◆ बिना अखबार के नेता/संगठन पंखहीन पक्षी की तरह है - डॉ.आंबेडकर
◆ संगठन के पंख है मीडिया
युवा काफिला, भोपाल-
अक्सर हमारे समाज के पढ़े-लिखे अधिकारी, कर्मचारी, बुद्धिजीवी मीडिया का रोना रोते हैं। निश्चित रूप से आज की डेट में मीडिया की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण हो गई है। मनुवादी मीडिया हमारे मुद्दों पर मौन रहता है तो सवाल है कि अगर हमें अपनी बात प्रचारित और प्रसारित करनी है तो हमें अपना मीडिया खड़ा करना ही पड़ेगा।
जो कुछ हमारे लोग मीडिया क्षेत्र में काम कर रहे हैं या फिर सीमित संसाधनों से मीडिया चला रहे हैं उनको हतोत्साहित करने के बजाय उनका अखबार/पत्रिका खरीदना पड़ेगा और उनका चैनल भी देखना पड़ेगा।
मीडिया के प्रति हमारे नेताओं/संगठनों की उदासीनता
बहुजनों में प्रिंट मीडिया की पहुंच तो बढ़ी ही है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो बहुजन समाज के अशिक्षित वर्ग तक भी पहुंच गया है जो टीवी पर दिखाई गई खबर को सच समझकर विश्वास कर लेता है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद ही बहुजन नेताओं को अन्ना आंदोलन से सबक लेना चाहिए था क्योंकि इसको मीडिया ने खड़ा किया था लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
जब भी कोई बहुजनन पार्टी सत्ता में होती है तो न तो अपना मीडिया खड़ी करती है और ना ही मीडिया क्षेत्र में काम कर रहे बहुजन समाज के लोगों की मदद करती है।
सोशल मीडिया में बहुजन समाज की नई पीढ़ी की पहुंच बढ़ी है। लेकिन बहुजन नेताओं का सोशल मीडिया के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण बना हुआ है। जबकि सभी ब्राह्मणवादी पार्टियों ने सोशल मीडिया का जमकर उपयोग किया है क्योंकि इसके माध्यम से युवा पीढ़ी तक संदेश देना आसान हो गया है। सोशल मीडिया का प्रयोगकर ब्राह्मणवादी शक्तियां अपना प्रचार एवं बहुजन पार्टियों का दुष्प्रचार करने में सफल रही है।
बाबा साहब डॉ आंबेडकर
बाबा साहब ने अपने जीवन काल में आर्थिक संसाधनों से जूझते हुए भी मीडिया के महत्व को समझा और हर समय पर अखबार निकालकर अपनी बात को अपने समर्थकों के बीच प्रचारित और प्रसारित किया। सर्वप्रथम 31.1.1920 को बाबा साहब ने मूकनायक का प्रकाशन प्रारंभ किया। इसके प्रकाशन पर उन्हें कटु विरोध का सामना करना पड़ा। उस समय के प्रतिष्ठित समाचार पत्र "केसरी" ने "मुकनायक" का प्रकाशन प्रारंभ होने की खबर छापने तक से इंकार कर दिया था। ज्ञातव्य है कि "केसरी" समाचार पत्र तिलक जी निकालते थे।
बाबा साहब ने शोषित वर्गों के उत्थान के अपने अभियान को आगे बढ़ाने के लिए 1924 में बहिष्कृत हितकारिणी सभा नामक सामाजिक संगठन की स्थापना की। इस संस्था के सहयोग से उन्होंने अछूत वर्ग सहित सभी पिछड़ी जातियों के सामाजिक शैक्षणिक आर्थिक राजनीतिक समता के निर्माण का कार्य करना शुरू किया। उस समय उन्हें लगा कि अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए उन्हें किसी माध्यम की आवश्यकता है। उन्हें यह एहसास हुआ कि बिना अखबार के नेता/संगठन पंखहीन पक्षी की तरह है। इसलिए उन्होंने 3.4.1927 को "बहिष्कृत भारत" का प्रकाशन शुरू किया। अखबार को चलाने के लिए आर्थिक संसाधन जुटाना तब और भी कठिन था जितना कि आज है।
"बाबा साहब ने अपने नए प्रकाशन का इस्तेमाल अपने विचारों को प्रतिपादित करने, अपने लक्ष्य को परिभाषित करने और अपने आलोचकों को प्रतिउत्तर देने के लिए किया। वे पत्रकारिता के उच्च मानकों से समझौता करने के लिए तैयार नहीं थे। वे अन्य संपादकों की तरह कभी पूंजीवादियों के एजेंट नहीं बने। उन्होंने कभी अपने अखबार को धन कमाने का जरिया नहीं बनाया।"- धनंजय कीर
