स्मृति दिन/ जल-जीवन, अस्मिता और अस्तित्व के आंदोलन के प्रणेता

◆ आइये जानेे जिसने लड़ी जल-जंगल-जमीन की लड़ाई


◆ भारतीय स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान


◆ जमींदारों के खिलाफ आवाज की बुलंद


◆ अपनी सभ्यता और संस्कृति की रक्षा



युवा काफिला, भोपाल


नाम - बिरसा मुंडा
पिता - सुगना मुंडा
माता- करमी हातु 
जन्म - 15 नम्बर 1875 


जन्म स्थान -   
राज्य झारखंड ,जिला रांची के छोटे से गाव उलिहातू गाँव में
मृत्यु - 9 जून 1900 ( रांची कारगार) 


बिरसा मुंडा का जन्म 15 नम्बर 1875 को रांची जिले के उलिहातु गाँव में हुआ था | मुंडा रीती रिवाज के अनुसार उनका नाम बिरसा इसलिए रखा गया था क्योंकि उनका जन्म बृहस्पतिवार के दिन हुआ था।


बिरसा के पिता का नाम सुगना हातु मुंडा था और माता का नाम करमी हातु था। बिरसा मुंडा के परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था । बिरसा के पिता सुगना मुंडा जर्मन धर्म प्रचारकों के सहयोगी थे।             
बिरसा मुंडा का बचपन अपने घर, ननिहाल,और मौसी की ससुराल में बकरियों को चराते हुए बीता, बाद में उन्होंने कुछ दिनों तक चाइबासा के जर्मन मिशन स्कूल में शिक्षा ग्रहण की परन्तु स्कूल में उनकी आदिवासी संस्कृति का जो मजाक उड़ाया जाता था वह उन से सहन नही हुआ और उन्होंने वह स्कूल छोड़ दिया।               
बिरसा का बचपन बहुत ही संघर्ष के बीता। बचपन से ही उनके मन मे क्रांति की चिंगारी सुलग रही थी।                            बिरसा मुंडा ने स्कूल छोड़ने के बाद हिन्दूओ के प्रभाव मे आने के कारण कुछ दिनो तक इस धर्म के अनुसार काम करते रहे परन्तु उन्होंने अपने आदिवासी भाइयों के साथ हो रहे अत्याचार को देखकर, अपने जीवन मे कई प्रकार की परेशानी सहन की उसी के सम्पर्क में आये और उन्होंने बहुत कुछ सीख लिया और फिर उन्होंने फ़ैसला किया और आदिवासी जनजीवन के इस  मसीहा ने केवल 25 साल की उम्र  में विहार, झारखंड ओर ओडिशा में जननायक की पहचान बनायी ।        
बिरसा मुंडा द्वारा किये गये संघर्ष
                                      1886 से 1890 का दौर के जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ रहा। जिसमें उन्होंने ईसाई धर्म के प्रभाव से अपना धर्म का अंतर समझा उस समय मस्य सरदार आंदोलन शुरू हो गया था इसलिए उनके पिता ने उनका स्कूल छुड़वा दीया था, क्योंकि वो ईसाई धर्म का विरोध कर रहे थे। फिर सरदार आंदोलन की वजह से उनके दिमाग मे ईसाइयों के प्रति विद्रोह की भावना जाग्रत हो गयी और फिर बिरसा मुंडा जी भी आंदोलन में शामिल हो गये और अपनी पारम्परिक रीति-रिवाजों के लिए लड़ना शुरू हो गये थे।                                    बिरसा मुंडा ने आदिवासियों की  जमीन छीनने ,लोगों को ईसाई बनाने, और महिलाओं को दलालो द्वारा उठा ले जाने वालो को अपनी आँखों से देखा था ,जिससे उनके मन मे अंग्रेजों के अत्याचार के प्रति क्रोध की ज्वाला भड़क उठी थी।  फिर बिरसा मुंडा ने किसानों का शोषण करने वाले जमींदारो के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा दी और प्रतिक्रांति की शुरुआत की।लोगो को इकट्ठा होते देख कर ब्रिटिश सरकार ने बिरसा को लोगो की भीड़ जमा करने से रोका पर बिरसा मुंडा कहा मानने वाले थे । उन्होंने कहा मैं तो अपनी जाति को अपना धर्म सीखा रहा हूं और अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा हूं।
इस बात पर पुलिस ने उनको गिरफ्तार करने का प्रयत्न किया लेकिन गांव वालों ने उन्हें छुड़ा लिया।                                             फिर बिरसा मुंडा जी ने जल-जंगल -जमीन के लिये आन्दोलन शुरू कर दिया ।
बिरसा मुंडा वह पहले क्रांतिकारी थे जिन्होंने आदिवासियों की जल-जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ी थी और अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह किया था और वंचितों को हक अधिकार दिलाया। 
यह सिर्फ कोई वगावत नही थी बल्कि यह तो आदिवासी स्वभिमान स्वतंत्रता और संस्कृति को बचाने का संग्राम था
बिरसा ने "-अबुआ दिशुम अबुआ राज-" यानी.. हमारा देश हमारा राज का नारा दिया..


