जीवन शैली/ जीवन की लीला समाप्त करना आसान है लेकिन उसे जीना सुखद अनुभव: शादाब

◆ जाने शादाब ने जिया हुआ जिंदगी का एक-एक पल


◆ यह कहानी क्यों हैं खास


◆ आपको आयेगा पढ़कर जश्न सा मजा



युवा काफिला, भोपाल- 


लॉकडाउन के बाद
फिलहाल डिप्रेशन और आत्महत्या का दौर चल रहा लोगों को लगता है आत्महत्या एक आसान रास्ता है दर्द और तकलीफ से छुटकारा पाने का बस इसी बात से प्रेरित हो के कुछ लिखा है कृपा पढें और बताएं कितना सही हूँ मैं और क्या क्या सुझाव दे सकते हैं आप- 



जब छोटा था तो अक्सर अखबार में खबरें पढ़ता था कि किसी व्यक्ति ने डिप्रेशन की वजह से आत्महत्या कर ली । लगभग हर दूसरे दिन अखबार में खबर आ ही जाती थी। अक्सर दिमाग में सवाल आता था कि बड़े लोगों को आखिर क्या परेशानी होती है कि वो आत्महत्या कर लेते हैं जैसे-जैसे बड़ा हुआ सब समझ में आ गया सच कहूँ तो बड़े होना ही अपने आप में डिप्रेशन का सब से बड़ा कारण होता है । एक से बारा साल की उम्र आप अपनी ज़िंदगी के सब से बेहतरीन साल गुजारते है, फिर बारा साल की उम्र के बाद में आपकी ज़िंदगी में बदलाव आने लगते है और तो और कई शारीरिक बदलाव भी आते हैं । देखा जाये तो स्कूल कॉलेज ख़त्म होने के बाद आप एक नया जीवन पाते हैं। आप नई दुनिया में प्रवेश करते हैं जहाँ सब कुछ पहले से निश्चित है । कुछ ऐसे नियम कानून बनाये गए हैं जिनका आपको आँखों पर पट्टी बांधकर पालन करना है ।



जब आप और हम बच्चे थे तो बचपन में आप सीधा चलना ही नहीं सीख गए थे। पहले आप घुटनों पर चले, फिर लड़खड़ा कर गिरे, फिर आपने धीरे-धीरे चलना शुरू कर दिया। बचपन में आप जब गिरते भी गिरते थे,तो सब आपको सहारा देने के लिए मौजूद थे, हँसाते थे और आपका हौसला बढ़ाते थे लेकिन जब आप और हम आज गिरते हैं तो लोग सिर्फ हँसते है। बचपन में आपको गिरने के बाद उठने के कई मौके मिले, लेकिन इस जीवन में आपको ज्यादा मौके नहीं दिये जाते। जब आप अपने समाज और धर्म  के हिसाब से बनाई दुनिया में खुद को फिट नहीं कर पाते तो आपके ऊपर बेवकूफ या पागलपन का टैग लगा दिया जाता है। जब हम लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाते तो खुद को कमज़ोर मान लेते हैं , दूसरी बात अगर आप समाज से कई गुना अच्छा भी कर जाते हैं तो यह भी समाज को बर्दाश्त नहीं होता जिसकी वजह से अकेले पड़ जाते हैं। धीरे-धीरे डिप्रेशन आपको अपनी बाँहों में लपेट लेता है जिसके बाद हम उससे बाहर निकल ही नहीं पाते है । 



माना कभी-कभी कलम चलते-चलते रुक जाती लेकिन अब ये तो नहीं मान लिया जाना चाहिये कि वो चलेगी ही नहीं । माना कभी-कभी नए जूते पैर में काट लेते हैं, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि पैरों को ही काटकर फेंक दिया जाए या जूता ही फेंक दिया जाए। जब आप डिप्रेशन में होते हो तो आपको हर छोटी से छोटी परेशानी भी बड़ी लगने लगती है ।एक चींटी का काटना साँप के काटने के बराबर दर्द देता है। बिजली का चले जाने पर जैसे आँखे अंधी हो गई ऐसा प्रतीत होता हैं। अक्सर लोग कहते हैं बात करो समस्या का हल मिलेगा। अक्सर लोग जब डिप्रेशन में होते हैं तो किसी से मदद माँगने से घबराते हैं कारण बहुत साधारण है । आज भी बहुत बड़ी संख्या में लोगों को डिप्रेशन कोई बीमारी नहीं लगती । समय रहते अगर उनसे कोई मदद माँगता है तो वह सीधा यही कहने लगता है कि ये तो नाटक कर रहा है या फ़िर व्यक्ति को सिर्फ एक रास्ता दिखाई देता है वो भी खुद के जीवन को खत्म करने का जो के देखा जाए तो अच्छा रास्ता नहीं है। डिप्रेशन किसी को भी हो सकता है और किसी भी कारण से हो सकता है ।



