कार्यशाला/ इंटरनेशल कबीर महोत्सव वेबिनार पर संपन्न

◆ कबीर के जीवन पर हुई चर्चा


◆ वियतनाम,थाईलैंड,अमेरिका सहित भारत के लोग हुए सम्मिलित


◆ डॉ आंबेडकर के जीवन पर सदगुरु कबीर के जीवन का प्रभाव


◆ पाखंड और आडम्बर पर कड़ा प्रहार थीं कबीर की रचनाएं



युवा काफिला,बैतूल-
 ‘कबीर जयंती महोत्सव 2020 बैतूल’ के तत्वावधान में इंटरनेशनल कबीर वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से संपन्न हुई । जिसमें वियतनाम, थाईलैंड अमेरिका सहित भारत के वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले तर्कशील लोग शामिल हुए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सुखदेव डोंगरे द्वारा किया गया । उन्होंने सभी लोगों को सद्गुरु कबीर की श्रमण संस्कृति का परिचय कराया। उन्होंने बताया कि सदगुरु कबीर मानवता के
पोषक, सामाजिक न्याय के पुरोधा, समानतावादी विचार, पाखण्ड एवं आडम्बर के कट्टर विरोधी एवं नास्तिक थे। वियतनाम से डॉ. सरिता मेश्राम ने  से कहा डॉ आंबेडकर का परिवार कबीरपंथी था और कबीर ने अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने समय के ज्वलंत मुद्दों को उठाया इसलिए बाबा साहेब ने कबीर को अपना प्रथम गुरू माना। 
 थाईलैंड से प्रो. अमोल बरडे ने कहा कि महाकारुणिक बुद्ध और कबीर के दर्शन में समानता है तथा दोनों महापुरुषों ने समाज को एक नई दिशा एवं वैज्ञानिक सोच के मार्ग को प्रदर्शित किया। डॉ.सुनील कुमार सुमन ने कहा सदगुरु कबीर एक सामाजिक न्याय और धार्मिक शोषण के विरुद्ध लोगों में अपनी आवाज बुलंद की लेकिन अफसोस लोगों ने एक नया पंथ ही बना डाला। डॉ. सुरजीत कुमार सिंह बौद्ध ने कहा कि कबीर ने गरीब, दलित आदिवासी, बहुजनों को उठाने के लिए लोगों में पाखण्ड, धार्मिक, कर्मकाण्ड, अंधविश्वास के खिलाफ लोगों को जागृत किया ।
सिद्धार्थ गौतम ने कहा कबीर दर्शन में तथागत की श्रमण संस्कृति को तात्कालिक भाषा में समझाया। काम, क्रोध, लोभ का त्याग किए बिना निर्वाण संभव नहीं है। डॉ. नीलिमा बागड़े ने कहा तथागत बुद्ध, गुरूनानक, महावीर, महामना ज्योतिबा फूले, भगतसिंह और कबीर सभी एक विचारधारा नास्तिक का समर्थन करने वाले हैं। आरआर वामनकर ने कहा सदगुरु कबीर एक महान संत एवं दार्शनिक थे। उनकी विचारधारा को आत्मसात करने से वैज्ञानिक सोच उत्पन्न होती है। डॉ. केएस सिसोदिया ने कहा कबीर ने पूर्ण रूप से झूठ, पाखण्ड, कर्मकाण्ड का पुरजोर विरोध करते हुए समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व का रास्ता दिखाया। 
कार्यशाला में वियतनाम से होची मीही सिटी की डॉ. सरिता मेश्राम, थाईलैंड से अमोल बरडे, अमेरिका से प्रो.आरजी वर्मा के अलावा भारत के कोलकाता से डॉ. सुनील कुमार सुमन, वर्धा से डॉ. सुरजीत सिंह बौद्ध, गाजियाबाद से डॉ. बी.एस.निगम भोपला से आरआर वामनकर, छिंदवाड़ा से डॉ. नीलिमा बागड़े, मोतिहारी बिहार से शकील प्रेम (मानव) इंदौर से सिद्धार्थ गौतम, डॉ. सुरेश प्रसाद, धार से प्रो. केशव सिंह सिसोदिया द्वारा कबीर दर्शन पर अपने विचार रखे।
कार्यक्रम का संयोजन डॉ. सुखदेव डोंगरे, संचालन गुंजन डोंगरे, तकनीकी संचालन गौरव डोंगरे, आभार प्रकट डॉ. संतोष कापसे द्वारा किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में सक्रिय सहयोग डॉ. चंद्रशेखर मेश्राम, डॉ.  सरोज पाटिल, देवेन्द्र नागले, शिवकली वरवड़े, डॉ. अमित कुमार सातनकर, प्रो. मनोज घोरसे, प्रो. शरद बरवे, प्रो. विवेक गायकवाड़, डॉ. सुनील बागड़े, प्रो. समीक्षा सिसोदिया, भागरती डोंगरे, कबीर महिला समिति की अध्यक्ष चन्द्रकला डोंगरे, भागरती डोंगरे, लिन्ता चौकीकर, दौलत चौकीकर, प्रो. रिशिकान्त पंथी, प्रो. शंकर सातनकर, राजू मण्डलेकर, जसवंत बचले, डॉ. सरोज पाटिल, गौरी डोंगरे, डॉ. नितिन बातव, केशोराव भूमरकर, अंकित जावरकर, वर्षा ठाकरे, राजेन्द्र निरापुरे, बालचंद अहिरवार, स्मृति रंजन नायक, आरएल अतुलकर, जगदीश हुरमाड़े,डॉ,देवेन्द्र कुमार अहिरवार,डॉ.एकता गांगिल,धनराज कापसे, प्रकाश ऊबनारे,मधु हुरमाडे,एड.आशीष नागले,मधुकर पाटिल,प्रकाश नागले,नवीन चौरासे, नत्थू भुसुमकर, डॉ. प्रमोद भुमरकर, गरिमा डोंगरे उपस्थित रहे।