◆ UAPA व्यक्तियों और संगठनों की कुछ गैरकानूनी गतिविधियों की प्रभावी रोकथाम के लिए और जुड़े मामलों के लिए एक अधिनियम हैं
◆ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम)
UAPA -Unlawful Activities (Prevention) Act अधिनियम एक भारतीय कानून है। जिसका उद्देश्य भारत में गैरकानूनी गतिविधियों संघों की प्रभावी रोकथाम है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत की अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ निर्देशित गतिविधियों से निपटने के लिए शक्तियों को उपलब्ध कराना था।
◆ वर्तमान में केवल संगठनों को 'आतंकवादी संगठन' के रूप में नामित किया गया है, लेकिन UAPA, 1967 में बदलाव के बाद, एक ‘व्यक्ति’ को संदिग्ध आतंकवादी भी कहा जा सकता है।
युवा काफिला, भोपाल-
एक और जहां भारत कोरोनावायरस से लड़ रहा है वहीं दूसरी ओर पिछले कुछ दिनों से UAPA चर्चा में बना है। कश्मीरी पत्रकार मसरत जहरा UAPA के तहत मामला दर्ज किए जाने से इस कानून पर चर्चाएं हो रही है । एक्टिविस्ट इसे सरकार का एक 'हथियार’ बताते हैं। आखिर क्यों इस कानून को 'लोकतंत्र विरोधी' कहा गया?
यह कानून क्या है? और इस पर विवाद क्यों है?
UAPA कानून?
Unlawful activities (prevention) act (UAPA) गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम कानून 1967 में लाया गया था। गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) संशोधन बिल, 2019 को गृह मामलों के मंत्री अमित शाह ने 8 जुलाई, 2019 को लोकसभा में पेश किया था जिसे 24 जुलाई को लोकसभा द्वारा पास कर दिया गया था और इस प्रकार 2019 में इसमें संशोधन किया गया। यह बिल गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) एक्ट, 1967 का संशोधन है।
जिसके बाद संस्थाओं ही नहीं व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित किया जा सकेगा। इतना ही नहीं किसी पर शक होने से ही उसे आतंकवादी घोषित किया जा सकेगा। फिलहाल सिर्फ संगठनों को ही आतंकवादी संगठन घोषित किया जा सकता था। इसमें खास बात यह है कि इसके लिए उस व्यक्ति का किसी आतंकी संगठन से संबंध दिखाना भी जरूरी नहीं है। आतंकी का टैग हटवाने के लिए भी कोर्ट के बजाय सरकार की बनाई रिव्यू कमेटी के पास जाना होगा। बाद में कोर्ट में अपील की जा सकती है।
इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत दी गई बुनियादी आजादी पर तर्कसंगत सीमाएं लगाने के लिए लाया गया था। पिछले कुछ सालों में आतंकी गतिविधियों से संबंधी TADA और POTA जैसे कानून खत्म कर दिए गए, लेकिन UAPA मौजूद रहा।
इतिहास
राष्ट्रीय एकता परिषद, संविधान (सोलहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 द्वारा नियुक्त राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रवाद पर समिति की सर्वसम्मति से सरकार द्वारा स्वीकृति के लिए, संसद को कानून द्वारा, हितों में उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार दिया गया था। भारत की संप्रभुता और अखंडता पर:
- भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता;
- शांतिपूर्वक और हथियारों के बिना एकत्र होने का अधिकार,
- फॉर्म एसोसिएशंस या यूनियनों का अधिकार।
इस विधेयक का उद्देश्य भारत की अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ निर्देशित गतिविधियों से निपटने के लिए शक्तियां उपलब्ध कराना था। इस बिल को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया और 30 दिसंबर 1967 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई। संशोधित अधिनियम इस प्रकार हैं:
- गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन अधिनियम, 1967
- आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 1972
- प्रत्यायोजित विधान प्रावधान (संशोधन) अधिनियम, 1986
- गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन अधिनियम, 2004
- गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन अधिनियम, 2008
- गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन अधिनियम, 2012
- गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन अधिनियम, 2019
पोटा द्वारा संसद द्वारा वापस लिए जाने के बाद यह अंतिम संशोधन अधिनियमित किया गया था। हालांकि, 2004 में संशोधन अधिनियम में, पोटा के अधिकांश प्रावधानों को फिर से शामिल किया गया था। 2008 में मुंबई हमलों के बाद बाद, इसे और मजबूत किया गया था। सबसे हालिया संशोधन 2019 में किया गया है। वस्तुओं और कारणों के बयान के अनुसार, विधेयक गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में संशोधन करता है ताकि गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने के लिए इसे और अधिक प्रभावी बनाया जा सके, और वित्तीय कार्रवाई कार्य में की गई प्रतिबद्धताओं को पूरा किया जा सके। बल (मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण से निपटने के लिए एक अंतरसरकारी संगठन)।
UAPA का ‘गलत’ इस्तेमाल कैसे?
