◆ प्रत्येक विषय पर आजकल कराया जाता हैं सर्वे
◆ आखिर कौन करता हैं यह सर्वे
◆ किनसे पूछे जाते हैं सर्वे के प्रश्न
◆ जाने सर्वे क्यों हैं खास
युवा काफिला, भोपाल-
आजकल की राजनीति में हर वक्त कोई न कोई सर्वे चलता ही रहता है । उन सर्वे को कराने वाले, करने वाले और उसमें भाग लेने वाले, सभी का पूरा स्वार्थ उसमें दिखता है । नहीं दिखता तो ईमानदारी का, निष्पक्षता का ढोंग करने वाले बड़े लोगों को नहीं दिखता।
अभी इस कोरोना महामारी के समय में खासकर मजदूरों के घर वापसी वाले समयकाल में, जब लोग रेल की पटरियों, सडकों पर मर रहे थे, 2-3 दिन की जगह सरकार प्रयोजित 7-8 दिनों के धार्मिक पर्यटन के वक्त जिसमें जबरदस्ती उपवास का भी प्रावधान था। एक सर्वे हुआ जिसमें मोदी जी की लोकप्रियता कई गुना बढ़ी ऐसा बताया गया । एक और सर्वे हुआ जिसमें आज के कर्मठ, पारदर्शी, संवेदनशील सरकार को आज की स्थिति में चुनाव होने पर और ज्यादा सीटें मिलने की बात सामने आई।
अब आप कहिए कि सर्वे सही होते हैं ।
और यही हर सर्वे का सच है ।
चलिए दायरे को देश से प्रदेश और प्रदेश में भी सिर्फ राजनीति तक सीमित करते हैं और वो भी एक पार्टी पर ।
2019 के लोकसभा का रिजल्ट तो सबको पता है।
पर चुनाव के पहले और उससे भी पहले टिकट वितरण की प्रक्रिया में क्या क्या नौटंकिया नहीं दिखाई गई सर्वे के नाम पर । दावेदार अपनी पूरी जोर लगा रहे थे, हर स्तर पर दूसरे से बेहतर व भारी दिखने दिखाने की जद्दोजहद कर रहे थे। क्षेत्र से भोपाल, दिल्ली और जहाँ जहाँ तथाकथित आका जा रहे थे वहां दौड़ लगा रहे थे, फिर दिल्ली की सर्वे टीम, भोपाल की सर्वे टीम,हर आका की अपनी सर्वे टीम के सामने अनारकली बने फिर रहे थे और जहाँपनाह लोग तरह तरह के सर्वे दिखाकर चहेते को प्रोत्साहित व दूसरों को हतोत्साहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। पर सारे सर्वेज का लब्बोलुआब यह था कि पार्टी 14-16 सीट जीत रही है। यानि हलवा पक गया था बस अपने खास को खाने पर बिठाने की जुगत लगाई जा रही थी । तर्क दिये जा रहे थे कि जनता मोदीजी के कामकाज से दुखी है, प्रदेश में सरकार बनने पर ( जो कि बड़ी मुश्किल से जोड़ तोड़ कर बनाई गई थी। उसका भी कारण यही इसी तरीके के सर्वे ही थे, कि पूर्ण बहुमत आ रहा है) एक लहर चल पड़ी है।
नतीजा......बमुश्किल 1 सीट ,वो भी तब के मुख्यमंत्री महोदय के पुत्र, जहाँ जीत का पिताजी का रिकार्ड है, आ पाई !
क्या हुआ उन सर्वेज का, सर्वेज करने और करवाने वालों का ? कोई जवाब-तलब हुआ ? नहीं !
