। हालांकि सरकार ने आंकड़े इकट्ठे करने की कोशिश की है, लेकिन उनको सही जानकारी नही मिल पायी है। करोड़ों की संख्या मे मज़दूर अपने अपने गांव लौट गए हैं। स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की आधी आबादी शहरों में रहने लगी है। भारत की जनगणना सन् 2011 के अनुसार भारत में आन्तरिक प्रवासी मज़दूरों की संख्या एक सौ उनतालीस मिलियन है। जिसमें ज्यादर प्रवासी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, बंगाल, झारखण्ड, उत्तराखंड, से आते है एवं दिल्ली, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश तमिलनाडु, गुजरात एवं केरल को जाते हैं भारत मे 50 करोड़ आंतरिक प्रवासी है जिसमे से 30% मजदूर है रिपोर्ट के अनुसार भारत के सबसे अधिक 1.75 करोड़ प्रवासी विदेशो मे कार्यरत हैं।
संगठित क्षेत्र
वे क्षेत्र जो सरकार द्वारा पंजीकृत होते है और उन्हे सरकारी नियमों एवं विनियमों का अनुपालन करना होता है। इन नियमों एवं विनियमों का अनेक विधियों जैसे - कारखाना अधिनियम,न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, सेवानुदान अधिनियम, दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम, इत्यादि में उल्लेख किया गया है। रेलवे ,स्वास्थ्य ,प्राइवेट कंपनी आदि इसमें सम्मिलित है। ये वे क्षेत्र हैं जो सरकार द्वारा पंजीकृत होते है और उन्हे सरकारी नियमों एवं विनियमों का अनुपालन करना होता है। इन नियमों एवं विनियमों का अनेक विधियों जैसे कारखाना अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, सेवानुदान अधिनियम, दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम,इत्यादि में उल्लेख किया गया है। रेलवे ,स्वास्थ्य ,प्राइवेट कंपनी आदि इसमें सम्मिलित है
असंगठित क्षेत्र
इनमे रोजगार की शर्तें तय नहीं होती हैं और नियमित रूप से, उद्यमों के साथ, सरकार के साथ पंजीकृत नहीं हैं। कई कार्य एक संगठित क्षेत्र जैसे कारखाना अधिनियम, बोनस अधिनियम, पीएफ अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, आदि पर लागू होते हैं जबकि असंगठित क्षेत्र किसी भी ऐसे कार्य द्वारा नियंत्रित नहीं है।
सेवा श्रेणी
इनको चार भागों में बाँटा गया है। व्यावसायिक श्रेणी में छोटे और सीमांत किसान, भूमिहीन खेतिहर मजदूर, पशुपालक, बीड़ी बनाने वाले श्रमिक, निर्माण और आधारभूत संरचनाओं में कार्यरत श्रमिक, बुनकर आदि योजना आयोग के बारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान आर्थिक सर्वेक्षण मे भारत मे 45.9 करोड़ के कुल कार्यबल मे 94%असंगठित क्षेत्र मे है व शेष 6% संघठित क्षेत्र मे है।
इन्हे कौन सी समस्याओ का सामना करना पड़ रहा है?
महामारी के दौरान औद्योगिक क्षेत्रों से कामगारोव श्रमिको का रिवर्स माइग्रेशन एक नई समस्या के रूप मे सामने आया लॉकडाउन की वज़ह से इनको बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा है।
1.स्वास्थ्य संबंधी खतरे
कोविड 19 की वज़ह से इनके काम बाधित हुआ ,घर मे रहने की सलाह दी गयी। इससे बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग और बार बार हाथो को धोने और सेनेटाइज करने की सलाह दी गयी। लेकिन मलिन बस्तियों मे छोटी जगह होने की वज़ह यहां ये फॉलो नही कर सकते। पानी ना होने की वज़ह से बार बार हाथ धोने मे और महंगे सेनेटाइजर लेने भी असमर्थ थे ।
काम बंद होने की वज़ह से किराया ना दे पाना और खाद्ययान वस्तुए ना होने की वज़ह से उनके सामने रोजी रोटी की समस्या भी आ खड़ी हुई है।
2.रोजगार की समस्या
गांव मे रह रहे लोगो को रोजगार का संकट पहले से था। लेकिन दुगने लोगो का गांव वापिस आने की वज़ह से रहने बसने की समस्या और मनरेगा मे पंजीयन ना होने की वज़ह से रोजगार जैसी बड़ी समस्या आ खड़ी हुई है।
3.शिक्षा से जुड़े मुद्दे
प्रवासी श्रमिकों के बच्चे अक्सर स्कूल को जा पाते हैं और अपने साथियों से पीछे हो जाते हैं। क्योंकि उन्हें परिवार के बाकी सदस्यों के साथ काम करना पड़ता है। बाल श्रम कानून आमतौर पर प्रवासी आबादी के बीच लागू नहीं होते हैं। इसलिए बच्चों के लिए कोई सुरक्षा नहीं है। यहां तक कि जब बच्चा कोई वास्तविक कार्य नहीं करता है, तो वह अपने माता-पिता के साथ नौकरी की जगह पर दिन बिता सकता है। क्योंकि कोई डे-केयर सेंटर उनके लिए नहीं है। परिवारों को रोजगार के अनुसार चलना पड़ता है, जिससे बच्चों को स्कूल में रहना मुश्किल हो जाता है।
4.घरेलू समस्या
रोजगार ना होने की वज़ह से मानसिक संतुलन बिगड़ना ,घरेलू हिंसा जैसी समस्या बहुत बढ़ गयी है।
