◆ जाने सदगुरु कबीर के जीवन रहस्य
◆ जाने उनके गुरु का रहस्य
◆ उनका देहांत 51-52 वर्ष में ही हुआ तो किसने बनाया उनके बुढ़ापे का चित्र
◆ मध्यकाल के कवि क्यों करते हैं कबीर का गुणगान
◆ क्या भक्तिकाल का आंदोलन भक्ति का था?
युवा काफिला, भोपाल-
सदगुुुरु कबीर का जन्म 1398 ई. में हुआ था । जब कबीर की मृत्यु हुई तब उनकी आयु 51-52 साल की थीं अर्थात उनकी मृत्यु सामान्य नहीं थीं, आकस्मिक थीं। आर्केलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया (न्यू सीरीज) नार्थ वेस्टर्न प्राविसेज भाग-2, पृ-224 पर अंकित हैं कि कबीर का रौजा ( मकबरा, समाधी) 1450 ई. में बस्ती जिले के पूर्व में आमी नदी के दाहिने तट पर बिजली खां ने स्थापित किया था। रौजे की पुष्टि आईना-ए-अकबरी भी करता हैं। अर्थात 1450 ई. से पहले कबीर की मृत्यु हो चुकी थीं। ऐसे में प्रश्न स्वाभाविक हैं कि उनकी मृत्यु सामान्य नहीं थीं अर्थात आकस्मिक थीं ।
मृत्यु के रहस्य से पर्दा उठे
अब समय आ गया हैं कि कबीर की आकस्मिक मृत्यु का रहस्य खुलना चाहिए और इसका भी भेद खुलना चाहिए कि उनके बूढ़े चित्रों का चित्रकार आखिर कौन हैं?
यह भी पता चले कि उनके 120 वर्षो तक जीवित रहने की कल्पना पहली बार किसने की?
आखिर कौन वो शख्स हैं जिसने सिकंदर लोदी के अत्याचारों से कबीर को पहली बार जोड़ा और उसने ऐसा क्यों किया? जबकि सिकंदर लोदी तो कबीर की मृत्यु के 38 वर्षो बाद गद्दी पर बैठा था।
हिंदी जगत में कबीर
हिंदी जगत की पहली शोक-कविता कवि रैदास ने लिखी और कबीर हिन्दी के ऐसे पहले कवि हैं जिनकी मृत्यु पर हिंदी की पहली शोक-कविता लिखी गई।
निरगुन का गुन देखो आई।
देहि सहित कबीर सिधाई।।
मध्यकाल में कबीर का गुणगान
मध्यकाल के कवियों ने मीराबाई ने 1 बार, व्यास जी ने 2 बार,रैदास ने 3 बार वहीं दादूदयाल ने 10 बार कबीर का नाम आदर के साथ लिया हैं। जबकि तुलसीदास का नाम मध्यकाल के किसी कवि ने नहीं लिया हैं।
महाराष्ट्र के कवि तुकाराम, पंजाब के कवि नानक,मध्यप्रदेश के कवि धर्मादास, राजस्थान के कवि पीपाजी, हरियाणा के कवि गरीबदास और कर्नाटक के कवि सेन ने कबीर का नाम आदर पूर्वक लिया है, मगर तुलसीदास का नाम उनके गृह प्रांत उत्तर प्रदेश के किसी भी कवि ने नहीं लिया ऐसा क्यों?
मध्यकालीन फारसी के अनेक ग्रंथों आईने-ए-अकबरी,अकबर-अल-अख़्यार, दबिस्ताने मुजाहिब,खजिन, अतुल असफ़िया आदि में कबीर का नाम उल्लेख है मगर तुलसीदास का नाम भारतीय ग्रंथों की बात तो छोड़िए हिंदी के इतिहास के ग्रंथों में भी नहीं ऐसा क्यों?
तुलसीदास का नाम उल्लेख किस ग्रंथ में मिलता है वह भक्तमाल,252 वैष्णवन की वार्ता, गोसाई चरित, तुलसी चरित, घट रामायण,भविष्य पुराण आदि सभी की प्रामाणिकता संदिग्ध है तथा इसमें से अधिकांश अंग्रेजों के समय लिखे हैं उनमें तुलसी के संबंध में अनेक अलौकिक चमत्कार लिखे जैसे मुद्दों को जिला ना स्त्री को पुरुष बनाना, पत्थर को घास खिलाना,जन्मते ही राम- राम बोलना का होना और बत्तीसों दांत का होना।
ऐतिहासिक महामानव
संपूर्ण इतिहास में दो महापुरुष ऐसे दिखाई पड़ते हैं जिनके मरे हुए शरीर को भी अपनाने की होड़ लगी थी एक है बुद्ध, दूसरे कबीर ।
इधर मोरियो,मल्लो,शाक्यों, लिच्छवीयों में बुद्ध के पार्थिव देह को लेने के लिए होड़ लगी थी वैसे ही कबीर के शव को लेने के लिए हिंदू और मुसलमानों में होड़ मची थी।
ज्ञात इतिहास में ऐसी हो शायद ही किसी अन्य महापुरुष के शव को लेने के लिए होड़ मची है यह तो लोकप्रियता की पराकाष्ठा है।
क्या कबीर का आंदोलन भक्तिकाल था
कबीर का आंदोलन बौद्धिक विकास आंदोलन था ना कि भक्ति आंदोलन और ना ही लोग जागरण बल्कि मध्यकालीन सांचे में ढला हुआ "हाशिए के लोगों का आंदोलन था।"
कमाल के कवि तुलसीदास
तुलसीदास अकबर के समकालीन थे मगर अकबर कालीन किसी भी इतिहास और ऐतिहासिक ग्रंथों में इनको कोई नहीं जानता आखिर क्यों?