क्योंकि ये सर्वेज सिर्फ और सिर्फ उन दावेदारों को किनारे करने का जरिया बना दिया गया है जो-
1) राजनीति में नये हैं
2) जिनका कोई आका बना नहीं है यानि वो किसी का भक्त या गुलाम नहीं है
3)जिनकी छबि स्वच्छ है, जिनको पैसों से ज्यादा अपनी शिक्षा,क्षमता,काबिलियत और राजनीति में बदलाव पर भरोसा है।
4) जो सचमुच उस जगह जाकर जहाँ पॉलिसिया बनती है ,समाज में परिवर्तन लाना चाहते हैं
5)जो राजनीति को अपना धंधा नहीं, समाजसेवा का औजार मानते हैं ।
अब मैं आपको बताता हूं कि सर्वेज कैसे होते हैं
1) पुराने घिसे-पिटे नेता अपने संबंधों के दम पर सर्वे करने आने वाले की जानकारी पा जाते हैं । फिर उनकी खातिरदारी ( हर तरह की) का औजार
2) पुराने घिसे-पिटे नेता जिनका धंधा ही राजनीति है,यहीं की पुरानी कमाई से कुछ लोगों की भीड़ खड़ी कर अपना नाम सर्वे के वक्त बतौर विजयी हो सकने वाले घोडे के तौर पर पेश करवाते हैं
3)बायोडाटा ऐसा बनाकर पेश होता है कि उसे देखकर चुनाव की जरूरत ही न हो। सीधे विधायक,सांसद,मंत्री बनाने का मन हो जाये। यानि भंडारा करवाया, भागवत करवाया,किस आका के साथ कितनी फोटो हैं
4)यहाँ तक की विपक्षियों से सांठ गांठ कर अपने सबसे कमजोर व्यक्ति को दावेदार बनवाने का भी चलन है।
अगर सच में सर्वे करा रहे होते तो विधानसभा में बहुमत आता, लोकसभा में 15 न सही 10 तो सीटें आतीं । करोडों फूंक कर दिखावा करना है तो मुबारक हों ऐसे सर्वे !
होना क्या चाहिए ?
1) दावेदार नहीं सचमुच जनप्रतिनिधि बनने लायक स्थानीय व्यक्ति को प्राथमिकता , भले ही वह एक्टिव राजनीति में न हो पर विचारधारा का हो।
जनप्रतिनिधि बनने लायक यानि
(क) जो अंग्रेजी और हिन्दी भाषा पर पकड़ रखता हो ताकि चीजों को पढ़ समझ सके, न कि सिर्फ एस एस, नो नो करे।
(ख) उसके पिछले सारे अच्छे बुरे के रिकॉर्ड पता हो।
(ग) उसकी आर्थिक आवक। यानि सही-गलत पैसा। गलत पैसा गलत जगह प्रयोग होगा और ज्यादा कमाने की नीयत भी होगी। राजनीति को धंधा न मानता हो और न धंधा बनाये ऐसा कम से कम परिलक्षित तो हो
(घ) जिस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करना है वहां उसकी व्यक्तिगत विशेषज्ञता कितना काम आ सकती है। लोगों से मिलना, पैर छूना, बतौलेबाजी से क्षेत्र का भला कैसे हो सकता है ? पहले अगर इन पैतरो से भला हुआ है उस पर विचार अवश्य हो।
2) सर्वे में आलाकमान को मिले नामों व वहां के स्थानीय कुछ नाम जिनको लोग जानते हैं पर कुछ अच्छे बुरे पक्ष जानने की चेष्टा हो।
जैसे;उस सीट पर कुछ स्थानीय राजनैतिक, गैर राजनैतिक, सामाजिक,कुछ नये इच्छुक युवा, महिला,शिक्षित लोगों के नाम जो समाज को कुछ देने की क्षमता रखते हों बनिस्बत समाज से लेने के , की लिस्ट बनाकर उन नामों पर गुण-दोष के आधार पर आंकलन हो।
पार्टी पुराने क्षत्रपो को ही हर बार धो पोंछ कर कितनी बार जनता को परोसेगी , कब तक बाहरियो को आकाओ के कोटे के हिसाब से समर में उतारेगी ?
केन्द्रीय नेतृत्व तो हमेशा युवाओं को, नये चेहरों को, महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने की बात करता है। उनकी मंशाओ को पतीला लगाकर ऐसे ऐसे व्यक्तियों को कई तरह की भूमिका बनाकर आगे किया जाता है जो कहीं से भी सही पसंद नहीं होते ।
ये सर्वे सर्वे का खेल बंद कर ईमानदारी से सही व्यक्तियों में से सबसे सही व्यक्ति को मैदान में उतारे वर्ना डूबता जहाज बचाना मुश्किल होगा और फिर कुछ लोग पाला बदल चले जायेंगे और पार्टी की विचारधारा की बात करने वाला ठगा ही रह जायेगा।
अभी तो समय भी है और 290 की बजाय मात्र 24 सीट ही सरकार बनने न बनने का फैसला करेगी।
वरिष्ठ लेखक -पीयुदेव