सरकार की पहल और चुनौतियाँ
असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के लिये कई अन्य रोज़गार सृजन/सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को सरकार लागू कर रही है, जैसे स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोज़गार योजना, स्वर्ण जयंती शहरी रोज़गार योजना, प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम, मनरेगा, हथकरघा बुनकर योजना, हस्तशिल्प कारीगर व्यापक कल्याण योजनाएँ, मछुआरों के कल्याण के लिये राष्ट्रीय योजना, प्रशिक्षण और विस्तार, जननी सुरक्षा योजना, राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना आदि। इसके अलावा आत्म निर्भर अभियान जिसमे प्रोत्साहन पैकेज के रूप मे 40000 करोड़ मनरेगा फण्ड जारी किया गया है ताकि उनको अपने क्षेत्रमे काम मिल सके ।
रोजगार मुहैया कराने के लिए एक नयी पहल स्टार्ट की गई है। इसमे रोजगार सेवा योजना कार्यालय मे हुनरमंद कारीगर सेवा मित्र पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराया जा रहा है। इसके तहत उनकी मज़दूरी निश्चित रहेगी और भुगतान मे कोई विवादस्पद स्थिति नहीं होंगी।
हलाकि सरकार की ये योजनाए कोविड-19 के पहले से ही चल रही और कुछ वर्तमान मे स्टार्ट की गई हैं। लेकिन वर्तमान मे अभी नई चुनौतियाँ उनके सामने आयी हैं।
1. महानगरो से मज़दूरों के वापिस आने से संगठित क्षेत्र व असंगठित क्षेत्र मे कार्यबल काम हो गया है। इससे अर्थवयवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा जिसके लिए सरकार को नये उपाय करना होगा।
2. यदि श्रमिक वापिस नही आते तो उनको लाने के लिए सरकार को उनकी मांगे पूरी करनी होंगी।
3.गांव मे उनके लिए रोजगार मुहैया करना होगा ।
4 असंगठित श्रम के क्षेत्र में कई तरह के कार्य और व्यवसाय होने के कारण उनकी सुरक्षा के लिये उन्हें चिन्हित करना सबसे बड़ी चुनौती है।
श्रम क़ानून मे बदलाव
श्रम क़ानून किसी राज्य द्वारा निर्मित उन क़ानूनो को कहते है जो श्रमिक रोजगार प्रदाताओ ,ट्रेड यूनियनो तथा सरकार के बिच संबंधो को परिभाषित करती है। लॉकडाउन की वज़ह से उद्योग धंधे बंद हो चुके है। इससे देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरीके से चरमरा गई है। इससे उबरने के लिए अर्थव्यवस्था मे सुधार लाने के लिए राज्य सरकार ने कुछ बदलाव श्रम क़ानून मे किये जिसका विरोध बहुत से राज्यों ने किया इसके बावजूद ये 6 राज्यों मे लागु की गयी।
विरोध की वज़ह
कामगारो को यह डर है की उद्योगो की जाँच व निरिक्षण ना होने से उनका शोषण होगा। श्रमिक यूनियनो को मान्यता ना मिलने से मज़दूरों के अधिकारो की अनदेखी होंगी। पहले प्रावधान था की जिन उद्योग मे 100 या ज्यादा मज़दूर है उसे बंद करने से पहले श्रमिको का मत सुनना होगा लेकिन अब ऐसा नहीं है।
सुझाव
1. जो प्रवासी गांव की तरफ पलायन कर चुके है उनका पंजीयन करवाना ताकि वो सरकारी योजनाओं का लाभ ले सके।
2. असंगठित छेत्र के कामगारो के लिए भी स्वास्थ्य बीमा,पेंशन दुर्घटना जैसी सुविधाएं उपलब्ध करायी जानी चाइये और एक तय वेतन उन्हें निश्चित रूप से मिलना चाहिए ।
3. पारम्परिक उद्योग को बढ़ावा देना चाहिए जिसमे पशु पालन ,मछली पालन ,फूलो की खेती ,कुटीर उद्योग ,हथकरघा उद्योग आदि ।
4. अधिक से अधिक ग्रामीण छेत्रो मे निवेश करना और उनकी बुनियादी व्यवस्था पर काम करना ताकि गांव की अर्थवयवस्था पटरी पर आ सके और लोगो को आसानी से रोजगार मुहैया कराया जा सके।
5. एक राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार करना चाहिए जिसमे उन मज़दूरों के बारे मे जानकारी इकट्ठी की जा सके जो कि दूसरे राज्यों मे जाकर काम करने लगे हैं ।
6. मनरेगा को गाँवों तक सीमित ना रख के कुछ शहरों में इसका विस्तार करना चाहिए. इतना ही नहीं शहरों के लिए मनरेगा जैसा एक शहरी रोजगार गांरटी स्कीम की शुरूआत करना अब बेहद जरूरी है।
7.इसके लिये व्यापक कानून बनाना होगा, जो असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के लिये न्यूनतम सुरक्षा तथा कल्याण के प्रावधान सुनिश्चित करे।
कोविड 19 महामारी के दौरान श्रमिको को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पढ़ रहा है । इससे सरकार की नाकामी साफ नजर आती है। लेकिन अब इस मजदूर वर्ग की सहायता के लिए नये नये प्रयासों के साथ मूलभूत सुविधा से जुडी वर्तमान योजनाओं को मज़बूत बनाने का प्रयास करना चाहिए ।
विचारक : अर्चना मरकाम
B.Tech. (Civil Engineer)
भोपाल (म.प्र.)