आरक्षण को दीमक और बारूद बताने वाले तहसीलदार पर शिवराज मेहरबान?

◆ आरक्षण के खिलाफ नायब तहसीलदार ने डाली फेसबुक पर पोस्ट


◆ क्या निलंबित होंगे नायब तहसीलदार या सरकार करती रहेगी पैरवी
◆ मुरैना में उप जिला निर्वाचन अधिकारी के पद पर पदस्थ हैं नायब तहसीलदार शर्मा


       
युवा काफिला,भोपाल-
लॉक डाउन के दौरान आरक्षण को लेकर आजकल बात करना आम बात हो गई हैं। अब ऐसा ही एक मामला मध्यप्रदेश के चंबल अंचल में सामने आया है, जहां पिछले विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे के आधार पर ही वोट पड़े थे। 
मुरैना में पदस्थ एक नायब तहसीलदार ने अपनी फेसबुक वॉल पर आरक्षण के खिलाफ टिप्पणी की है। उन्होंने अपनी पोस्ट में आरक्षण को दीमक और बारूद तक बता डाला। शर्मा की पोस्ट के चंबल अंचल में अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्गों में रोष है लेकिन न तो जिला प्रशासन और न ही राज्य सरकार ने उनके इस आचरण पर अब तक कोई संज्ञान लिया है। 
तहसीलदार शर्मा इन दिनों मुरैना में उप जिला निर्वाचन अधिकारी का काम देख रहे हैं। जिले की कलेक्टर प्रियंका दास ने उन्हें यहां उपचुनाव कराने की जिम्मेदारी सौंप रखी है। 
नायब तहसीलदार नरेश शर्मा ने आरक्षण को लेकर एक विवादित पोस्ट की हैं। जिसमें आरक्षित वर्ग पर आपत्तिजनक टिप्पणीयां की गई हैं।



यह टिप्पणी सिविल सेवा आचरण नियम का खुला उल्लंघन हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसे अधिकारी क्या निष्पक्ष चुनाव करवा पायेंगे? राज्य सरकार इन पर कार्रवाई करेगी या शिवराज सरकार का आश्रय मिलता रहेगा???
नरेश शर्मा की फेसबुक पोस्ट-
आरक्षण एक धोखा, एक नारा, एक बारूद , एक दिमाग जो इस राष्ट्र को खोखला कर रही हैं...हमसे 200 अंकों से भी कम अंक वाले हमारे वरिष्ठ अधिकारी बन जाते हैं... प्रवेश के समय, कट ऑफ के समय,चयन के समय,पदोन्नति के समय, नित्य प्रति एक विशेष वर्ग के वोटों की लालसा में किया गया उपकार इस राष्ट्र के भविष्य को तिलांजलि देने का कार्य करता है... यदि आरक्षण देने से असमानता दूर करनी थी... तो सबसे पहले पार्टियों को अपने अध्यक्ष व पदाधिकारियों के पद आरक्षित करने थे... मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के पद आरक्षित करने थे... लेकिन ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि अपने हाथों से अपना गला कोई नहीं काटता... बड़े दुख की बात है कि अपनी योग्यता के दम पर सर्वोच्च पदों पर पहुंचने वाले नेता गण भी वोट बैंक के लिए 70 वर्षों के बाद भी आरक्षण रूपी बैसाखी पर निर्भर है ...इस कुप्रथा के समाप्त हुए बिना इस राष्ट्र में योग्यता का सम्मान असंभव प्रतीत होता है।



क्या कहता हैं चंबल का चुनावी गणित
चम्बल में 16 सीटों पर उपचुनाव होना हैं जिनमें 6 आरक्षित वर्ग की सीटे हैं। कुल मध्य प्रदेश की जिन 24 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें 9 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं तो एक सीट अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है। इसके अलावा 14 सीटें सामान्य जातियों के लिए हैं। इन सभी सीटों पर करीब 20 फीसदी दलित मतदाता हैं। दलित बहुल और उत्तर प्रदेश से सटा होने के चलते इस इलाके में दलितों का बोलबाला है। ऐसे में नायब तहसीलदार की सोशल मीडिया पोस्ट कही सरकार का खेल न बिगाड़ दे ज्ञात हो कि इससे पहले विधानसभा चुनाव 2018 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का माई का लाल वाला बयान कुछ लोगों को रुष्ट कर गया था। अब बारी आरक्षित वर्ग की हैं जिनके दम पर सरकार में बैठे लोग उपचुनाव में जीत की ताल ठोंक रहे हैं।
यह हैं नियम 
मध्यप्रदेश सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के नियम 3(1),नियम(9) व (10) में कहा गया हैं कि शासकिय सेवक ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा जो उनके लिए अवांछनीय हो । किसी प्रकार को अस्पृश्यता या पक्षपात से संबंधित अथवा बिना अनुमति मीडिया या किसी ऐसे माध्यम से संबंध रखता हो, जिसमें अहसान की नीति की आलोचना हो।