स्थल दर्शन / धमनार गुफाएं क्यों हैं खास? जाने कब,कहां और कैसे पहुंचे

◆ यह थीं शिक्षा का बड़ा केंद्र


◆ व्यापारियों के लिए थीं विशेष सुविधाएं


◆ जाने क्यों हैं खास धमनार बौद्ध गुफाएं


◆ मालवा राज्य की महारानी अहिल्या बाई ने किया था भ्रमण



युवा काफिला,मंदसौर- 


मध्यप्रदेश के मंदसौर जिलान्तर्गत शामगढ़ के समीप चन्दवासा (गरोठ) स्थित धमनार बौद्ध गुफाएं स्थापत्य कला पर थेरवाद और महायान बुद्धीज्म का प्रभाव है। यह गुफाये  पहाड़ियों को काट कर बनाए गयी है. धमनार मे लगभग 150 गुफाएं मिली हैं। इनमें 51 गुफाओं का संरक्षण ASI ने किया है।


धमनार गुफाएं भारत के मध्यप्रदेश राज्य के मंदसौर जिले में स्थित धम्मार गांव में स्थित गुफाएं हैं। यह पहाड़ी चंदन गिरी के नाम से जानी जाती थी। धमनार का वस्तुत प्राचीन नाम धम्मनगर था। लगभग यहां तीसरी शताब्दी से लेकर 10 वी शताब्दी तक की गुफाएं निर्मित है। ओलीकर वंश के अभिलेखों में भी इनका वर्णन है। यह मालव में शिक्षा का बड़ा केंद्र था। यहां दंतीदूर्ग राष्ट्रकूट शासक ने हिरण्यगर्भ यज्ञ किया था। यज्ञ में बौद्ध अनुयायियों को ब्राम्हण धर्म में परिवर्तन किया था। इसलिए बीच में एक मंदिर निर्मित किया गया हैं,  जिसे धर्मराजेश्वर कहा गया। यह मात्र एक संकेत हैं।  



इस रॉक कट साइट में 7 गुफा में नक्काशीदार 51 गुफाएं, स्तूप, चैत्य, मार्ग और कॉम्पैक्ट आवास शामिल हैं। इस साइट में बैठे और निर्वाण मुद्रा में गौतम बुद्ध की बड़ी मूर्तियां शामिल हैं। गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 600 साल बाद यानि आज से 1500 साल पहले बुद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार और व्यापार के लिए एक देश से दूसरे देश तक भ्रमण करने वाले व्यापारियों की मदद ली जाती थी। गुप्त काल के समय में व्यापारियों के लिए समुद्र तट तक पहुंचने के प्रचलित मार्ग में ही मंदसौर का धम्मनगर (धमनार)बौद्ध विहार भी बना था।
यह बौद्ध धर्म की शिक्षा-दीक्षा का एक बड़ा केंद्र हुआ करता था, जहां व्यापारी कुछ समय ठहर कर विश्राम करते थे। काफी कमजोर हो चुकीं गुफाओं को एएसआई ने लेट्राइट पत्थर से ही दुरुस्त किया हैं।


 


धमनार बौद्ध गुफाएं


1. ये अजंता-एलोरा की गुफाओं की तरह हैं। ये सभी गुफाएं बौद्ध संघाराम तथा चैत्य के रूप में बनी है। ’धमनार की गुफाएं' वास्तव में 4-5 वीं शती में निर्मित बौद्धविहार हैं। बौद्ध वाङ्मय में उल्लिखित यह स्थान प्राचीन काल में चन्दनगिरि के नाम से प्रसिद्ध था, जिसका प्रभाव समीपस्थ कस्बे चन्दवासा (चन्दनवासा) की संज्ञा में देखा जा सकता है। 


2. इतिहासकारों में सबसे पहले जेम्स टाड 1821 ई में यहां आये थे। अपने जैन गुरु यतिज्ञानचन्द्र के कथन पर इन्हें जैन गुफा बताया। जेम्स टाड ने अश्वनाल आकृति की शैल श्रृंखला में लगभग 235 गुफाओं की गणना की थी, किन्तु जेम्स फर्गुसन को 60-70 गुफाएं ही महत्वपूर्ण लगीं। लगभग 2 किमी के घेरे में फैली इन गुफाओं में भी 14 गुफाएं विशेष उल्लेखनीय हैं। अलेक्जेंडर कनिंघम भी यहा आये थे।


3. छठी गुफा बड़ी कचहरी (संघ सभा) के नाम से पुकारी जाती है। यह वर्गाकार है तथा इसमें चार खंभों का एक दालान है। सभा कक्ष 636 मीटर का है। 9वीं गुफा में चार कमरे हैं। चौथे कमरे में पश्चिम की तरफ एक मानव आकृति उत्कीर्ण है। 


4. 10वीं गुफा राजलोक रानी का महल अथवा 'कामिनी महल' के नाम से प्रसिद्ध है। 11वीं गुफा में चैत्य बना हुआ है। इसके पार्श्व में मध्य का कमरा बौद्ध भिक्षुओं की संघाराम था और ध्यान का स्थान था। 



5. पश्चिम की ओर बुद्ध की दो प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। 12वीं गुफा हाथी बंधी कहलाती है। इसका प्रवेश द्वार 16 1/2 फिट ऊंचा है। 13वीं गुफा में कई बड़ी-बड़़ी बुद्ध मूर्तियां हैं।


6. तथागत बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद आज से लगभग 1600 साल पहले बुध्दिज्म के प्रचार-प्रसार और व्यापार के लिए एक देश से दूसरे देश तक भ्रमण करने वाले व्यापारियों को यह आश्रय स्थान रहा। 


