◆ लॉक डाउन में प्रकृति का विकराल रूप
◆ महामारी से गंभीर मुद्दा हैं जलवायु परिवर्तन
◆ जलवायु परिवर्तन के कारण जंगली जानवर बेखौफ होकर गांव और शहरों की तरफ आ रहे हैं
◆ चक्रवाती तूफान अम्फान से पीड़ित है जनता
◆ मानव पृथ्वी का मालिक नहीं छोटा सा किराएदार है
युवा काफिला, भोपाल -
दोस्तों आज हम कोरोना वायरस के दौर में बहुत सारे खतरों का सामना कर रहे हैं। अभी-अभी बंगाल और उड़ीसा में एक भयानक चक्रवात आ चुका है जिसमें फिर से इन राज्यों का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है। एक तरफ कोरोनावायरस की महामारी चल रही है और दूसरी तरफ प्रकृति का विकराल रूप भी सामने आ रहा है। कोरोना महामारी के बीच हमने देखा है कि मनुष्य की सामाजिक आर्थिक गतिविधियां रुक जाने के कारण प्रकृति अपने मूल स्वरूप में लौटने लगी है। बहुत सारी नदियां अपने आप स्वच्छ हो गई बहुत सारे जंगली जानवर बेखौफ होकर गांव और शहरों की तरफ आने लगे हैं। अगर यह कहा जाए कि कोरोनावायरस ने हमारे सामने प्रकृति और प्राकृतिक संतुलन की एक नई बहस छेड़ दिया है तो यह कहना गलत नहीं होगा।
अभी जिस तरह के अनुमान लग रहे हैं इसमें साफ पता चल रहा है कोरोना के कारण हमारी जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाने वाली है। उधर जलवायु परिवर्तन जैसी समस्या को हम काफी लंबे समय से चल रहे हैं। यह दोनों बदलाव आपस में मिल जाने वाले हैं। आजकल भले ही हमारा ध्यान जलवायु समस्या से हट कर कोरोना वायरस में केंद्रित हो गया है लेकिन हम कई वर्षो से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से देख रहे है। भविष्य में जलवायु परिवर्तन के और भी भंयकर विकराल दृश्य स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगेंगे। एक उदाहरण अभी हमारे सामने आ खड़ा हुआ है, बंगाल में अभी जो चक्रवात चल रहा है वह जलवायु परिवर्तन की चेतावनी है।
यह कोरोनावायरस अपने आप में कई रूप में जलवायु और इकोलॉजी की बहस से जुड़ा हुआ है। हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी कोई अनजाना सा नगण्य सा वाइरस मानव जीवन के खिलाफ इतिहास का सबसे भयानक युद्ध आरंभ कर देगा। हमें इस कोरोनावायरस को भी प्राकृतिक आपदा ही मानना चाहिए। यह प्राकृतिक संतुलन के साथ इंसान द्वारा की गई छेड़छाड़ के परिणाम की तरह देखा जाना चाहिए। ऐसा नहीं है कि इस तरह की प्राकृतिक आपदा पहली बार आई है पहले भी हमें बहुत बार चेतावनी मिली है। कोरोना की महामारी आने से पहले भी बर्ड फ्लू, सार्स, इबोला इत्यादि चेतावनी हमें मिल चुकी है। यह कोरोनावायरस आपदा एक महामारी के रूप में आई है यह महामारी मानव को चेतावनी दे रही है कि मानव पृथ्वी का मालिक नहीं है एक छोटा सा किरायेदार है।
इस विराट पृथ्वी पर इंसान का जीवन प्रकृति के बड़े चक्र का बहुत छोटा सा अंश है। अगर मनुष्य प्रकृति पर नियंत्रण करके उसका शोषण करने की आदत से बाज नहीं आया तो उसका हश्र भी डायनासोरो की तरह होगा। पृथ्वी के इतिहास में लाखों साल पहले मनुष्य की तरह डायनासोरस का एकछत्र राज था। लेकिन प्रकृति ने उन्हें अपने आंगन से एकदम मिटा डाला। यही सब मनुष्य के साथ भी हो सकता है। हमारी वैज्ञानिक रिसर्च बताती हैं कि निश्चित ही मानव कोरोना वायरस महामारी से बच जायेगा परन्तु जलवायु परिवर्तन मानव अस्तित्व से जुड़ा कहीं अधिक गंभीर मुद्दा है। कई दशकों से जलवायु परिवर्तन के खतरों को कम करने का प्रयास चल रहे है पर सफलता प्राप्त नहीं हुई है।
