श्रम कानून/ राज्य सरकारों ने श्रम कानून बदले, आखिर क्यों हो रहा विरोध

◆ सभी कानून अगले 1000 दिन के लिए निष्प्रभावी रहेंगे


◆ लॉकडाउन को करीब 50 दिन पूरे


◆ सरकार ने श्रम कानूनों में बदलाव करने शुरू कर दिए हैं


◆ श्रम कानूनों में भाजपा शासित राज्यों ने किए बदलाव


◆ केंद्र सरकार ने श्रम कानून के बदलाव का किया स्वागत


◆ श्रम कानून पर RSS के मजदूर संघ ने किया विरोध


◆ उत्तर प्रदेश सरकार तीन साल तक देगी छूट


◆ बिल्डिंग एंड अंडर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स एक्ट 1996 लागू रहेगा


◆ उद्योगों पर अब 'पेमेंट ऑफ वेजेज एक्ट 1936' की धारा 5 ही लागू होगी


◆ मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह सप्ताह ने 72 घंटे के ओवरटाइम को मंजूरी दी


◆ मध्यप्रदेश में 20 से ज्यादा श्रमिक वाले ठेकेदारों को पंजीकरण कराना होता था, इस संख्या को बढ़ाकर अब 50 कर दिया


युवा काफिला, भोपाल-


कोरोना लॉक डाउन के दौरान देश को आर्थिक संकट से उबारने के लिए देशभर की सरकारों ने श्रम कानून में बदलाव किए हैं। जैसे कि आज उद्योग-धंधे ठप हो चुके हैं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ठप हो गई है। इससे उबरने और पुनः उद्योगों को पटरी पर लाने के लिए राज्य सरकार ने श्रम कानूनों में बदलाव करने शुरू कर दिए हैं। जिसके विरोध में मजदूरों के हितों की रक्षा करने वाले संगठनों ने आवाज उठाना शुरू कर दी हैं। देश के छह राज्य अपने श्रम कानूनों में कई बड़े बदलाव कर चुके हैं


श्रम कानूनों में बदलाव की शुरूआत राजस्थान की गहलोत सरकार ने की । इसके बाद फिर मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने बदलाव किया। वहीं 7 मई को उत्तर प्रदेश और गुजरात ने भी लगभग 3 साल के लिए श्रम कानूनों में बदलावों का ऐलान कर दिया। अब महाराष्ट्र, ओडिशा और गोवा सरकार ने भी अपने यहां नए उद्योगों को आकर्षित करने और नेस्तानाबूद हो चुकी अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए उद्योगों श्रम कानूनों में बदलाव किए हैं।


उत्तर प्रदेश शासन तीन साल तक देगी यह छूट


उत्तर प्रदेश के योगी सरकार ने अगले तीन साल के लिए उद्योगों को श्रम कानूनों से छूट देने का फैसला लिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंत्री परिषद की बैठक में 'उत्तर प्रदेश चुनिंदा श्रम कानूनों से अस्थाई छूट का अध्यादेश 2020' को मंजूरी दे दी गई, ताकि फैक्ट्रियों और उद्योगों को तीन श्रम कानूनों तथा एक अन्य कानून के प्रावधान को छोड़कर बाकी सभी श्रम कानूनों से छूट दी जा सके। 


कानून में संशोधन के बाद उत्तरप्रदेश में अब केवल बिल्डिंग एंड अंडर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स एक्ट 1996 लागू रहेगा। बाकी सभी कानूनो को अगले 1000 दिन के लिए शिथिल किया हैं। उद्योगों को वर्कमैन कंपनसेशन एक्ट 1923 और बंधुवा मजदूर एक्ट 1976 का पालन करना होगा। उद्योगों पर अब 'पेमेंट ऑफ वेजेज एक्ट 1936' की धारा 5 ही लागू होगी। श्रम कानून में बाल मजदूरी व महिला मजदूरों से संबंधित प्रावधानों को सुरक्षित रखा गया है। औद्योगिक विवादों का निपटारा, व्यावसायिक सुरक्षा, श्रमिकों का स्वास्थ्य व काम करने की स्थिति संबंधित कानून समाप्त हो गए। ट्रेड यूनियनों को मान्यता देने वाला कानून भी खत्म कर दिया गया है। अनुबंध श्रमिकों व प्रवासी मजदूरों से संबंधित कानून भी समाप्त कर दिए गए हैं। उद्योगों को अगले तीन माह तक अपनी सुविधानुसार शिफ्ट में काम कराने की छूट दी गई है।


