गोंडवाना की शान महारानी रानी दुर्गावती


गोंडवाना वीरांगना रानी दुर्गावती मण्डावी
जन्म - 5/10/1524,  मृत्यु - 24/06/1564


गोंडवाना साम्राज्य ( मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखण्ड, उड़िसा आदि )
11वीं शताब्दी से लेकर 15 वीं शताब्दी तक गढ़ा ( जबलपुर मध्यप्रदेश ) की राजधानी हुआ करती थी, जो कि गोंड राजा मदन शाह के द्वारा बसाया गया था, बाद में उनके वंशज सुपौत्र
गोंड राजा संग्रामशाह ( मृत्यु 1543 ) ने कुल 52 गढ़ स्थापित किये । गढ़ मण्डला को अपनी राजधानी बनाया ।
                  रामनगर शिलालेख और गढ़ेशनृपवर्णनम यह साक्ष्य प्रदान करते है कि उनके अन्तर्गत 52 गढ़ थे | साथ ही कर्नल स्लीमेन ने पूरी सूची भी दिये और गढ़ कहाँ -.कहाँ स्थित है वह भी बताया | मदन महल फोर्ट अब रानी दुर्गावती फोर्ट के नाम से जाना जाता है | बाद में दलपत शाह और रानी दुर्गावती ने संभाला ।


रानी दुर्गावती का विवाह 1542 में गोंडवाना के राजकुमार दलपत शाह ( संग्राम शाह के पुत्र ) के साथ हुआ । कुछ समय बाद रानी को 1545 में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम वीरनारायण रखा गया ।
          लगभग 1545 - 1549 के दौराम दलपत शाह की मृत्यु असाध्य रोग के कारण हुआ । तब उनके पुत्र महज 4 - 5 वर्ष के थे । रानी ने धीरज से काम लेते हुए वीरनारायण को राजगद्दी में बिठाकर स्वयं संरक्षिका के रुप में शासन की बागडोर संभाली ।


सन् 1549 से 1564 तक 15 वर्षो तक गोंडवाना राज्य जनसमुदाय को सुख - समृद्धी व अमन - चैन तथा साहस से भरकर उन्होने राजकाज को संचालित किया । उन्ही दिनों में रानी अपनी राजधानी सिंगौरगढ़ के स्थान पर चौरागढ़ को स्थापित किया । यह सतपुड़ा के पर्वत श्रृंखला पर सुरक्षात्मक दृष्टि से महत्वपूर्ण दुर्ग था । गोंडवाना राजाओं का इतिहास सदैव दयालु व दानवीर एवम् अन्य धर्मों को राजाश्रय देने के लिए प्रसिद्ध था फलत : रानी भी धार्मिक व दानशील थी ।


इसी बीच 1556.में मालवा के सुलतान सुजात खान के बेटे  बाज बहादुर ने आक्रमण कर दिया । रानी के कुशल नेतृत़्व व रणनीति तथा गोंड सैन्य शक्ति के कारण जान बचाकर भाग गया ।
एक स्त्री के हाथों पराजित होने से बाज बहादुर की बड़ी बदनामी हुई । इधर रानी की कृति चारों ओर फैल गयी ।


दिल्ली सल्तनत पर मुगल बादशाह अकबर सत्तारुढ़ हो चुका था । वह 1562 में मालवा के शासक को हरा कर उस पर अधीन कर चुका था । गोंडवाना साम्राज्य की उत्तरी तथा पश्चिमी सीमाएं मुगल सल्तनत से स्पर्श होने लगी थी ।
सन् 1564 में मुगल बादशाह अकबर को एक विधवा रानी के द्वारा गोंडवाना के सुंदर राजकाज को चलाते देखकर बड़ी ईष्या होने लगी । तत्पश्चात मुगल सेना  और गोंडवाना सेना में युद्ध छिड़ना दृष्टिगत था ।



नरई नाले का युद्ध
इसी समय 23 जून 1564 की सुबह रानी के सै़निको और मुगल शासक व कड़ा के सुबेदार आसफ खां के मध्य भयंकर युद्ध शुरु हो गया ।
                 रानी सरमन हाथी पर सवार होकर लोहा लेने निकल पड़ी । वीरनारायण की उम्र लगभग 19 वर्ष हो चुका था, उन्होनें भी 3 बार आसफ खां की सेना को पीछे धकेला और अन्त में घायल हो गया ।
चूंकि आसफ खां की सेना रानी दुर्गावती की सेना से कई गुना सैनिक व घुड़सवार एवं तोपखाने थे | रानी पूरी शाम होते तक मुगल सेना का सामना करती रही और मुगल सेना को कई बार पीछे जाने पर मजबूर किया ।


दिन के अन्त होने पर रानी ने अपने सिपहसलाहकारों को बुलाया और कहा कि हम लोग अभी रात में मुगल सेना पर आक्रमण कर दे, नही तो खुद आसफ खां अपने तोपखाने और गोलाबारुद के साथ गढ़ा से नरई आ जायेगा ।


                  परन्तु मनुवादी सलाहकारों ने धर्म का पाठ पढ़ाते हुए ऐसा न करने का सुझाव दे दिया | यही सलाह मानना रानी के लिए भारी पड़ा।


24 जून 1564 को आसफ खां अपने तोपखाने के साथ नरई आ गया | रानी अपने सरमन हाथी पर सवार होकर युद्ध के लिए निकल पड़ी | हाथी पर सवार होने के कारण आसानी से दुश्मन के तीरबाजों के नजर में आ गई ।


              इसी बीच एक तीर रानी के दांयी कनपटी पल जा लगी जिसे उसने तुरन्त निकाल कर फेंका परन्तु नोंक शरीर पर ही रह गयी, फिर दूसरा तीर रानी के गर्दन पर आ गया और कॉफी रक्त बहने से वह कुछ समय के लिए मूर्छित हो गयी ।
                  उधर वीरनारायण दुश्मनों के छक्के छुड़ाते हुए स्वतन्त्रता के लिए शहीद हो गया ।
रानी होश में आते ही अपने महावत आधार सिंह से कहा कि वो उन्हें मार दे लेकिन वह तैयार नहीं हुए फिर रानी ने अपनी कटार निकाल ली और अपने दोनों हाथों से पकड़कर एक झटके में सीनें में उतार दी । इस तरह गोंडवाना साम्राज्य के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दी । वह किसी भी हालत में मुगलों के हाथों नहीं लगना चाहती थी ।


आज भी नरई नाले के पास रानी दुर्गावती और उनके हाथी सरवन की समाधियां बनी हुई है, जहां पर प्रतिवर्ष जनवरी में विशाल मेला का आयोजन किया जाता है ।


इतिहास साक्षी है कि गोंडवाना की भूमि के रक्षा करने हेतु नारी साहस , सम्मान व शौर्य ,पराक्रम तथा उत्साह व निर्भिकता से गोंड जाति के अदम्य व वीरता का सदैव परिचय कराता रहेगा। 
 
हे रानी माँ आप नारी शक्ति के लिए सदैव स्मरण किये जायेंगे |
आपके ही जैसे युवा - युवतियों ( लया - लयोर ) में भी समाज के सभ्यता - संस्कृति प्रति सम्मान की भावना जागृत हो...इसी मंगल कामना के साथ।