देखते ही देखते सभी आदिवासी जंगल पर दावेदारी के लिए इ्कट्ठे हो गये।                
अंग्रेजी सरकार ने बिरसा के उलगुलान को दबाने की हर सम्भव कोशिश की लेकिन आदिवासियों के गुरिल्ला युद्ध के सामने उन्होंने घुटने टेक दिये  ।


बिरसा मुंडा आदिवासियों के भगवान कहे जाने लागे 1894 में बारिश नही होने पर भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी, जिससे लोग बीमार होने लगे परंतु बिरसा मुंडा जी को उनकी कई प्रकार की जड़ी बूटियां का भी ज्ञान था वो एक कुशल वैद्य भी थे और कई प्रकार की बीमारियों की प्राकृतिक औषधियाँ बनाते थे । जिससे वे अपने आदिवासियों भाइयो को जड़ी-बूटियों देकर उनका इलाज करते । बिरसा ने दयाभाव से अपने लोगों की सेवा की उनलोगों का इलाज करने के प्रति जागरूक किया सभी आदिवासीयो के लिये वे धरती - आबा यानी धरती पिता के कहे जाने लगे।                 


अग्रेजो के खिलाफ आंदोलन के दौरान बिरसा गुप्त स्थान पर अपनी सभा रखते थे जनवरी 1900 में उलिहातू के नजदीक डोमबाडी पहाड़ी पर बिरसा अपनी जनसभा रखते थे, जिस बिरसा को अंग्रेजों की तोप ओर बंदूक की ताकत नही पकड़ पाई , वो बिरसा अपनो की ही गद्दारी के कारण बिरसा के बंदी बंदी बनने का कारण  बनी
अंग्रेजी सरकार ने बिरसा को पकड़वाने  के लिए 500 रूपये की धनराशि के इनाम की घोषणा की और किसी अपने ही व्यक्ति ने बिरसा के ठिकाने का पता अंग्रेजों तक पहुँचाया,
अंग्रेजी सरकार के  सिपाहियों ने बिरसा की जनसभा वाले स्थान को चारो तरफ से घेर लिया और अंग्रेजो और आदिवासीयो के बीच जंग शुरु हुई जिसमे महिलाओं और मासूम बच्चे भी मारे गये ।
बिरसा मुंडा जी की सेना में कम लोग होने की वजह से अंग्रेजो ने  धोके से उन पर ओर उनकी सेना पर आक्रमण कर दिया 
ओर बिरसा को बंदी बना लिया गया ।


मृत्यु-
आखिर में 9 जून 1900 को बिरसा ने रांची के कारगार में आखिरी सांस ली बताया जाता है की उनको अंग्रेजों द्वारा ज़हर देकर मारा गया था।     
                 बिरसा मुंडा एक महान योद्धा थे जिन्होंने जल जगंल की लडाई लड़ी थी। आदिवासी को हक़ अधिकार दिलाया था। आज आदिवासी लोगों के पास जो जमीन है, वह इन्हीं की देन है । बिरसा मुंडा महान योद्धा थे जिन्होंने अंग्रेजो कि ग़ुलामी से आज़ाद करने की लड़ाई लड़ी थी । इन्होंने सिर्फ आदिवासी के लिए ही लड़ाई नही लड़ी बल्कि पूरे देश को अंग्रेजों की  गुलामी से आज़ाद करने की लड़ाई लड़ी थी।


आज ही के दिन झारखंड के मुंडा परिवार में जन्मे बिरसा मुंडा ने साहस की स्याही से पुरुषार्थ के पृष्ठों पर शौर्य की शब्दावली रची। झारखंड में अपने क्रांतिकारी चिंतन और आज़ादी की नवीन चेतना से 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में समाज की दशा और दिशा बदलकर नवीन सामाजिक और राजनीतिक युग का सूत्रपात किया। छोटा नागपुर के आस-पास मुंडा आदिवासी आंदोलन(1899-1900) का नेतृत्व किया। ब्रिटिश हुकूमत ने गिफ्तार करके रांची की जेल में डाल दिया। रांची जेल में रहस्मय हालात में 9 जून 1900 को इनका निधन हो गया।
बिरसा मुंडा सही मायने में पराक्रम और सामाजिक जागरण के धरातल पर तत्कालीन युग के एकलव्य हैं। 
आदिवासियों के मसीहा जिन्हें वर्तमान में मूलनिवासी अपना आदर्श मानते है।
आज इनका स्मृति दिन हैं। देश के सभी वंचित वर्ग के साथ -साथ उन सभी लोगो को सलाम जो अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध अपनी मुहिम जारी रखे हुए हैं और इस स्वतंत्र भारत में आगे भी लड़ते रहेंगे।


सीख-             
ये उन महावीरों की भूमि है जिसे हम गोंडवानालैंड या भारत देश कहते है।अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जनजातियों एवं सभी प्रकार की जाति इस महान देश मे निवास करती है जिसमे से एक जाति मुंडा है जो आज भी अपने पुर्वज भगवान बिरसा मुंडा को पूजते है। ऐसे महानायक से हमे शिक्षा मिलती है कम पढे लिखे होने के बाद भी समाज को आगे बढ़ाया ओर संघर्ष करते रहे जननायक को हमे हर समय याद करना चाहिए न कि उनकी जयंती पर मुझे बिरसा मुंडा का इतिहास पढ़ने में लिखने में एक पॉजिटिव एनर्जी मिली।
                       
"अबुआ दिशुम अबुआ राज"            


 "हमारा देश हमारा राज"



विश्लेषक - नाम- साधना उईके
अध्ययनरत- बी. ए द्वितीय वर्ष
सीहोर