स्मृति दिन/ वर्तमान परिपेक्ष्य में मसीहा बिरसा मुंडा

◆ क्रांतिकारी आंदोलन के सचेतक


◆ क्यों चल पड़ा एकला चलो का रेला


◆ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ा गोरिल्ला युद्ध


◆ क्यों नहीं मिला आदिवासी वीरों को इतिहास में स्थान


युवा काफिला, भोपाल-


बिरसा मुंडा एक ऐसे जननायक थे जिन्होंने अपने क्रांतिकारी चिंतन एवं कार्यशैली से आदिवासी समाज की दशा एवं दिशा बदलकर एक नए सामाजिक युग की नींव रखी। उनके स्वाभिमान और वीरता से न केवल आदिवासी समाज का बल्कि संपूर्ण देश का गौरव अभिमान महसूस करता है ।अंग्रेजों को बिना आधुनिक हथियार के ललकारने से उन्हें यह अहसास हो गया कि ब्रिटिश हुकूमत का अवसान प्रारंभ हो गया है।


आदिवासी वीरों को इतिहास में स्थान नहीं दिया गया जबकि यह अटल सत्य है कि अनगिनत जननायकों ने आजादी के लिए अपना बलिदान दिया । आज हमारा यह कर्तव्य है कि हम उनके गौरवपूर्ण संघर्ष को जीवित करें और अपने समाज के लोगों को इससे अवगत कराएं ।


वर्तमान में विभिन्न स्थानों और राज्यों में कई समूह एवं नेतृत्व उभर कर आए हैं किंतु यह स्थानीय स्तर समूह जाति तथा भाषा की क्षेत्रीयता में सिमट के नजर आते हैं । ज्यादातर समूह एकला चलो की नीति पर चल रहे हैं अथवा अपने आप में श्रेष्ठ होने का दंभ भर रहे हैं । अब आवश्यकता है सारे समूह को राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट करके नेतृत्व और दिशा में एक लक्ष्य लेकर आदिवासी समुदाय को दिशा देने की ताकि अपने अधिकारों को समझकर उन्हें वे प्राप्त कर सके। बिरसा मुंडा ने जल-जंगल-जमीन के लिए संघर्ष किया और अपने जीवन काल में काफी हद तक सफल हुए। साथ में समाज को यह दिशा दिखा गए कि संगठन क्रांति संघर्ष दूरदर्शिता के साथ-साथ आंदोलन से ब्रिटिश शासन सामंतवादी व्यवस्था, जमींदार और जमींदारों के अस्तित्व की बुनियाद हिल सकती है।


      आज आदिवासी समाज पुनः शोषण - विस्थापन एवं अन्याय के चौराहे पर खड़ा प्रतीत होता है । इन समस्याओं के समाधान के लिए अपनी अस्मिता वजूद की रक्षा करनी होगी। ताकि जल-जंगल-जमीन के संवर्धन के लिए संवैधानिक अधिकारों को प्राप्त किया जा सके। 


हम सभी जनजातियों को एक सूत्र एक मंच पर और सामूहिक विचार करके सामूहिक संघर्ष करने की आवश्यकता है तभी तो राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक आजादी मिल पाएगी इन सामयिक और गंभीर विषय पर चिंतन मंथन और कार्य करने की आवश्यकता है । तभी बिरसा को उलगुलान की सार्थकता पूर्ण होगी और यह हमारी उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी । बिरसा के आंदोलन ने CNT एक्ट की नींव रखी और SPT ऐक्ट में संशोधन हुए। 


आज सभी संगठित होकर संविधान प्रदत्त पांचवी और छठी अनुसूची का प्रावधान लागू करा सके तो यह समाज के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।


क्या है CNT ऐक्ट और उसमें हुआ संशोधन?


CNT का पूरा नाम है छोटाना टेनेंसी ऐक्ट 1908।


इस एक्ट के तहत आदिवासी समुदाय की ज़मीन को किसी गैर आदिवासी को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है। ये एक्ट उत्तरी छोटानागपुर, दक्षिणी छोटानागपुर और पलामू डिविजन में लागू है। जब से ये ऐक्ट बना है, तब से 1995 तक इसमें 26 बार संशोधन हो चुका है। 27वां संशोधन नवंबर 2016 में हुआ है। इस ऐक्ट की खासियत ये है कि इसे अदालत में चैलेंज नहीं किया जा सकता है। सिर्फ संसद ही इसमें बदलाव कर सकती है। लेकिन झारखंड राज्य सरकार ने नवंबर 2016 में विधानसभा में एक संशोधन विधेयक पेश किया। इसका आदिवासी समुदाय ने खूब विरोध किया और इसके लिए सड़कों पर उतरे।


क्या है SPT एक्ट


एसपीटी ऐक्ट का पूरा नाम है संथाल परगना लैंड टेनेंसी 1949


इसको 1949 में लागू किया गया । इस एक्ट के तहत किसी भी आदिवासी जमीन को किसी गैर आदिवासी को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता था। इसका मकसद था कि इस व्यवस्था के जरिए आदिवासियों के असंतोष को नियंत्रित किया जा सके। इसके तहत कोई भी आदिवासी अपनी ज़मीन का टुकड़ा न तो बेच सकता है, न ही किसी को गिफ्ट दे सकता है और न ही किसी को लीज़ पर दे सकता है। लेकिन 2016 में सरकार ने इसमें संशोधन किया था। 


लेखक - भगत साहब स्वतंत्र विचारक हैं।