गुजरात सरकार ने किया यह बदलाव


गुजरात की विजय रुपाणी सरकार ने श्रम कानूनों में बदलाव किया। मुख्यमंत्री ने कहा, 'कम से कम 1,200 दिनों के लिए काम करने वाली सभी परियोजनाओं या पिछले 1,200 दिनों से काम कर रही परियोजनाओं को श्रम कानूनों के सभी प्रावधानों से छूट दी जाएगी। सरकार ने लॉग डाउन के बाद नए निवेश को बढ़ाने के लिए यह कदम उठाए हैं।'


इसके अलावा, नए उद्योगों के लिए 7 दिन में जमीन आवंटन की प्रक्रिया को पूरा किया जाएगा। नए उद्योगों को काम शुरू करने के लिए 15 दिन के भीतर हर तरह की मंजूरी प्रदान की जाएगी। चीन से काम समेटने वाली जापानी, अमेरिकी, कोरियाई और यूरोपियन कंपनियों को लाने का लक्ष्य है। गुजरात ने नए उद्योगों के लिए 33 हजार हेक्टेयर भूमि को चिन्हित किया है। नए उद्योगों के रजिस्ट्रेशन व लाइसेंस आदि की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी गई है। नए उद्योगों को न्यूनतम मजदूरी एक्ट, औद्योगिक सुरक्षा नियम और कर्मचारी मुआवजा एक्ट का पालन करना होगा। उद्योगों को लेबर इंस्पेक्टर की जांच और निरीक्षण से मुक्ति कर दी गई है। अपनी सुविधानुसार कंपनियों को अपने उद्योगों को प्रदेश में शिफ्ट में परिवर्तन करने का अधिकार दिया गया है।


मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने कागजी कार्रवाई कम की


मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने औद्योगिक विवाद अधिनियम और कारखाना अधिनियम सहित प्रमुख अधिनियमों में संशोधन किए हैं। प्रदेश में सभी कारखानों में कार्य करने की अवधि को 8 घंटे से बढ़कर 12 घंटे कर दिया है। सप्ताह में 72 घंटे के ओवरटाइम को मंजूरी दी गई है और कारखाना नियोजक उत्पादकता बढ़ाने के लिए सुविधानुसार शिफ्टों में परिवर्तन कर सकेंगे। सरकार ने राज्य में अगले 1000 दिनों (लगभग ढाई वर्ष) के लिए श्रम कानूनों से उद्योगों को छूट दे दी है।


श्रम कानून में संशोधन के बाद छूट की इस अवधि में केवल औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 लागू रहेगी। 1000 दिनों की इस अवधि में लेबर इंस्पेक्टर उद्योगों की जांच नहीं कर सकेंगे। उद्योगों का पंजीकरण/लाइसेंस प्रक्रिया 30 दिन की जगह 1 दिन में ऑनलाइन पूरी होगी। प्रदेश में अब दुकानें सुबह 6 से रात 12 बजे तक खुल सकेंगी जबकि पहले ये समय सुबह 8 बजे से रात 10 बजे तक था।


