युवा काफिला, भोपाल-
लॉक डाउन के बीच आज अनेक परिवार सड़कों पर है। वे परिवार जो घरों में कैद है, उनके परिवार का कोई ना कोई सदस्य इन सड़कों पर या तो धक्के खा रहा है या अपने घर लौटने की जद्दोजहद में है। इसी बीच आज 15 मई को हम विश्व परिवार दिवस को मनाने जा रहे हैं।
भारत सभ्यता का देश है यहां सिंधु घाटी की सभ्यता से एक परिवार का सिद्धांत उभरा है। समाज पहले स्त्री प्रधान हुआ करता था । यहां पर सभी निर्णय स्त्री ही लिया करती थी। समय ने करवट ली और स्त्रियों के कार्यो पर पुरुषों ने अपना एकाधिकार जमा लिया।
आज 15 मई विश्व परिवार दिवस है। भारत परिवारों की भूमि है। यहां प्राणी जगत में परिवार सबसे छोटी इकाई है या फिर इस समाज में भी परिवार सबसे छोटी इकाई है। यह सामाज की मौलिक इकाई है। परिवार के अभाव में मानव जीवन की कल्पना भी दुर्लभ है। परिवार से अलग होकर उसके अस्तित्व को सोचा भी नहीं जा सकता है। हमारी सभ्यता कितने ही परिवर्तनों को स्वीकार करके अपने को परिष्कृत कर ले, लेकिन परिवार संस्था के अस्तित्व पर कोई भी आंच नहीं आई। वह बने और बन कर भले टूटे हों लेकिन उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता है। उसके स्वरूप में परिवर्तन आया और उसके मूल्यों में परिवर्तन हुआ लेकिन उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता है। हम चाहे कितनी भी आधुनिक विचारधारा में हम पल रहे हो लेकिन अंत में अपने संबंधों को विवाह संस्था से जोड़ कर परिवार में परिवर्तित करने में ही संतुष्टि अनुभव करते हैं। भारत ‘परिवारों’ का देश है | शायद यही कारण है की, न चाहते हुए भी आज हम विश्व के सबसे बड़े जनसँख्या वाले राष्ट्र के रूप में उभर चुके हैं, और शायद यही कारण है की आज तक ‘जनसँख्या दबाव’ से उपजे चुनौतियों के बावजूद, एक ‘परिवार’ के रूप में, ‘जनसँख्या नीति’ बनाये जाने की ज़रुरत महसूस नहीं की ! यह एक सुखद संयोग हो सकता है की पूरे विश्व का आध्यामिक “गुरु” हमारा भारत देश होते हुए भी, यहाँ के “लोग”, सबसे ज्यादा भावना प्रधान होते हुए, प्रेम, मोह, परिवार आदि से खुद को मुक्त नहीं कर पाते | यह भी इत्तेफाक ही है की भारत की राजनीति में भी “परिवार” के “जोर” के पुनरावृत्तियाँ होती रही हैं | “परिवार” शब्द हम भारतीयों के लिए अत्यंत ही “आत्मीय” होता है।
इतिहास :-संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने 1994 को अंतर्राष्ट्रीय परिवार वर्ष घोषित किया था। समूचे संसार में लोगों के बीच परिवार की अहमियत बताने के लिए हर साल 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाने लगा है। 1995 से यह सिलसिला जारी है। परिवार की महत्ता समझाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दिन के लिए जिस प्रतीक चिह्न को चुना गया है, उसमें हरे रंग के एक गोल घेरे के बीचों बीच एक दिल और घर अंकित किया गया है।
परिवार कुछ लोगों के साथ रहने से नहीं बन जाता। इसमें रिश्तों की एक मज़बूत डोर होती है, सहयोग के अटूट बंधन होते हैं, एक-दूसरे की सुरक्षा के वादे और इरादे होते हैं। हमारा यह फ़र्ज़ है कि इस रिश्ते की गरिमा को बनाए रखें। हमारी संस्कृति में, परंपरा में पारिवारिक एकता पर हमेशा से बल दिया जाता रहा है।परिवार एक संसाधन की तरह होता है। परिवार की कुछ अहम ज़िम्मेदारियां भी होती हैं। इस संसाधन के कई तत्व होते हैं।
