संगठन की चलेगी/ कौन रहेगा मंत्री स्टाफ में संगठन करेगा तय

◆ मंत्रियों के यहां नियुक्त होंगे संघ की कार्यशालाओं में दीक्षित प्रशासनिक अधिकारी


◆ मंत्रियों के निजी स्टाफ में शामिल होने जोड़-तोड़ की राजनीति प्रारंभ


◆ अधिकारी/कर्मचारियों का संघम शरणम् गच्छामि


◆ मध्यप्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री सुहास भगत द्वारा दिए जा रहे हैं निर्देश



युवा काफिला, भोपाल- 
मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल विस्तार और विभाग वितरण के साथ ही मंत्रियों के निजी स्टाफ में शामिल होने की सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की भाग-दौड़ शुरू हो गई है । अधिकारी कर्मचारी मंत्रियों के निजी मित्रों, परिवारजनों के साथ साथ भाजपा के बड़े नेताओं और संघ पदाधिकारियों के शरणम् गच्छामि हो गये हैं । मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार के खिलाफ पूर्व में पनपी एंटी इंकंबेंसी के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ही एक बार मंत्रियों के निजी स्टाफ को बदलने के निर्देश दे दिए थे । इसके बावजूद मंत्रियों की निजी चाहतें पूरी करने वाले अधिकारी अंतिम दम तक मंत्रियों के स्टाफ में बने रहे। 
2018 में मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा सरकार के समय मंत्रियों की जी हुजूरी में रहने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों ने कांग्रेस के मंत्रियों का दामन थाम लिया । चार महीने पहले मध्यप्रदेश के राजनीतिक हालात फिर बदले और मंत्रियों के बंगलों पर दिखने वाले अधिकारी कर्मचारी भाजपा सरकार के मंत्रियों के आसपास दिखाई देने लगे । अभी अधिकांश मंत्रियों ने अपनी निजी पदस्थापना को लेकर सरकार को पत्र नहीं लिखा है । इसके पहले संगठन से मंत्रियों की निजी पदस्थापना को लेकर निर्देश दिए जाने लगे हैं । सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मंत्रियों को यह निर्देश मध्यप्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री सुहास भगत द्वारा दिए जा रहे हैं । इस बात की पुष्टि अप्रत्यक्ष तौर पर एक मंत्री कर भी गए । बताया जा रहा है कि मंत्रियों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा का अनुसरण करने वाले अधिकारियों को निजी स्टाफ में शामिल करने के निर्देश दिए जा रहे हैं । उक्त मंत्री का कहना था कि संगठन द्वारा यह निर्देश अधिकारियों और कर्मचारियों की विवादस्पद कार्यशैली और भ्रष्ट आचरण को लेकर आने वाली शिकायतों के मद्देनजर भी दी गई है ।भाजपा संगठन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मंशा हाल ही में कांग्रेस से भाजपा में आए राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक मंत्रियों की निजी पदस्थापना में अपने समर्थक अधिकारियों की तैनाती है ताकि सिंधिया समर्थकों पर भी लगाम कसने में कोई दिक्कत ना हो ।
गौरतलब है कि इस तरह का प्रयोग 1977 में भी हो चुका है लेकिन यह असफल रहा है ।
राजनैतिक हलकों में इसे प्रशासन के भगवाकरण का संकेत भी माना जा रहा है ।