अरब कि मरूभूमी मे चमकता था बुद्ध नामक सितारा

◆ अरब की मरुभूमि में चमकता बुद्ध सितारा


◆ अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन में आतंकवाद बनता अवरोध


◆ अफगानिस्तान में हैं बुद्ध का प्राचीन इतिहास



युवा काफिला,भोपाल-


भौतिक प्रगति ने संसार में  सर्वोच्च स्थान हासिल किया है एवं प्रत्येक देश के पास सुरक्षा के लिए अत्याधुनिक मिसाईले होने के बावजूद आतंकवाद मानवजगत के लिए खतरा बन चुका है। आतंकवाद और मनुवाद ने भारत को तबाही के कगार पर खडा किया है। आंतकवाद और मनुवाद मात्र मनुष्य और आर्थिक समृध्दि को आघात पहुचाने तक सीमित नही है बल्कि विश्वस्तर कि सांस्कृतियों में सबसे जादा वैश्विक बौद्ध प्राचीन स्थलो को नेस्तनाबुत भी किया है। कभी ओसामा बिन लादेन ने तबाह किया, तो कभी आर्थिक समृध्दि के नाम पर उद्योग जगत प्राचीन बौद्ध स्थलों को नष्ट कर रहा है। कभी मनुवादी मीडिया ने हिन्दुत्व का नारा देकर प्राचीन बौद्ध स्थलो पर अतिक्रमण करके उसके अस्तित्व को सबसे ज्यादा नष्ट किया है। तब भी बुद्ध  के धम्म का वैभव पिछले 2600 साल से मानव जगत में यथावत है। हाल ही में आईएसआईएस नाम का आंतकवादी संघठन, अरब कि खाडी देशों में गंभीर संकट बनकर उभरा है जिसने पल्माइरा, सिरीया के प्राचीन स्थलों को नेस्तनाबुत कर दिया है । जहा कभी बुद्ध  के धम्म का सितारा चमकता था।

सम्राट अशोक के सिरीया के प्राचीन पल्माइरा शहर से संबंध थे। इस शहर पर इस्लामिक स्टेट (आईएस) के आतंकवादीयों ने कब्जा कर लिया। यह शहर यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल है। यहां प्राचीन भग्नावशेष हैं जो प्राचीन सांस्कृतिक लिहाज से काफी महत्व रखते हैं। इन धरोहरों को आतंकी संगठन द्वारा नुकसान पहुंचाया गया है। आईएस इससे पहले इराक में प्राचीन धरोहरों को नष्ट कर चुका है। पाल्मीरा पर सीरिया के गृहमंत्री मोहम्मद अल शार का कहना है कि सरकार इस ऐतिहासिक स्थल को बचाने की पूरी कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि दुनिया की भी पल्मीरा को बचाने की जिम्मेदारी है। सीरिया में प्राचीन वस्तुओं की देखभाल के प्रमुख मामुन अब्दुल करीम के मुताबिक सैकड़ों बहुमूल्य प्राचीन कलाकृतियों को ऐतिहासिक स्थल पर मौजूद संग्रहालय से हटाकर सुरक्षित जगह पहुंचा दिया गया है। लेकिन उन सुंदर प्राचीन कलाकृतीयों और कब्रगाहों को बचाना मुश्किल है जो शहर में ही मौजूद हैं, जिन्हें हटाया नहीं जा सकता।



समय बदलता है तो सामाजिक परस्थितिया भी बदलती है, शब्द बदलते है, शब्दों के अर्थ भी बदलते है। संस्कृति के रूप-रंग में बदलाव भी होता है लेकिन उसके मूल रूप को नही बदला जा सकता। सीरिया के प्राचीन शहर पल्माइरा शहर का शब्द  "पिपलपेड" के शब्द का भ्रमीत शब्द है जिसकी जळो को धरती ने संभाले रखा था। इस लेख का मुख्य  स्त्रोत राहूला विश्वविद्यालय, श्रीलंका के कुलपती महान बौद्ध भिक्खु महास्थरवीर डॉ. परवाहेरा पन्नानंदा  के शोध पत्र है। इस शोध से यह स्पष्ट होता है की इस्लाम पूर्व अरब  में बुद्ध के हयात में ही अरर्हं महास्थवीर पन्नया नाम के बौद्ध भिक्खु‍ सिरीया चले गये थे और उनके गृहनगर कि पहचान इसी पल्माइरा में पिपलपेड के रूप में हो चुकी थी। जिसके प्रमाण श्रीलंका में आज भी है। 



राजा एंटीयोगस (231-347), मिश्र का राजा का राजा टालोमी फिलडेल्फे स (285-247), अंतेकित का रजा मैसिडोनिया (मक दुनिया) एंटिगोनस गोनेटस (276-239) उत्तरी अफ्रिका मे साईरीन का राजा मैगास (282-258) और इपिरंस का राजा एलेक्जें6डर (278-255) और सिरीया का राजा थियोस एंटीयोकस तथा द्वितीय एंटीयोकस (260-246) तथा कारिन्थी का राजा एलेक्जेंडर (252-244) इन अरब और ग्रिक के राजाओं से सम्राट अशोक के संबंध मानव कल्याण की सच्चीे लगन के लिए स्थापीत हो चुके थे। जहा सम्राट अशोक ने बौद्ध भिक्षुओं को भेजकर उन बौद्ध  भिक्खुओं ने सच्ची लगन से कार्य किया और अरब से लेकर भारत के वासीयों ने ‘देवानामप्रिर्यदर्शी’ की उपाधी से सम्राट अशोक को सम्मानीत किया। आज भी सम्राट अशोक को अरब की मरूभुमी ने ‘अक्सु‘ के नाम से जाना जाता है।