किसी को पैसे के कारण, किसी को प्यार ना मिलने के कारण, रंग रूप के कारण तो कभी किसी को उनके सपने टूटने के कारण लेकिन मेरे हिसाब से अपने आप से आत्महत्या करना कहीं से भी अच्छा निर्णय नहीं होता। लोग कहते हैं कि आत्महत्या वह लोग करते हैं जो बुज़दिल होते हैं, लेकिन मैं नहीं मानता क्योंकि इंसान का सब से बड़ा डर मौत ही तो होता है जो लोग मौत से नहीं डरे वो किसी और से क्या डरेंगे लेकिन जो रास्ता वो चुनते हैं वो बेशक गलत तो होता है।
मैं कभी-कभी सोचता हूँ अगर मैं भी उन परिस्थितियों में होता जिसमें वो लोग फंसे से तो क्या मैं भी वही करता जो उन्होंने किया ? शायद नहीं कभी नहीं और मेरा नहीं क्यों है इसे समझने के लिए आपको कुुुछ वक़्त पीछे ले कर चलता हूँ।



कुछ सालो पहले की बात है अचानक एक दिन घर में बैठे-बैठे तबियत ख़राब हो गई। मोहल्ले के लोकल डॉक्टर को दिखाया लेकिन कोई उपचार नहीं हुआ । अंत में अस्पताल में गया रिपोर्ट देखने ने बाद डॉक्टर ने सीधा भर्ती कर लिया दवा शुरू कर दी बीमारी क्या थी आज तक नहीं पता लेकिन अस्पताल में रह कर पता लगा ज़िंदगी की क्या कीमत होती है एक नही दो नहीं पूरे एक हफ्ते के लिए मुझे हॉस्पिटल में भर्ती रहना पड़ा और वो एक हफ़्ता मेरी ज़िंदगी का सबसे बुरा हफ़्ता रहा। 24 घंटे ग्लूकोज की बोतल लगीं रहती थी, नज़र बोतल पर गड़ी रही थी कि आखिर कब बूँदों की टिप-टिप शाँत होगी। मेरे हालात यह थे कि ना चल सकता था और ना कहीं आ जा सकता था । एक हॉल था जिसमें लगभग 20 कमरे थे मेरा बेड बिल्कुल दरवाजे के पास था यानी कोई भी मरीज़ आता तो पहली नज़र मेरी ही पड़ती उन पर, जिसे देखकर हिम्मत टूटती जाती क्योंकि जब लोग दर्द से चिल्लाते थे तो मेरा दिल और घबराता था कि कहीं मैं भी तो इसी परिस्तिथि में नहीं चला जाऊँ। अस्पताल का माहौल कुछ ऐसा होता है मजबूत से मजबूत आदमी का दिमाग सुन्न हो जाता है । पूरे दिन में मुझे अगर किसी चीज़ से नफरत थी तो चार बजे से क्योंकि यह वो वक़्त था जब डॉक्टर रोज़ ब्लड सैंपल लेने पूरे स्टाफ के साथ आता।