7. गुप्त काल में व्यापारियों के लिए समुद्र तट तक पहुंचने के प्रचलित मार्ग में ही मंदसौर का धमनार बौद्ध विहार भी बना था। बुद्धीज्म धर्म की शिक्षा-दीक्षा के लिए यहाँ विहार हुआ करता थे, जहां व्यापारी भी कुछ समय ठहर कर विश्राम करते थे।


महत्वपूर्ण घटना
1. अहिल्याबाई, इस किताब के लेखक वृंदावनलाल वर्मा का मत है कि धमनार बौद्ध विहार कि स्थापत्य कलाओ को देखकर महारानी अहिल्याबाई होल्कर (31 मई 1725 - 13 अगस्त 1795) आश्चर्य चकित हुई थी। उस साम्य अहिल्या बाई एक बौद्ध गुफा मे समीप जार देखा वहा एक वयोवृद्ध व्यक्ती थे। उन्हे देखकर अहिल्याबाई ने उन्हे नमस्कार किया। वयोवृद्ध उठ खडे हुये और परिचय देते हुये कहा कि मै बौद्ध भिक्षु हूं। अहिल्याबाई ने कहा कि - क्या भारत में बौद्ध भिक्षु अभी भी है ?


बौद्ध भिक्षु ने कहां मै तो हूं और मेरे साथ पूरा भिक्खु संघ है। घटनाक्रम से यह ज्ञात होता है कि बुद्धीज्म का प्रभाव अहिल्याबाई के समय में पाया जाता था।



2. धर्मराजेश्वर मन्दिर की तुलना एलोरा कि गुफा से की जाती हैं, क्‍योकि धर्मराजेश्वर मन्दिर की स्थापत्य कला  एलोरा कि स्थापत्य कला एकाश्म शैली से मेल खाती है। धर्मराजेश्वर मन्दिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी माना जाता है। यह मंदिर गहरी चट्टान को तराशकर बनाया गया है। प्रतिहार राजाओं की स्थापत्य कलाभिरुचि यहाँ देखने को मिलती है। 


3.धमनार बौद्ध गुफा की यह एक स्थापत्य कला। यहां हमे बुद्ध भी दिखाई दते है औऱ स्तुप। स्तुप थेरवाद का प्रतीक है और बुद्ध महायान अर्थात यहां दोनों शिक्षा दी जाती रही होंगी।


4. प्राचीन बौद्ध काल मे बुद्धीज्म का प्रभाव धमनार, सारंगपूर, बजरंगगढ, मियाना, कोलार्स, र्नोड, हिम्मतगढ, ग्वालियर, नुराबाद, कुर्वार, सुहानिया बधी इन क्षेत्रों में पाया जाता है।



कैसे पहुंचे


धमनार बौद्ध गुफा दिल्ली-मुम्बई रेल मार्ग पर स्थित शामगढ़ से 20 किमी दूर है। 


(Reference  Ahilyabai by vrinavanlal verma तथा  मध्यप्रदेश विदिशा यत्रियो किं निगाहो मे लेखक संभू दयाल गुरु) ।



धमनार बौद्ध गुफा और शिलालेख


मंदसौर के सौंधनी में यशोधर्मन का विजय स्तम्भ का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है। यशोधर्मन् के मंदसौर से प्राप्त उसके दो अभिलेखों में यह भी कहा गया है कि असका अधिकार उन प्रदेशों पर भी था जो गुप्त राजाओं और हूणों के भी अधिकार में नहीं थे। उसके प्रांतपाल अभयदत्त के अधिकार में विंध्य और पारियात्र के बीच का प्रदेश था जो अरब सागर तक फैला था। इस विस्तृत साम्राज्य की विजय के संबंध में उसने किन किन राजवंशों को पराजित किया, इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता। अभिलेख में उसके द्वारा पराजित शत्रुओं में केवल मिहिरकुल का हो नाम दिया गया है।


बौद्ध काल और मालवा


बुद्ध के जीवनकाल से ही अवन्ति बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केन्द्र रहा। इस काल में बौद्ध धर्म के प्रचार कार्य में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका भिक्खु महाकच्छायन की थी। उनका जन्म उज्जयिनी में हुआ था। उनके  समकालीन राजा प्रद्योत ने भी बुद्धीज्म को स्वीकार कर लिया था।



मौर्य बौद्ध काल और मालवा


सम्राट अशोक के समय से अवंती प्रदेश को मालवा से जाना जाता रहा। निश्चित उस समय  बुद्धीज्म का प्रभाव इस क्षेत्र मे अत्याधिक रहा। सम्राट अशोक कि मां यह बुद्ध अनुयायी थी और अशोक उन्ही के सानिध्य मे पला-बडा निश्चित संस्कार मां के अशोक पर रहे। अशोक अवंती के व्हाईसरॉय थे। उस समय उन्होने देवी को बुद्धीज्म के संचारन में सहयोग निश्चित किया होंगा। राजकुमारी देवी ने चैत्यगिरि में एक विहार का निर्माण करवाया था, जिसका पुरातात्विक प्रमाण आज भी है। कलिंग युद्ध के बाद उन्होने बुद्धीज्म को राजाश्रय दिया। यह कहना कि अशोक ने कलिंग के बाद बुद्धीज्म को स्वीकारा यह इतिहास्कारो कि कलम कसाई दिखाई देती है। मां के सानिध्य मे अशोक रहा तो वह बचपन से बुद्धीज्म का प्रभाव उसपर रहा ।