विश्व बौद्ध समुदाय शाक्यमुनि बुद्ध कि धरती को “बुद्ध” की धरती मानते है ठिक इसी प्रकार अरब में बुद्ध को ‘अरहदी बुदगुबा’ (Arahadi Buduguba) कहा जाता है तथा  इस्लामिक दुनिया के धार्मिक स्थलों के उप्परी गुम्बज को तुप्पे, तुपे और टेपे कहा जाता है एवं  मक्का में पवित्र पूजा स्थल को 'कब्बाह' कहा जाता है। इन शब्दों का मूल स्रोत पालि-प्राकृत भाषा का ‘स्तूप’ शब्द है। जिसका  उच्चारण अरब में कूब्बे-त्युबे और काबा होता है। अरब  के ‘बड़े खलीफा’ अपनी ज्ञानपिपासा को पुष्ट करने के लिए भारतीय बौद्ध भिक्खुओं को सम्मानपूर्वक आमंत्रित कर उनसे धर्मज्ञान ग्रहण करते थे।सम्राट अशोक के समय बौद्ध भिक्खु अलेक्सेन्द्रिया में पहुच चुके थे एवं भारतीय व्यापारीयों ने वहा बस्तिया भी बसा ली थी। 


रोम साम्राज्य के विस्तार का अध्ययन में यह भी देखा की सम्राट अशोक द्वारा भेजे गए धम्मदूतो में महास्थविर धर्मरक्षित थे जिन्होंने प्यासें यूनानी जगत की प्यास बुद्ध के धम्म से बुझाई थी। समय बदला बदल गई दुनिया और भुल गये अरबवासी  अपने अस्थित्व को तभी नही भुला पाये प्राचीन बौद्ध सांस्कृतिक सभ्यता को। आज भी अरब, मिश्र और ग्रिक के  देशो में 'थेराप्युतों' का अपना जीवन भारतीय थेरवादी बौद्ध भिक्खुओ से बहुत अधिक मिलता है। आज इन थेराप्युतों की परम्परा 'थेराप्यूटिक्स' नाम से पाश्चात्य चिकित्सा का एक अंग बन चुकी है। सोचता हूँ की कभी अरब के मरुभूमि में बुद्ध के धम्म  का स्वर्णीम युग रहा। अरब के मरुभूमि में विविध राजवंशो ने चार सहस्त्र वर्षो तक शासन किया यह भी मुझे याद है और अल-अरहर विश्विद्यालय की दीवारों पर आज भी सम्राट अशोक का 'धम्मचक्र' विद्यमान है। यह इन्ही राजवंशो की देन  है। यह भी ज्ञात होता है की मिस्र का यूनानी राजा टॉल्मीन, भारतीय बौद्ध साहित्यों का अनुवाद कराने के लिए उत्सुक था। संसार को मिस्र की सांस्कृतिक सभ्यता ने कुछ दिया तो कभी मिस्र और अरब में बुद्ध के धम्म के का सितारा चमक रहा था। 


एक प्रतिष्ठित इस्लामी विद्वान प्रोफेसर मारगोलियथ (Margoliouth) निम्नलिखित कहना है की  'अल्लाह' "इस प्रणाली के रूप में इस्लाम के नाम का मूल अर्थ" अस्पष्ट है, लेकिन इसकी आधिकारिक व्याख्या अल्लाह के लिए अपनी सम्पूर्ण समर्पण एक व्यक्ति के लिए है। 



'बल्ख' बौद्ध रिकॉर्ड के अनुसार मोहम्मद द्वारा इस्लाम की स्थापना करने से पहले सीरिया और अरब के उत्तरी भागों में बुद्ध के “अरहंत पथ” (Alaha) का अभ्यास यहा की जनता करती थी। शिलालेखात्मक सबूतों से यह तथ्य प्रकट हुऑ है की अरहंत पथ को “अल्लाह" के रूप में    सीरिया और अरब के उत्तरी भागों में स्विकारा गया लगता था। सिरीया के संस्कंति में यह भी दिखा की  महाथविर पुन्ना  द्वारा भगवान बुद्ध के जीवन के निकट समय के दौरान सीरिया और अरब के उत्तरी भागों के क्षेत्र में 'सिनाई अराबा' (अरबी में बौद्ध विहार) स्थापीत किया थाह प्राचीन सीरिया क्षेत्र सिनाई अराबा की पहचान प्राचीन पल्माइरा के  पास  स्पष्ट कि गयी  है और इस क्षेत्र में अरहंत महाथविर पुन्ना द्वारा मिशनरी काम से बुद्ध के शिक्षा को प्रबल प्रवाहीत किया था। और चार बौद्ध विहारों की स्थापना अभयारण्यों में की थी। 



बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर ने अपने खंड 18 पार्ट 3 में सही कहा अफगानिस्तामन से लेकर मध्य‍ एशिया के लोग 100 प्रतिक्षत बौध्द ही थे। सिरीयावासी बुद्ध के अनमोल धम्म रत्न को भुल चुके थे लेकिन उस पल्माइरा के क्षेत्र में प्राचीन स्थालों को सभाले हुऐ थे दुनिया का प्रथम ब्राम्ह्णवादा का आंतकवादी पुष्यरमित्र शुंग जिसने बौद्ध सांस्कृातिक सभ्यता को ध्वस्त करने का सिलसिला चलाया और उसी के कदमों पर चलकर इस्लामिक स्टेट (आईएस) के आतंकवादीयों ने उस प्राचीन पल्माइरा के प्राचीन स्थलों को ध्वस्त किया ।



     Analyst -  Satyajeet Chandrikapure
     Ancient Monuments conservation activist