दो दिन इतना बुरा हाल रहा कि जब डॉक्टर के हाथ में इंजेक्शन देखता तो इंजेक्शन देख कर ही दर्द का एहसास होने लगता यह मेरी ज़िंदगी का सबसे बुरा हफ़्ता था लेकिन उस हफ़्ते ने मेरी ज़िंदगी बदल कर रख दी।  मैंने यह देखा की एक हफ़्ते तक माँ मेरे साथ रही और पापा ने एक दिन भी काम से छुट्टी नहीं ली। यह सोच कर की कहीं एक दिन भी छुट्टी करने से पैसे कम ना पड़े दवा के लिये। उनकी तीन सेे चार महीने की तनख्वाह मेरे इलाज में वैसे ही उड़ चुकी थी घर में बाइक नहीं थी इसलिए घर से हॉस्पिटल कितनी ही बार माता-पिता को पैदल आना जाना पड़ता था। बहन ने वक़्त से पहले परिवार की जिम्मेदारी उठा ली थी। वह स्कूल जाने से पहले घर का खाना बना कर तैयार कर देती थी। लोग कहते हैं हम खाली हाथ आये हैं और खाली हाथ जाएँगे लेकिन एक बात ये भी कहूँगा की जब तक ज़िंदा हैं अपना काम तो ईमानदारी से कर सकते हैं। मैं भले ही कितनी बुरी परिस्थिति में फँस जाऊँ, भले ही कितना भी कमज़ोर हो जाऊँ लेकिन मैं आत्महत्या नहीं कर सकता क्योंकि मैं अपनी माँ, अपने पिता, अपनी  बहन की उस मेहनत को बर्बाद नहीं कर सकता । मैं उनकी उस नींद को व्यर्थ नहीं जाने दे सकता जो उन्होंने मेरी वजह से खोई है । मैं पिता की मेहनत और मां की थकान को व्यर्थ नहीं जाने दे सकता , बहन की चिंता को और नहीं बढ़ा सकता, मुझे यह बात मानने में कोई शर्म नहीं है मैं कमज़ोर हूं और मरने के बाद घर वाले दो दिन ही रोयेंगे लेकिन मैं उन्हें दो दिन के लिये भी क्यों रोने दूँ? एक और वक़्त आया था जब हौसला टूटा था। डिप्रेशन अपने शिखर पर था दिन भर चेहरे पर मुस्कान ओढ़ना और रात को अकेले अंधेरे कमरे में बिलख-बिलख कर रोना कारण नहीं बता सकता। एक बात तो ये भी सच है कि कभी अपने कुछ ऐसा कह जाते हैं जिसे वो उसे बहुत बड़ी बात नहीं मानते लेकिन वो बात बहुत भीतर तक घाव कर देती है लेकिन एक आदत मैंने अपनाई कि जिंदगी खुशी और गम से ही बनी है। जैसे काम अच्छा करने पर ताऱीफ को स्वीकार करते हैं वैसे ही गलती होने पर डाँट सुनने की भी हिम्मत होनी ही चाहिए। ज़िंदगी में मुझे एक बात ने बहुत प्रभावित किया है और वह यह है कि हम सब के अंदर भगवान होता है बस हमें उसे जगाना सीखना पड़ेगा । अगर हम अपने अंदर के भगवान की मदद लेंगे तो सम्भव ही नहीं है कि असफल होने के बाद आप टूट जाएँ क्योंकि जब जब आप टूटेंगे वो आपके अंदर का भगवान आपको संभाल लेगा। मैंने इस बात को स्वीकार किया है अगर एक बार आप अपने अंदर के भगवान को जगा लेते हैं तो आप कभी नहीं टूटेंगे । एक बात है कि अगर वो भगवान जाग गया तो वह आपको छोड़कर नहीं जाएगा क्योंकि वो भगवान कभी मरता ही नहीं क्योंकि इंसान भगवान को पैदा करने की शक्ति तो रखता है लेकिन खत्म करने की नही।



सच कहूँ तो हम सब एक ही नाव के मुसाफिर है यह कहानी सिर्फ मेरी नहीं सबकी है सभी कभी ना कभी ऐसी परिस्थिति से गुजरते हैं। लोग कहते हैं जितने रिश्ते बनायेंगे उतना रोना पड़ेगा, पर मैं कहता हूँ अगर ईमानदारी से निभाओगे तो मुस्कुराहट के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। जहाँ तक मैंने अनुभव किया है कि डिप्रेशन खुद आता है लेकिन अगर उसे चले जाने को कहोगे तो चला भी जाएगा। अगर आत्महत्या का विचार आये तो कभी लिख कर देखना के मरने से कितना पाओगे और कितना खो दोगे। आज के जमाने का इंटरनेटभरा पड़ा है दुनिया भर के तरीकों से कि कैसे डिप्रेशन से लड़े । वे जो लड़ नहीं पाते है उसे डिप्रेशन और अधिक गहराई पर ले जाता है क्योंकि ज्यादातर आर्टिकल्स में यही लिखा होता है कि डिप्रेशन जानलेवा है। यहाँ पर लोगों को पहली नकारात्मक सोच मिल जाती है डिप्रेशन का सबसे बड़ा कारण होता है तो वो चीज़ नहीं मिलना जिसे आप चाहते हो यार मेहनत करो अगर फिर भी ना मिले तो खुद से पूछो क्या तुम्हें वो चाहिए जैसे ही खुद से  पूछोगे खुद ब खुद उससे दूरी बना लोगे डिप्रेशन को खत्म करना मुश्किल नहीं है अगर मुझ जैसे कमज़ोर व्यक्ति कर सकता है तब आप तो फिर भी बहुत मजबूत हो ।


खुद से खुद की दूरी को मिटाना पड़ता है और खुद से लड़कर - खुद को हराना भी पड़ता है और खुद ही को जिताना भी पड़ता है।



               विचारक : शादाब खान


                स्थान:  देवास मध्यप्रदेश से