जयंती/ जाने कौन थे बस्तर के अंतिम शासक डॉ सूर्या बाली के द्वारा

बस्तर के अंतिम महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव को उनकी 91वीं जयंती पर शत शत नमन: डॉ सूर्या बाली "सूरज धुर्वे"


◆ जिनके बिना बस्तर की कल्पना भी नहीं की जा सकती


◆ आज भी जनता के मसीहा के रूप में पूजे जाते हैं



युवा काफिला,भोपाल-


भारत के मध्य में स्थित बस्तर संभाग प्राचीन काल से ही विदेशियों, आक्रमणकारियों और आक्रांताओं के लिए अभेद्य रहा है। वैदिक काल के ऋषियों के लिए सबसे मुश्किल दौर इन्ही जंगलों में रहा, रामायण काल में यही पर आर्यों को मुंह की खानी पड़ी, यहीं पर मुस्लिम शासको को पैर टिकाने तक की जगह नही मिली और यही वो जगह थी जहां अंग्रेजों ने यहाँ के राजाओं की गुलामी की। और आज भी बस्तर वो जगह हैं जहां पूरी कोशिशों के बावजूद भारत के पूंजीवादी और सामंती सोच वाले लोग अपना पूर्ण अधिकार स्थापित कर पाने में असफल रहे हैं और सरकार की मिली भगत से जनजातियों का शोषण करने का षणयंत्र रचते रहते हैं। 


प्रवीर चंद्र भंज देव, बस्तर के अंतिम राजा थे । एक ऐसी महान शख्सियत कि बस्तर संभाग के लोग आज भी उनकी तस्वीर को सीने से लगा के रखते हैं और हर घर में राजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव की तस्वीर टंगी हुई मिल जाएगी। 


बचपन 


वैसे तो प्रवीर के माता पिता भारत देश के सबसे बड़ी रियासत बस्तर के राजा रानी थे लेकिन प्रवीर का जन्म 25 जून 1929 को शिलांग में हुआ था। महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव के माता का नाम महारानी प्रफुल्ल कुमारी तथा पिता का नाम राजा प्रफुल्ल चन्द्र भंजदेव था। प्रवीर के छोटे भाई का नाम विजय चन्द्र भंजदेव था। बचपन से ही प्रवीर बहुत ही तेज तर्रार और निडर थे । ब्रिटिश सरकार ने उनके देखरेख की ज़िम्मेदारी अंग्रेज़ कर्नल जी सी ग्रिब्सन को सौंप रखी थी। 


राज्याभिषेक 


प्रवीर का राजनैतिक जीवन तो बचपन में ही शुरू हो गया था। बचपन शिलांग में बिताने के बाद उन्हे अपनी बीमार माँ के साथ इंग्लैंड जाना पड़ा और वहीं पर उनकी शिक्षा दीक्षा हुई । संदिग्ध परिस्थियों में उनकी माँ की इंग्लैंड में मृत्यु हो गयी और वहीं पर उनका दाह संस्कार कर दिया गया। जब प्रवीर जब मात्र 6 वर्ष के थे तभी ब्रिटिश शासन द्वारा कम उम्र में ही सन 1936 में उनका राजतिलक कर दिया गया था और उनकी देख रेख, सुरक्षा, शिक्षा दीक्षा की ज़िम्मेदारी अङ्ग्रेज़ी हुकूमत ने संभाल रखी थी। 


जब वे 18 वर्ष के हो गए तो उन्हे पुनः सन 1947 में बस्तर रियासत कि बागडोर हस्तांतरित कर दी गयी। यह वही समय था जब देश आजाद होने वाला था और उसी समय एक युवराज जनजातीय चेतना कि पताका फहराने निकल पड़ा था और उम्मीद लगा बैठा था कि अंगेजों से मुक्त होकर जनजातीय हितों की बेहतर रक्षा हो सकेगी इस उम्मीद में प्रवीर चन्द्र ने 1 जनवरी 1948 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर बस्तर रियासत को भारतीय गणराज्य में शामिल कर दिया लेकिन दुर्भाग्य भारत की सरकार अंग्रेजों से ज्यादा क्रूर निकली। 