मैं आप लोगो को कोरोना महामारी से पहले की मुख्य खबरों से अवगत करवाना चाहता हू। अखबारों, न्यूज़ चैनलों में खबर आती थी की ऑस्ट्रेलिया के जंगलो में भयानक आग लग गयी है करोडों जानवर जल के राख हो गए है। अमेजन जंगलों में आग यह वही जंगल है जिसे दुनिया का फेफडा कहा जाता हैं। पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है।
भारत और अन्य देश पर्यावरण को संतुलित करने के लिए बड़े बड़े शिखर सम्मेलन कर रहे थे। सोलह वर्ष की ग्रेटा थंबर्ग नाम की लड़की जलवायु को संतुलित करने के लिए आंदोलन कर रही थी दुनिया में चीख-चीख कर पूरी दुनिया को बता रही थी। परन्तु इतना सब होने के बाद भी हम ठोस कदम नहीं उठा पाए। फिर अचानक दुनिया में एक कोरोना वायरस को प्रवेश होता है और दुनिया लॉकडाउन मे चली जाती है। लॉकडाउन से पर्यावरण में बहुत ही सकारात्मक बदलाव नज़र आया जो सरकार करोडों धन ख़र्च करने के बाद भी सफल न हो पायी।
लॉक डाउन के कारण प्रकृति मे जो बदलाव आए हैं वे इस प्रकार से हैं:
1. वायु प्रदूषण का स्तर-
लॉकडाउन की वजह से औद्योगिक गतिविधियां रुक सी गई है। सड़कों पर यातायात भी रुक गया है, इसके कारण बहुत तेज़ गति से हवा शुद्ध हो रही है । हर वर्ष दुनिया में लाखों लोग वायु प्रदूषण से होने वाली गंभीर बीमारी से मर जाते है पर 2020 में यह संख्या बहुत कम है।
2. नदियों का साफ़ होना-
दुनिया भर में औद्योगिक कचरा अब नदियों और जिलों में कम फेंका जा रहा है, इससे उनका पानी साफ हो रहा है। भारत देश में नदियों की सफाई के लिए सरकार करोडों रुपए खर्च कर देती थी पर हमेशा ही असफल रही है। परन्तु आजकल लॉकडाउन ने कुछ ही दिन में गंगा यमुना जैसी नदियों को पवित्र कर दिया किनारे सुंदर हो गए है।
3. ओजोन परत में छिद्र का छोटा होना -
औद्योगिक एवं आवागमन से जुड़ी प्रक्रियाओं के कारण भयानक वायु प्रदूषण में ओजोन परत का बड़ा नुकसान कर दिया था। आजकल की तालाबंदी ने वायु प्रदूषण को बहुत कम कर दिया है इसके कारण ओजोन परत पर के छिद्र दुनियाभर में छोटे होने लगे हैं।
4. आसमान साफ नीला दिखाई दे रहा है -
शहरों के वातावरण में धुआँ और धूल कम हो जाने से विजिबिलिटी बढ़ गई है। शहरों में पहली बार लोगों ने नीला आसमान देखा है, रात में कई सारे सितारे अब तक नजर नहीं आते थे वो नजर आने लगे हैं।
5.जंगली जानवर निडर होकर बाहर निकल आए हैं-
अभी तक शहर की गतिविधियों और शोर-शराबे के कारण बहुत सारे जानवर जंगलों में दुबक गए थे। शोर-शराबा कम होने के कारण यह जंगली जानवर सड़क पर टहलते नज़र आ रहे है।
6.शहरों मे पक्षी नजर आ रहे हैं-
शहरों और गांवों के से कई तरह पक्षी गायब हो गए थे। आजकल शहरों में भी कई तरह की चिड़िया तितलियाँ और मधुमक्खियाँ वापस आ गयी है।
7. हवा हुई इतनी साफ जालंधर से दिख रही हिमाचल की वादियां
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इंसान की गतिविधियां अचानक थम जाने के कारण से जल जंगल और जमीन मंद मंद मुस्करा रही है। पशु पक्षी फल फूल रहे है यह सब चमत्कार लॉकडाउन की वजह से हुआ हैं। इसका एक गहरा मतलब यह भी है कि इस पृथ्वी पर जो हजारों जीव प्रजातियां हैं उनके जीवन को मनुष्य ने बहुत सीमित कर दिया था। मनुष्य नामक एक स्पीशीज के जीवन के थम जाने से बाकी स्पीशीज को दुबारा फलने फूलने का मौका मिल गया है। यह तालाबंदी हमें सिखाती है कि अगर हम इंसान अगर इसी तरह अपनी गतिविधियां सीमित ढंग से जारी रखें तो हम प्रकृति के संतुलन को सुधार सकते हैं।