पत्रकारिता का पहला कर्तव्य है-बिना किसी प्रयोजन के समाचार देना, निर्भयता पूर्वक उन लोगों की निंदा करना जो गलत रास्ते पर जा रहे हो फिर चाहे वह कितने ही शक्तिशाली क्यों ना हो। पूरे समुदाय के हितों की रक्षा करने वाली नीति को प्रतिपादित करना जिसमें भारत का मुख्य धारा का मीडिया असफल रहा है।
भारतीय प्रेस के बारे में डॉ अंबेडकर के विचार और बतौर पत्रकार उनका आचरण आज भी उन लोगों लिए आदर्श है, जो मीडिया का मानव विकास के उपकरण के रूप में उपयोग करना चाहते हैं।
बाबा साहब ने लिखा-भारत में पत्रकारिता व्यापार बन गई है। पत्रकारिता स्वयं को जनता के जिम्मेदार सलाहकार के रूप में नहीं देखती। भारतीय प्रेस में समाचार को सनसनीखेज बनाना, तार्किक विचारों के स्थान पर अतार्किक जुनूनी बातें रखना और जिम्मेदार लोगों की बुद्धि को जागृत करने के बजाए, गैर जिम्मेदार लोगों की भावनाएं भड़काना आम है। मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता होती है कि इसके कुछ सम्मानित अपवाद हैं परंतु उनकी संख्या बहुत कम है और उनकी आवाज कभी सुनी नहीं जाती।"
कांशीराम साहब
मान्यवर को मुख्यधारा का मीडिया हमेशा मनुवादी लगा जो कि हमेशा तथाकथित उच्च जातियों के एजेंडे को पूरे देश का एजेंडा बताकर प्रचार करता रहता है। इसलिए उनको बहुजन समाज का (के लिए) स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर मीडिया विकसित करने की हमेशा लालसा बनी रही। इसी प्रयास में उन्होंने पहले "द अनटचेबल" फिर "अप्रैस्ड इंडियन" मासिक निकाला। इसके पश्चात उन्होंने बहुजन टाइम्स नामक दैनिक समाचार पत्र हिंदी अंग्रेजी मराठी में निकाला। परंतु अफसोस! की धनाभाव में सभी समाचार पत्रों की अकाल मृत्यु हो गई। इसके बाद भी मान्यवर निराश नहीं हुए और बहुजन संगठक हिंदी साप्ताहिक का अनवरत 22 वर्षों तक प्रकाशन किया और साथ ही पंजाबी मराठी गुजराती तेलुगु आदि भाषाओं में भी साप्ताहिक पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन करते और करवाते रहें। परंतु यह सब बहुत आगे नहीं बढ़ सका और स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर बहुजन प्रचारतंत्र का उनका सपना अधूरा रहा। तमाम संसाधनों के होने के बावजूद भी उनके स्वघोषित अनुयाई आज एक भी अखबार निकालने में अक्षम है।
बामसेफ
बामसेफ संगठन का भी जबसे निर्माण हुआ है तब से अपने सीमित संसाधन के बावजूद हिंदी मराठी गुजराती पंजाबी तेलुगु इंग्लिश भाषाओं में मूलनिवासी टाइम्स पाक्षिक का प्रकाशन कर समाज को जागरुक करने में लगा है। वह अपना मीडिया खड़ा करने की पूरी कोशिश कर रहा है। लेकिन समाज से जितना समर्थन मिलना चाहिए था नहीं मिला।
बामसेफ और उसके कई समर्थक साथियों ने यूट्यूब चैनल एमएनटी न्यूज़ नेटवर्क (www.youtube.com/MNTNewsNetwork) भी प्रारंभ किया है जो समाज की ऑनलाइन न्यूज़ त्वरित गति से प्रसारित कर रहा है। आप इसे सब्सक्राइब कर इस पर प्रतिदिन बहुजन समाज से संबंधित समाचार ऑनलाइन देख सकते हैं।
विश्व पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस
प्रत्येक वर्ष 3 मई को मनाया जाता है। 'संयुक्त राष्ट्र महासभा' ने 1993 से 3 मई को 'अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस' की घोषणा की थी। इस दिन के मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार के उल्लघंनों की गंभीरता के बारे में जानकारी देना है।
संदर्भ:
1.मूलनिवासी टाइम्स हिंदी पाक्षिक (1-15 मई 2018)
2.विकिपीडिया
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1673513682737343&id=1590787001010012