आजादी के समय प्रवीर चंद भंजदेव बस्तर स्टेट के महाराजा थे और आजादी के बाद उन्हे 1 जनवरी 1948 से फरवरी 1961 बस्तर राजघराने की संपत्ति का रुरल प्रशासक नियुक्त किया गया था। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 पास होने के बाद बस्तर राज्य सेंट्रल प्रोविन्स एंड बरार में शामिल हुआ। जो बाद में मध्य प्रदेश का हिस्सा बना और आज छत्तीसगढ का मुख्य संभाग है। 


प्रशासन की ज़िम्मेदारी 


महाराजा प्रवीर चन्द्र के शासन काल में ही में बस्तर के बैलाडिला (वर्तमान में दंतेवाड़ा जिला) में लौह अयस्क के भण्डार होने की जानकारी मिली जो की बस्तर रियासत के लिए आर्थिक रुप से बहुत महत्वपूर्ण थी। अंग्रेजों ने महाराजा प्रवीर पर बहुत दवाव बनाया कि बैलाडिला पहाड़ का क्षेत्र हैदराबाद के निजाम को दे दिया जाये लेकिन प्रवीर ने साफ साफ मना कर दिया और यहीं से प्रवीर भंजदेव लोगों की आँखों में खटकने लगे। 


राजनैतिक जीवन 


सन 1957 में महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव जगदल ने अपने राजनैतिक पारी की शुरुआत की और राजा से जनता के प्रतिनिधि(विधायक ) की भूमिका में आ गए फिर भी बस्तर की जनता उन्हे अपना राजा ही मानती रही। जनता के अधिकारों को लेकर वे हमेशा कांग्रेस के समाने आते रहे और सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी की आँखों की किरकिरी बन गए। विधायक बनाने के बाद बहुत की ईमानदारी, कर्मठता और ज़िम्मेदारी के साथ वे जनता की आवाज उठाते रहे और मध्यप्रदेश के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरने लगे । जो ब्राह्मणवादी मुख्यमंत्रियों [ के एन काटजू (1957-62) और द्वारिका प्रसाद मिश्रा (1963-67) ] और पूंजीवादी लोगों को हजम नहीं हुई क्यूंकी वे लौह खनन के राह में बाधा बन रहे थे। 


सरकार द्वारा जनजातीय हितों की अनदेखी से छुब्ध होकर और मालिक मकबूजा भ्रष्टाचार कांड के कारण उन्होने कांग्रेस से 1959 में इस्तीफा दे दिया और खुल कर बगावत करने लगे। इसलिए भारत की कांग्रेस सरकार ने कुटिल चाल चल के उन्हे पागल घोषित कर दिया और उनसे बस्तर रियासत के प्रशासक की ज़िम्मेदारी छीनकर उनके छोटे भाई विजय चंद्र भंजदेव सौंप दी। जिसका उल्लेख भारत सरकार के राजपत्र गजट इंडिया एक्सट्रा ऑर्डिनरी 5 मई 1961 पोल 111 में किया गया है। विजयचंद्र भंजदेव 12 फरवरी 1961 से 11 जुलाई 1970 तक बस्तर स्टेट के रुलर रहे। उनके बाद उनके पुत्र भरतचंद्र भंजदेव 11 जुलाई 1970 से 18 सितंबर 1996 तक बस्तर रुलर रहे।


जनता का मसीहा 


अपने साथ हुए छल से महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव बहुत दुखी हुए लेकिन हिम्मत नहीं हारी और एक बार फिर से जनजातीय हितों और बस्तर के विकास के लिए काम करना शुरू कर दिया। उनके साथ अपार जन समर्थन था और इससे सरकार घबराई हुई थी। मार्च 1961 में उनका साथ दे रहे लगभग बीस हजार जनजातियों पर तत्कालीन सरकार ने निर्ममतापूर्वक गोलियों चलवाईं जिसके कारण सैकड़ों बेकसूर जनजातीय लोग मारे गए। इस घटना से आहत महाराजा प्रवीर ने नई राजनीतिक पार्टी बनाने का संकल्प लिया और सन 1962 के चुनाव में बस्तर की 10 में 9 सीटें पर जनजातीय लोगों को चुनवाकर विधान सभा में भेजा। 