कबीर की रचनाओं में वास्तविकता
आखिर क्या कारण है कि कबीर की रचनाओं में ईश्वर नहीं बसते बल्कि गांव बसते हैं, गांव के किसान बसते हैं, किसानों के साथ कुम्हार, जुलाहा रंगरेज और दर्जी भी बसते हैं अर्थात निम्न वर्ग के कवियों का नाम कबीर क्यों लेते हैं, किसी ऊंची जाति के कवि का क्यों नहीं?
कबीर अपनी रचनाओं में धान की बुवाई निराई गुड़ाई कृषि फार्म से संबंधित पूरी प्रक्रिया का ही वर्णन क्यों करते हैं वे आंख के रोने को प्रखंड का पानी क्यों बताते हैं भाई कबीर के काव्य में कोलू हरणी टांग की ध्वनि आरा लेना छठी यारी जैसे शब्द कहां से आए हैं कबीर के इस नजरिए को समझने की सख्त आवश्यकता है।
कबीर के गुरु कौन थे ?
कबीर ने रामानंद का कहीं नाम ना तो लिया है और ना रामानंद ने कभी कबीर का नाम लिया है फिर भी साहित्य और ग्रंथों में ऐसा लिखा जाता है कि कबीर का जन्म रामानंद के आशीर्वाद से ही हुआ और बाद में आगे चलकर वे उनके गुरु बने।
वास्तविकता
रामानंद तो कबीर के जन्म लेने से 44 साल पहले ही मर चुके थे ( संदर्भ कबीर हिज बायोग्राफी डॉ मोहन सिंह 11-14)
आप सोच रहे होंगे कि कबीर अंधाधुन सभी धर्मों के खिलाफ मोर्चा खोलते हैं, लेकिन अब आप भ्रम में हैं कबीर ने तर्कवादी और विज्ञानवादी बौद्ध धर्म की निंदा कभी नहीं की और अपने पूरे साहित्य में कहीं ऐसा नहीं लिखा । कबीर अत्यंत जगे हुए और सधे हुए शब्दों के कवि थे ।
21वीं सदी में दलित सरोकार के लेखक जाने अनजाने मनु वादियों के कवियों के नाम ले लेते हैं परंतु कवि रैदास ने अपने पूरे साहित्य में जिन पांच कवियों के नाम लिए हैं उनमें कबीर (जुलाहा), नामदेव (दर्जी),त्रिलोचन (बनिया), सदन (कसाई) और सेन (नाई) है।
कबीर बुनकर थे इसलिए उन्होंने इडा और पिंगला नाड़ी को ताना भरनी बताया हैं-
काहे कै ताना, काहे कै भरनी, कवन तार से बीनी चदरिया।
इंगला पिंगला ताना भरनी, सुसमन तार से बीनी चदरिया।।
कबीर ने ईश्वर को याद जुलाहा या रंगरेज बताया है।
किसी के लिए नैना रतनार है, किसी के लिए छतनार हैं तो किसी के लिए नैना दलाल हैं ।
एक कबीर है जिनके लिए नैना रहंट है,खेती का औजार है,सिंचाई का साधन है।
नैना नीझर लाइया, रहंट बहै निस जाम।
किसी का ईश्वर किसी मंदिर में है, किसी का मस्जिद में तो किसी का कैलाश और काबा में यह कबीर है जिनका ईश्वर विद्रोही किसानों के गांव अर्थात मवास में रहता है-
ना मैं देवल ना में मसजिद, ना काबे कैलाश में ।
मैं तो रहौ सहर के बाहर, मेरी पुरी मवास में।।
किसी के ईश्वर राम हैं किसी के शिव है तो किसी के गणेश एक कबीर ही है जिनका इश्वर कुम्हार हैं, जुलाहा है तो रंगरेज भी हैं।
साहब है रंगरेज चूनर मोरी रंग डारि।
भयौ है झगरा भारी, संतो मोही पहचानो।।