मुझे ऐसा लगता है कि मनुष्य को लॉकडाउन की इस नई आदत को आगे भी कई रूपों में जिंदा रखना चाहिए। आज कोरोना के बीच जीवन जीते हुए हमें पता चल गया है कि जीवन जीने के लिए वास्तव में किन चीजों की जरूरत है। हमें यह भी पता चल गया है कि कौन सी गैरजरूरी चीज है। सिर्फ दिखावे और विलासिता के लिए इस्तेमाल की जाने वाली चीजों के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है। आज तालाबंदी के बीच हमारा जो जीवन गुजर रहा है उससे शिक्षा लेते हुए हमको न्यूनतम आवश्यक चीजों का इस्तेमाल करना सीखना चाहिए। इससे प्रकृति का संतुलन तेजी से पुनःस्थापित हो सकेगा।
तालाबंदी के अनुभव के आधार पर प्रकृति का संतुलन सुधारने के लिए मैं तेरह बिंदुओं के रूप मे कुछ जरूरी सुझाव देना चाहूँगा जो इस प्रकार से हैं:
1. दुनिया भर की सरकारों को तालाबंदी के इस अनुभव से शिक्षा लेकर नीति नियम बनाने चाहिए।
2. विलासिता पर आधारित जीवन शैली को नियंत्रित करना चाहिए।
3. आर्थिक और व्यवसायिक गतिविधियों को प्रकृति की चिंता करते हुए सीमित करना चाहिए।
4. सरकारों को नए नीति निर्देश जारी करने चाहिए जो प्रकृति के लिए फायदेमंद हों।
5. आम आदमियों को भी अपनी गतिविधियां सीमित करनी चाहिए। विलासिता और दिखावे की बजाय जीवन के लिए आवश्यक बुनियादी सामानों का इस्तेमाल करना सीखना चाहिए।
6. सप्ताह में या महीने में एक बार लॉक डाउन की तरह ही फिर से अपने घरों में इसी तरह समय गुजारना चाहिए।
7. अभी जिस तरह ऑनलाइन गतिविधियां चल रही है, इस प्रक्रिया और आदत को बढ़ाना चाहिए।
8. बहुत सारे काम जो कि इंटरनेट और कंप्यूटर के जरिए हो सकते हैं उनके लिए यात्रा करना बंद कर देना चाहिए।
9. बड़े-बड़े कारखानों को साल में कुछ दिनों या सप्ताह के लिए अपने सारे उत्पादन बंद कर देना चाहिए।
10. इन कारखानों को वही और उतनी ही चीजें उत्पादित करनी चाहिए जो मनुष्य के जीवन के लिए वास्तव में जरूरी हैं।
11. पूँजीपतियों और व्यापारियों को पैसा कमाने की भूख को नियंत्रित करना चाहिए।
12. दुनिया भर की सरकारों को अपने विकास की दर नापने के पैमानों को बदलना चाहिए।
13. सिर्फ आर्थिक तरक्की और जीडीपी के आंकड़ों पर पर जोर ना देकर पर्यावरण और वन्यजीवों की खुशहाली को भी विकास की परिभाषा में शामिल करना चाहिए।
पिछले कुछ सालों में जिस तरह से चक्रवात आ रहे हैं, और जिस तरीके से महामारी आ रही है, वे जलवायु परिवर्तन की सूचना दे रही हैं। हमारी आंखों के सामने यह सब बढ़ता जा रहा है। हम एक खतरनाक भविष्य की तरफ तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। हमें अपने आर्थिक विकास के साथ-साथ प्रकृति के संतुलन पर अब ज्यादा ध्यान देना होगा। किसी भी तरह का आर्थिक विकास तभी तक अच्छा है जब तक की पृथ्वी पर जीवन और प्रकृति का संतुलन बना रहे। अगर हम चक्रवात और महामारियो के साए में जीने लगेंगे तो आर्थिक विकास का लाभ भी नहीं उठा पाएंगे। इसलिए मैं जोर देकर कहना चाहता हूं कि हमें भविष्य में पर्यावरण पर पहले से ज्यादा ध्यान देना होगा। अगर हमने पर्यावरण को बचाने के लिए कुछ नहीं किया तो हमारी आने वाली पीढ़ी कभी माफ़ नहीं करेंगी।
विश्लेषण : पुरुषोत्तम धुर्वे
आप एक स्वतंत्र विचारक हैं।