अब महाराजा प्रवीर के राजनैतिक कद के कारण बाहरी लोगों का जंगल काटना और खनिज उत्खनन असंभव सा हो गया था और पूजीवादी लोग सरकार पर दवाव बनाने लगे थे। सरकार भी महाराजा को रास्ते से हटाने का तरीका ढूढ़ रही थी। 


इसी बीच 25 मार्च 1966 को सरकार को उन्हे रास्ते से हटाने का मौका मिल गया। बस्तर में खनिज उत्खनन, जंगल कटाई, पुलिसिया अत्याचार, भूकमरी गरीबी को लेकर लोग महाराजा के महल के आसपास इकट्ठा थे। उस सभा को स्वयं महाराजा प्रवीर संबोधित कर रहे थे । पुलिस लोगों को इकट्ठा होने से रोक रही थी इसी धक्का मुक्की में एक पुलिस वाले की मृत्यु हो गयी । फिर क्या था उसी पुलिस वाले की मृत्यु का बहाना लेकर सरकार और पुलिस ने निर्दोध लोगों पर समर्पण करने के लिए दबाब बनाया और फिर महल महल में इकट्ठा हुए लोगों से बाहर आने के लिए कहा। जैसे ही लोग बाहर निकले पुलिस का जुल्म शुरू हो गया और बाद में पुलिस महल के अंदर जा कर लोगों को गोलियों भून दिया। इसी क्रम में महाराजा प्रवीर के सीने में 25 गोलिया उतार दी गयी । और इस तरह एक महान जनजातीय नायक को दिन दहाड़े मार डाला गया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पुलिस ने कुल 61 राउंड फाइरिंग की थी जिसमे सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए थे। 


यह जनजातियों दुर्भाग्य रहा है कि जब जब कोई उनकी आवाज बना या तो उसे प्रलोभन देकर शोषको के पाले में घसीट ले जाया गया या विरोध करने पर उसे मौत के घाट उतार दिया गया। यह घटना क्रम आज भी बदस्तूर जारी है। पता नहीं कब जनजातियों को उनका अधिकार और सम्मान मिलेगा ?
आज ऐसे ही एक वीर, सपूत, नायक, महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव का अवतरण दिवस है। यह उनकी 90वीं जयंती है और आज भी बस्तर सहित सम्पूर्ण गोंडवाना में उनके जन्म दिवस पर उन्हे उनकी वीरता और साहस के लिए याद किया जाता है। 
महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव के बिना आप बस्तर की कल्पना भी नहीं कर सकते। चार दशकों के बाद भी बस्तर में उनकी प्रासंगिकता बरकरार है। आज वो शारीरिक रूप से भले उपस्थित न हो लेकिन उनकी सहादत बस्तर के कण कण में व्याप्त है जिसे दशहरे के अवसर पर खुली आँखों से देखा जा सकता है। आज भी वे महाराजा ही नहीं अपितु देवता के समान पूरे बस्तर में पूजे जाते हैं। उन्होने बस्तर को लेकर बहुत ही खूबसूरत सपना देखा था जो आज भी साकार नहीं हो पाया है। अगर बस्तर का विकास और समृद्धि की बात होगी तो निश्चित ही महाराजा प्रवीर के सपनों को साकार किए बिना पूरी नहीं होगी। 


पूरे भारत का जनजातीय समुदाय महाराजा प्रवीर चंद भंजदेव को उनकी 91वीं जयंती पर कोटि कोटि नमन और सेवा जोहार करता है।


डॉ सूर्या बाली “सूरज धुर्वे”