कंपनियां अतिरिक्त भुगतान कर सप्ताह में 72 घंटे ओवर टाइम करा सकती हैं और शिफ्ट भी बदल सकती हैं। कामकाज का हिसाब रखने के लिए पहले 61 रजिस्टर बनाने होते थे और 13 रिटर्न दाखिल करने होते थे। संशोधित लेबर कानून में उद्योगों को एक रजिस्टर रखने और एक ही रिटर्न दाखिल करने की छूट दी गई है। प्रदेश में 20 से ज्यादा श्रमिक वाले ठेकेदारों को पंजीकरण कराना होता था, इस संख्या को बढ़ाकर अब 50 कर दिया गया है। शिवराज सरकार ने 50 से कम श्रमिक रखने वाले उद्योगों और फैक्ट्रियों को लेबर कानूनों के दायरे से बाहर कर दिया गया है। संस्थान सुविधानुसार श्रमिकों को रख सकेंगे। श्रमिकों पर की गई कार्रवाई में श्रम विभाग व श्रम न्यायालय का हस्तक्षेप नहीं होगा।


गोवा-ओडिशा-महाराष्ट्र में अहम बदलाव 


गोवा, महाराष्ट्र और ओडिशा की सरकार ने भी 1948 के कारखानों अधिनियम के तहत श्रम कानूनों में ढील दी है। इन राज्यों ने कारखानों में कार्य करने का समय 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे करने की अनुमति दे दी है। सप्ताह में 72 घंटे के ओवरटाइम को मंजूरी दी गई है। इन राज्य सरकार ने कोरोना वायरस महामारी की वजह से तीन महीने तक श्रम कानूनों में ढील देने का एलान किया है। दोनों राज्यों ने कहा कि श्रमिकों को अतिरिक्त घंटों के लिए अतिरिक्त भुगतान किया जाएगा। 


आरएसएस का BMS संगठन विरोध में


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (BMS) ने भी श्रम कानूनों में किए जा बदलाव को लेकर अपना विरोध जताया। मजदूर संघ के महासचिव विरजेश उपाध्याय ने कहा, 'भारत में वैसे ही श्रम कानूनों का पालन कड़ाई से नहीं होता और जो हैं भी उन्हें भी निलंबित या खत्म किया जा रहा है। हम इसे अस्वीकार करते हैं। देश में बेरोजगारी दर बढ़ रही हैं और नौकरियों आ रही हैं वहीं लोगों से दबाव बनाकर इस्तीफा लिया जा रहा हैं । मजदूर संघ राज्य सरकारों के इस कदम का समर्थन नहीं करता और इसके विरोध के लिए हम कार्ययोजना बनाएंगे।


श्रम कानून के बदलाव से उत्पन्न होने वाले खतरे


1.श्रम यूनियनों/संगठनों को आशंका है कि उद्योगों को जांच और निरीक्षण से मुक्ति देने से कर्मचारियों का शोषण बढ़ेगा।


2. शिफ्ट व कार्य अवधि में बदलाव की मंजूरी मिलने से हो सकता है लोगों को साप्ताहिक अवकाश न मिले। प्रतिदिन काम के घंटे बढ़ जाए हालांकि, कहीं- कहीं ओवर टाइम देने की बात कही गई है।


3.श्रमिक यूनियनों को मान्यता न मिलने से कर्मचारियों के अधिकारों की आवाज कौन उठाएगा , जिससे शोषण बढ़ेगा। 


4. उद्योग-धंधों को ज्यादा देर खोलने से वहां श्रमिकों को डबल शिफ्ट करनी पड़ सकती है। हालांकि, इसके लिए भी ओवर टाइम का प्रावधान किया गया है।


5. पहले प्रावधान था कि जिन उद्योग में 100 या ज्यादा मजदूर हैं, उसे बंद करने से पहले श्रमिकों का पक्ष सुनना होगा और अनुमति लेनी होगी। अब ऐसा नहीं होगा.


6. श्रमिक संगठनों को आशंका है कि मजदूरों के काम करने की परिस्थिति और उनकी सुविधाओं पर निगरानी खत्म हो जाएगी।


7. आशंका है कि व्यवस्था जल्द पटरी पर नहीं लौटी तो उद्योगों में बड़े पैमाने पर छंटनी और वेतन कटौती शुरू हो सकती है।


8. ग्रेच्युटी से बचने के लिए उद्योग, ठेके पर श्रमिकों की हायरिंग बढ़ा सकते हैं।