परिवार को साथ लाने का मौका
आज विश्व भर में एकल परिवार की जैसे लहर सी फैल रखी है। बच्चे बड़े होकर नौकरी क्या करने लगते हैं, उन्हें खुद के लिए थोड़ा स्पेस चाहिए होता है और वह स्पेस उन्हें लगता है अलग रहकर ही मिल पाता है। मैट्रो सिटी में तो अब खुद मां बाप ही बच्चों को नौकरी और शादीशुदा होने के बाद अलग परिवार रखने की सलाह देते हैं। लेकिन अकेला रहने की एवज में समाज को काफी कुछ खोना पड़ रहा है। परिवार से अलग रहने पर बच्चों को ना तो बड़ों का साथ मिल पा रहा है जिसकी वजह से नैतिक संस्कार दिन ब दिन गिरते ही जा रहे हैं और दूसरा, इससे समाज में बिखराव भी होने लगने लगता है।
एकल परिवार हैैं पसंद
कभी नौकरी की चाह में तो कभी आजादी की चाह में आजकल के युवा अकेला रहना पसंद करते हैं और आजकल के एकल परिवार में पति-पत्नी को लगता है कि वह अपने बच्चे की परवरिश खुद सही ढंग से कर पाएंगे जो कई मायनों में गलत भी नहीं है लेकिन जो बात बड़े बुजुर्गों के साथ पल-बढ़कर प्राप्त होती है वह अलग ही है। संस्कारों का पाठ एकल परिवार में रहकर पढ़ा पाना बहुत मुश्किल है और यही वजह है कि मैट्रो में बच्चों का नैतिक विकास बहुत कम हो रहा है और समाज में नैतिकता के पैमाने घटते जा रहे हैं। समाज में घटती नैतिकता के दुष्परिणाम हम सबके सामने हैं ही। बच्चों का अनैतिक कार्यों में शामिल होना, सेक्स के प्रति उनकी हिंसात्मक प्रतिक्रिया, प्रेम का गलत मतलब, स्कूल में पढ़ने की जगह मोबाइल जैसी चीजों में समय बर्बाद करना, मां बाप का कहना ना मानना ऐसी कई घटनाएं है जिनकी वजह से यह साबित हो गया है कि गिरता नैतिक स्तर समाज को डुबो रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए साल 2010 में 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाने का निर्णय लिया था ताकि समाज में परिवार के महत्व को जनता तक पहुंचाया जा सके। हालांकि भारत में एकल परिवारवाद अभी ज्यादा नहीं फैला है। आज भी भारत में ऐसे कई परिवार हैं जिनकी कई पीढ़ियां एक साथ रहती हैं और कदम-कदम पर साथ निभाती हैं। लेकिन दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में स्थिति धीरे-धीरे बिगड़ने लगी है। उम्मीद है जल्द ही समाज में परिवार की अहमियत दुबारा बढ़ने लगेगी और लोगों में जागरुकता फैलेगी कि वह एक साथ एक परिवार में रहें जिसके कई फायदे हैं।
संयुक्त परिवार की मिसाल
पांच पीढिय़ों का एक चूल्हा- रोजमर्रा की बढ़ती जरूरतें और व्यक्तिगत सुख की चाह में जहां संयुक्त परिवार अब गुजरे वक्त की बात हो गए वहीं बुलंदशहर के राजगढ़ी गांव में पांच पीढिय़ां एक छत के नीचे रह रही हैं। कुनबे में परदादा से लेकर परपोती तक 46 सदस्य हैं लेकिन उनका एक चूल्हा है। सुख-सुविधाओं के लिए एकल परिवार की चाह रखने वालों के लिए संयुक्त परिवार एक मिसाल है। औरंगाबाद क्षेत्र के राजगढ़ी गांव निवासी जयकरण ङ्क्षसह पूर्वजों से मिले