◆ खाली खजाने को सहेजने फिर कर्मचारियों का सहारा
◆रिटायरमेंट उम्र फिर घटाने पर विचार
◆ 62 से घटकर हो सकती है 60 में सेवानिवृत्ति
◆कर्मचारी हो सकते हैं लामबंद
युवा काफिला,भोपाल-
कर्जों के बोझ तले दबी मप्र सरकार एक बार फिर खाली खजाने को खंगालती नजर आ रही है। बुरे हालात से गुजर रही सरकार को एक बार फिर कर्मचारियों को अदा की जाने वाली एकमुश्त करोड़ी रकम की फिक्र सताने लगी है। इन हालात से निपटने के लिए सरकार ने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु को लेकर फिर बदलाव करने की तैयारी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री निवास से वल्लभ भवन तक दौड़ रही इस फाईल पर जल्दी ही सहमति का ठप्पा लगकर आदेश के रूप में सामने आ सकता है।
सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव से ऐन पहले सेवानिवृत्ति आयु में किए गए बदलाव पर एक बार फिर परिवर्तन के बादल मंडरा रहे हैं। रिटायरमेंट के लिए 60 के बदले की गई 62 की आयु को वापस लिए जाने की तैयारी है। इसके लिए मुख्यमंत्री निवास से फाईल दौड़ चुकी है और इससे होने वाले तमाम असर पर गहरी नजर दौड़ाई जा रही है। सूत्रों का कहना है कि इसके लिए तय किए गए शुरूआती मापदंडों को अगर स्वीकार किया गया तो यह मामला कर्मचारियों के लिए मुश्किल भरा हो सकता है। तय किया जा रहा है कि रिटायरमेंट की आयु कम करने के साथ कर्मचारियों को दिए जाने वाले अंतिम देयक की तारीख दो साल बाद की दी सकती है। अर्थात रिटायरमेंट 60 की उम्र में होगा, लेकिन कर्मचारियों को दिए जाने वाली राशि का भुगतान 62 की आयु में ही हो पाएगा।
सरकार की मुश्किलें बड़ी
सूत्रों का कहना है कि शिवराज सरकार के सामने फिलहाल तीन बड़ी मुश्किलें हैं। कर्मचारियों से जुड़ी इन तीनों स्थितियों में सरकार को हजारों करोड़ रुपए का भुगतान करना है। इसमें जीपीएफ की आखिरी किश्त, जुलाई माह में लगने वाला सालाना इंक्रीमेंट और इस साल होने वाली करीब 10 फीसदी कर्मचारियों को अदा किया जाने वाले अंतिम देयक की राशि शामिल हैं। इन सभी मदों को जोड़ा जाए तो राशि हजारों करोड़ में होगी। सूत्रों का कहना है कि कर्मचारियों को दिए जाने वाले भविष्य निधि राशि को फिलहाल रोका जा सकता है। जबकि जुलाई माह से लागू होने वाली वेतनवृद्घि को प्रदेश के खजाने के बुरे हालात का हवाला देकर टाला जा सकता है। इसके लिए उसके पास छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लिए गए निर्णय को आधार बनाया जा सकता है। गौरतलब है कि छग सरकार कोरोना के कारण बिगड़ी प्रदेश की वित्तीय स्थिति को आगे कर कर्मचारियों की वेतनवृत्ती से इंकार कर चुकी है। इधर इस साल रिटायर होने वाले कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति की आयु पुन: 60 की जा सकती है। साथ ही उनके अंतिम देयक अदा करने के लिए दो साल बाद देने की बात कही जा सकती है।
हो सकता है कर्मचारियों का विद्रोह
इंक्रीमेंट और एरियर की राशि के लिए सरकार द्वारा तैयार ड्राफ्ट पर कर्मचारी थोड़े विद्रोह के साथ खामोशी धारण कर भी लें, लेकिन अपनी जिंदगी की जमा पूंजी हासिल करने के लिए दो साल का इंतजार उनके लिए मुश्किल भरा हो सकता है। मुश्किल उन कर्मचारियों की है, जो इस राशि से अपनी अहम जिममेदारी निभाने की योजना बना कर बैठे हैं। बच्चो की शिक्षा, उनके विवाह या मकान बनाने के अपने ख्वाब पूरे करने के लिए उन्हें दो साल का इंतजार कतई मंजूर नहीं होगा। दो साल बाद बनने वाली सरकार की स्थिति पर यकीन करना भी उनके लिए मुश्किल भरा कहा जा सकता है। इधर सरकारी आवास में रह रहे कर्मचारियों को रिटायरमेंट के साथ ही मकान खाली करने की बंदिश भी इनके लिए मुश्किल का सबब बनेगी।
कर्मचारी बनते रहे सियासत की गेंद
तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार के अंतिम दिनों में जब खाली खजाने को सहेजने का मौका आया तो कर्मचारियों के रिटायरमेंट की उम्र 58 से बढ़ा कर 60 साल कर दी गई। ये फैसला लेकर दिग्विजय ने कर्मचारियों को अदा की जाने वाली कई सौ करोड़ रुपए की अदायगी से अपनी जान छुड़ा ली। दिग्विजय के इसी फार्मूले को शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने भी अपनाया और रिटायर हो रहे कर्मचारियों को अदा किए जाने वाले करीब 400 करोड़ रुपए बचाने की खातिर उनकी सेवानिवृत्ति आयु 60 से बढ़ाकर 62 साल कर दी थी।
इन बदलावो की लहर
जहां केंद्र ने रिटायरमेंट की उम्र 60 से घटाकर 58 करने की तैयारी की है, वहीं राज्य सरकार इसको 62 की बजाए 60 कर सकती है।
कर्मचारियों को अदा किए जाने वाले अंतिम देयक से बचने के लिए सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाकर 65 साल करने पर भी विचार।
सेवानिवृत्ति 60 साल में दी गई तो अंतिम देयक दो साल बाद 62 की आयु में अदा किए जाएंगे।
उपचुनाव को देखते हुए फिलहाल सभी विकल्पों पर गंभीर मंथन किया जा रहा है, ताकि इनका चुनाव पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े।