◆ अयोध्या में राम मंदिर निर्माण समतलीकरण के दौरान मिली मूर्तियों पर हो रही है बयानबाजी
◆ ट्विटर पर हैशटैग बौद्धस्थल अयोध्या हो रहा ट्रेंड
◆ लोगों ने यूनेस्को से की निष्पक्ष खुदाई की मांग
◆ लोगों का दावा-अयोध्या में मिले खुदाई के अंश बौद्ध धर्म से जुड़े हैं
◆ सम्राट अशोक के शासन के हैं अवशेष
युवा काफिला, भोपाल-
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण समतलीकरण के दौरान खुदाई से मिली मूर्तियों से आज एक नई चर्चा को बल मिला हैं। मूर्तियों के अवशेष मिलने पर बयानबाजी के बीच माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर हैैैश टैग बौद्धस्थल अयोध्या पहले नम्बर पर ट्रेंड कर रहा है। यहां कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि समतलीकरण के दौरान जो अवशेष मिले हैं वह सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान की है। कुछ ट्विटर यूजर ने यूनेस्को से रामजन्मभूमि परिसर की निष्पक्ष खुदाई की मांग की है।
लोगों का कहना है कि समतलीकरण के दौरान खुदाई में जो अवशेष मिले हैं वह शिवलिंग नहीं बल्कि बौद्ध स्तंभ हैं। इसी के साथ लोग ट्विटर पर बौद्ध धर्म की कलाकृतियां और समतलीकरण के दौरान मिले अवशेष की तस्वीर साझा कर तुलना कर रहे हैं। इससे पहले ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के महासचिव खालिक अहमद खान ने दावा किया था कि जो अवशेष मिले हैं, वे बौद्ध धर्म से जुड़े हुए हैं।
बता दें कि समतलीकरण के दौरान मिले अवशेष को राम मंदिर ट्रस्ट ने मंदिर के अवशेष और खंडित मूर्तियां बताया है। वहीं मुस्लिम पक्ष ने दलील दी है कि ये मूर्तियां राम मंदिर का अवशेष नहीं हैं। इस पर अयोध्या विवाद में सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील रहे जफरयाब जिलानी ने कहा है कि यह सब एक प्रोपगेंडा है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि एएसआई के सबूतों से यह साबित नहीं होता है कि 13वीं शताब्दी में वहां कोई मंदिर था।बता दें कि समतलीकरण के दौरान मिले अवशेष को राम मंदिर ट्रस्ट ने मंदिर के अवशेष और खंडित मूर्तियां बताया है।
वहीं मुस्लिम पक्ष ने दलील दी है कि ये मूर्तियां राम मंदिर का अवशेष नहीं हैं। इस पर अयोध्या विवाद में सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील रहे जफरयाब जिलानी ने कहा है कि यह सब एक प्रोपगेंडा है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि एएसआई के सबूतों से यह साबित नहीं होता है कि 13वीं शताब्दी में वहां कोई मंदिर था।
दरअसल इस मामले में अयोध्या निवासी विनीत कुमार मौर्य ने साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। विनीत का दावा था कि विवादित स्थल के नीचे कई अवशेष दबे हुए हैं जो अशोक काल के हैं और इनका कनेक्शन बौद्ध धर्म से है। याचिका में दावा किया गया था कि बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले उस जगह पर बौद्ध धर्म से जुड़ा ढांचा था। मौर्य ने अपनी याचिका में कहा था, 'एएसआई की खुदाई से पता चला है कि वहां स्तूप, गोलाकार स्तूप, दीवार और खंभे थे जो किसी बौद्घ विहार की विशेषता होते हैं।' मौर्य ने दावा किया था, 'जिन 50 गड्ढों की खुदाई हुई है, वहां किसी भी मंदिर या हिंदू ढांचे के अवशेष नहीं मिले हैं।'
The Prince Of Travellers (यात्रियों के राजकुमार)
दरअसल, यहां पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे और यहां हिंदुओं का एक प्रमुख और भव्य मंदिर था। मललसेकर, डिक्शनरी ऑफ पालि प्रापर नेम्स, भाग 1, पृष्ठ 165 के अनुसार अयोध्यावासी हिंदू गौतम बुद्ध के बहुत बड़े प्रशंसक थे और उन्होंने उनके निवास के लिए वहां पर एक विहार का निर्माण भी करवाया था। संयुक्तनिकाय में उल्लेख आया है कि बुद्ध ने यहां की यात्रा दो बार की थी। इस सूक्त में भगवान बुद्ध को गंगा नदी के तट पर विहार करते हुए बताया गया है। इसी निकाय की अट्ठकथा में कहा गया है कि यहां के निवासियों ने गंगा के तट पर एक विहार बनवाकर किसी प्रमुख भिक्षु संघ को दान कर दिया था। वर्तमान अयोध्या गंगा नदी के तट पर स्थित नहीं है।
आज लगभग सभी चेनलों पर यह दिखाया जा रहा है कि अयोध्या में राम मन्दिर की जगह का समतलीकरण में जो अवशेष मिले हैं वह हिन्दू मन्दिर के हैं। यह दावा बिल्कुल सन्देह्जनक है।
इनमें 29 कमल की पत्तियों वाला जो अवशेष है वह अजंता के बौद्ध नकासी से मिलता है। इसमें 29 कमल पत्तियों का अर्थ है कि बुद्ध ने 29 वर्ष की आयु में गृह त्याग किया था।
इसी प्रकार एक खभे पर जो कलश होने का दावा है वह बुद्ध की मूर्ती की नकासी है।
यदि सभी खम्भों और अन्य अवशेषों का अध्ययन किया जाए तो वे बौद्ध अवशेष ही सिद्ध होंगे।
अत: इन अवशेषों के किसी हिन्दू मन्दिर के होने का दावा सरासर सन्देह्जनक है।
.........एस.आर.दारापुरी, आई.पी.एस. से.नि.
प्रेम प्रकाश की वाल से साभार