संस्कार को बखूबी निभा रहे हैं। दादा, पिता और चाचा से मिले संस्कार वे पूरी कुशलता से नई पीढ़ी के दिल और दिमाग में भर रहे हैं। आज उनकी पांच पीढिय़ां एक छत के नीचे ही गुजर-बसर कर रही हैं। आए दिन दर्जनों ऐसे मामले सामने आते हैं कि लोग अपने फायदे के लिए परिजनों की जान तक की परवाह नहीं करते। मां-बाप की हत्या कर देने तक की खबरें आती हैं, जबकि दो-चार दशक पहले तक तो कोई ऐसा सोच भी नहीं सकता था। एक मिसाल जयकरण का परिवारएकल परिवारों के लिए जयकरण का परिवार मिसाल है। उनकी एक, दो या तीन पीढ़ी नहीं बल्कि पूरी पांच पीढिय़ां एक साथ रह रही हैं।
15 मई का इतिहास
15 मई भारत और दुनिया के इतिहास में कई मायनों में अहम है। इसी दिन एलीसन गारग्रीब्स नाम की महिला बिना आक्सीजन सिलेंडर के एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचकर इतिहास रचा था। इसी दिन भगत सिंह और राजगुरु के साथ हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर लटकने वाले सुखदेव थापर का जन्म हुआ था। स्वादिष्ट फास्ट-फूड को आप तक पहुंचाने वाली फास्ट फूड चेन मैकडॉनल्ड्स की शुरुआत 15 मई को ही हुई थी। रिचर्ड और मौरिस मैकडॉनल्ड्स नाम के दो भाइयों ने 15 मई 1940 को कैलिफोर्निया के सैन बर्नार्डीनो में छोटा सा रेस्तरां खोला था। आज वही छोटा सा रेस्तरां दुनिया की सबसे बड़ी फास्ट फूड चेन बन चुका है। 100 से ज्यादा देशों में इसके 35,000 से ज्यादा आउटलेट्स हैं। इसके अलावा बॉलिवुड की धक-धक गर्ल माधुरी दीक्षित का जन्म भी 15 मई के दिन ही हुआ है।
1242: दिल्ली के सुलतान मुइजुद्दीन बहराम शाह की सेना ने विद्रोह कर दिया और सुलतान की हत्या कर दी।
1817: समाज सुधारक देवेन्द्र नाथ टैगोर का जन्म।
1907: भगत सिंह और राजगुरु के साथ हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर लटकने वाले सुखदेव थापर का जन्म।
1923: जॉनी वॉकर, भारतीय हास्य अभिनेता का जन्म।
1935: मास्को मेट्रो लोगों के लिए खोला गया।
1940: दो भाइयों रिचर्ड और मौरिस मैकडॉनल्ड्स ने कैलिफोर्निया के सैन बर्नार्डीनो में मैकडॉनल्ड्स शुरू किया।
1957: ब्रिटेन के सप्लाई मंत्रालय ने घोषणा की कि प्रशांत महासागर में किए गए श्रृखंलाबद्ध परीक्षणों के अंतर्गत पहले हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया गया था।
1958: सोवियत संघ ने स्पूतनिक-3 रॉकेट लांच किया।
1967: बॉलिवुड की धक-धक गर्ल माधुरी दीक्षित का जन्म।
1993: भारत के 'प्रथम आर्मी कमाण्डर इन चीफ़ फील्ड मार्शल के.एम. करिअप्पा का निधन।
1995: एलीसन हारग्रीब्स बिना आक्सिजन सिलेंडर के एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली पहली महिला बनीं।
1999: कुवैत सरकार ने महिलाओं को संसदीय चुनावों में मताधिकार का हक दिया।
2002: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इराक पर प्रतिबंधों का अनुमोदन किया।
2005: 20 साल के बाद कनाडा में भारत का विमान उतरा।
2008: श्रीलंका सरकार ने आतंकवादी संगठन लिट्टे पर प्रतिबन्ध दो साल के लिए बढ़ाया।
2008: भारतीय मूल की मंजुला सूद ब्रिटेन में मेयर बनने वाली पहली एशियाई महिला बनीं।