UAPA कानून के बहुत बड़े दायरे में काम करता है। इसी वजह से इसका इस्तेमाल अपराधियों के साथ-साथ लेखकों, आतंक संबंधी मामलों के वकील और एक्टिविस्ट्स पर भी किया जा सकता है ।
UAPA के सेक्शन 2(o) में कहा गया है कि भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर सवाल करना भी गैरकानूनी गतिविधि है। लेकिन महज सवाल करना कैसे गैरकानूनी हुआ? और किस बात को सवाल करना माना जाएगा? ऐसे ही इस कानून के तहत ‘भारत के खिलाफ असंतोष’ फैलाना भी अपराध है, लेकिन कानून में कहीं भी ‘असंतोष’ को परिभाषित या उसका मतलब नहीं बताया गया है।
यही बात गैरकानूनी संगठनों, आतंकवादी गैंग और संगठनों की सदस्यता को लेकर है। आतंकी संगठन वो होते हैं, जिन्हें सरकार घोषित करती है। इसका सदस्य पाए जाने पर आजीवन कारावास हो सकता है। लेकिन कानून में 'सदस्यता' की कोई परिभाषा नहीं है। इसी आधार पर कई एक्टिविस्टों पर इस कानून के तहत केस दर्ज हुआ है।
◆ UAPA कानून का सेक्शन 43D (2) किसी शख्स के पुलिस कस्टडी में रहने के समय को दुगना कर देता है। इस कानून के तहत 30 दिन की पुलिस कस्टडी मिल सकती है। वहीं न्यायिक हिरासत ऐसे अपराध में 90 दिन की हो सकती है, जिनमें किसी और कानून के तहत कस्टडी सिर्फ 60 दिन की होती।
◆ अगर किसी शख्स पर UAPA के तहत केस दर्ज हुआ है, तो उसे अग्रिम जमानत नहीं मिल सकती। अगर पुलिस ने उसे छोड़ दिया हो तब भी अग्रिम जमानत नहीं मिल सकती। ऐसा इसलिए है क्योंकि कानून के सेक्शन 43D (5) के मुताबिक, कोर्ट शख्स को जमानत नहीं दे सकता, अगर उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया केस बनता है।
गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत गिरफ्तारी के मामले (Famous arrest under the The Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967)
1. बिनायक सेन, एक डॉक्टर और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, उन्हें 2007 में कथित रूप से अवैध नक्सलियों का समर्थन करने के लिए हिरासत में लिया गया था। अरुण फरेरा।
2.भारतीय माओवादी कोबाड घांदी पर 2009 में यूएपीए के साथ आरोप लगाया गया था।
3.लालगढ़ के आंदोलन से संबंध रखने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के प्रवक्ता गौर चक्रवर्ती।
4. थिरुमुरूगन गांधी एक तमिलनाडु आधारित मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं जिन्होंने 17 मई के आंदोलन की स्थापना की। UAPA में आरोपों की एक श्रृंखला के बाद राजद्रोह (124-A) सहित उन पर मामला दर्ज किया गया क्योंकि उन्होंने बेंगलुरु हवाई अड्डा अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किया था।
5.मेहदी मसरूर विश्वास जिन पर आईएसआईएल के ट्विटर अकाउंट को चलाकर आईएसआईएल का समर्थन करने का आरोप था।
6. सुधीर धवाले, दलित अधिकार कार्यकर्ता, 2018 में गिरफ्तार
7. महेश राउत, 2018 में गिरफ्तार आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता
8. वरवारा राव, कवि, 2018 में गिरफ्तार
9. सुरेंद्र गडलिंग, दलित और आदिवासी अधिकार वकील, 2018 में गिरफ्तार
10. शोमा सेन, प्रोफेसर, 2018 में गिरफ्तार
11. सुधा भारद्वाज, आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता, 2018 में गिरफ्तार
12. रोना विल्सन, अनुसंधान विद्वान, 2018 में गिरफ्तार
वरवर राव कवि, 2018 में।
13. गौतम नवलखा, पत्रकार और पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (PUDR) के सदस्य, 2018 में गिरफ्तार
14. 2018 में आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज ।
15.अखिल गोगोई कार्यकर्ता, कृषक मुक्ति संग्राम समिति, 2019 में
16. 2 नवंबर, 2019 को एलन सुुहैब, ताहा फ़स्सल सीपीआईएम कार्यकर्ता, कोझीकोड, केरल,
17. उमर खालिद, छात्र, जेएनयू, 2020 में
18. शारजील इमाम, छात्र, जेएनयू, अपने चिकेन नेक राजद्रोह भाषण के लिए दिसंबर, 2019 में
19. ताहिर हुसैन, आम आदमी पार्टी (आप) के पार्षद 2020 दिल्ली में उनकी कथित भूमिका
20. मसरत ज़हरा, पत्रकार, 2020 में।
21. गौहर गिलानी, कश्मीरी लेखक और पत्रकार, 2020 में। 22. मीरन हैदर और सफूरा ज़गर, छात्र कार्यकर्ता, 2020
इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सरकार इस कानून का प्रयोग अपने विरोधी लोगों और संस्थाओं की आवाज को दबाने के लिए कर सकती है। चूंकि इसमें संसद को मौलिक अधिकारों पर उचित प्रतिबन्ध लगाने की शक्ति प्रदान की गयी है इसलिए यह मामला बहुत संजीदा हो जाता है।
अतः सरकार को इस मसले पर सूझबूझ से काम लेना होगा ताकि देश की एकता और अखंडता को बनाये रखते हुए मौलिक अधिकारों की रक्षा भी की जा सके। हमें उम्मीद है कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 देश की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने में सक्षम होगा।