◆ परिचर्चा
प्रसव पश्चात अवसाद (PPD: Postpartum Depression)
युवा काफिला, भोपाल-
माँ दुनिया की उस खुबसुरत महिला का नाम है, जो एक बच्चे को नौ महीने तक अपने पेट में बड़े प्यार से पालती है | माँ बनना किसी भी नारी के लिए एक बहुत ही सुखद एवं खुबसुरत अनुभूति होता है, जिस सुख को पाने के लिए संसार की प्रत्येक महिला लालायित होती है, भारतीय दृष्टिकोण से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है | जब कोई महिला अपने हसीन सपने एवं उत्साह के साथ माँ बनती हैं, तो इसका सकारात्मक प्रभाव खुद महिला पर तो पड़ता ही है, इसके साथ ही बच्चे के शारीरिक एवं मानसिक विकास पर भी पड़ता है अर्थात बच्चा मानसिक एवं शारीरिक रूप से आकर्षक एवं सशक्त होगा, तात्पर्य बच्चे का समायोजन समाज में काफी अच्छा होगा |
जब किसी महिला में माँ बनने के प्रति उत्साह या खुशी में कमी पाई जाती है या माँ बनने के पश्चात महिला में किसी तरह का निराशा या नकारात्मक सोंच या घृणा उत्पन्न होती है, तो इसे एक मानसिक विमारी के रूप में देखा जाता है, जिसे ‘प्रसव पश्चात अवसाद’ (ppd: postpartum depression) कहा जाता है | इसका प्रत्यक्ष प्रभाव महिला के मानसिक एवं शारीरिक पक्ष पर पड़ता ही है, इसके साथ ही बच्चे के मानसिक एवं शारीरिक विकास को भी प्रभावित करता है |
‘प्रसव पश्चात अवसाद’ (ppd: postpartum depression) के लक्षण किसी भी महिला में बच्चे को जन्म देने के 4-6 महीने के अन्दर उत्पन्न हो सकता है, कभी-कभी एक वर्ष के अन्दर तक इसके लक्षण महिला में देखने को मिलते है. इस बिमारी से अधिकांशतः वैसी महिला पीड़ित होती है, जो पहली बार बच्चे की माँ बनी है |
एक अध्ययन में पाया गया है, कि जो भी महिला पहली बार माँ बनती है और अगर वह दो सप्ताह तक अपने बच्चे को स्तनपान नहीं कराती है तो उसमें ‘प्रसव पश्चात अवसाद’ होने का खतरा अत्यधिक बन जाता है |
यह अवसाद का एक प्रकार है, जिसे ‘प्रसव पश्चात अवसाद’ कहा जाता है, जो एक मनोवैज्ञानिक बिमारी है | अतः अवसाद के लक्षण महिला में कम से कम एक सप्ताह तक लगातार बने रहना अनिवार्य होता है, जो निम्नलिखित है:
लक्षण:
◆ ऐसा लगता है, जैसे एक जाल में फस गई हूँ, जिसका सामना करना कठिन हो रहा है
◆ मनोदशा का निम्न होना
◆ उदासी, चिंता, नकारात्मक सोंच
◆ खूब रोने का मन करना
◆ अपने आप को दोषी समझना
◆ लगातार चिडचिडा होना
◆ सिर दर्द, शरीर दर्द, धुंधला दिखाई देना
◆ भूख एवं नींद में गड़बड़ी
◆ उर्जा की कमी, थकान महसूस होना
◆ ध्यान एवं एकाग्रता की कमी होना
◆ रूचि में कमी होना, निराशा एवं उम्मीद की कमी का होना
◆ लोगो से मिलने की इच्छा न होना या लोगों से दूरी बनाना
◆ बच्चे में भी ध्यान का न होना, या एक तरह से बच्चे के प्रति उदासीन होना
◆ आत्महत्या करने के बारे में सोचना
कारण:
‘प्रसव पश्चात अवसाद’ (ppd) के होने के कारणों का पूर्णतः ज्ञान मनोवैज्ञानिकों को अभी तक नहीं है, परन्तु मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोधो के परिणाम के आधार पर, इसके बहुत सारे कारण हो सकते है, जो निम्नलिखित हैं:
◆ सबसे बड़ा कारण पार्टनर (पति) के साथ लगाव/ प्यार की कमी या सहयोग की कमी से हो सकता है
◆ एक तरह का झीझक, संकोच, एवं आत्मविश्वास मे कमी का होना।
◆ प्रसव के पश्चात शारीरिक परिवर्तन
◆ एक माँ के रूप में बच्चे के प्रति अत्यधिक चिंता एवं डर का होना
◆ प्रसव में कठिनाइ एवं तकलीफ का होना
◆ पारिवारिक सहयोग/ सहायता की कमी
◆ आर्थिक कठिनाई
◆ अकेलापन का अहसास, कोई नजदीकी दोस्त का न होना
◆ पहले से कोई मानसिक समस्या होना
◆ हार्मोनल परिवर्तन, खून की कमी, रक्त चाप कि समस्या, चयापचय की समस्या
◆ पेशाब की अनियमितता,
◆ अनियमित नींद एवं भूख का होना
◆ स्तनपान की समस्या
सुझाव/ बचाव:
◆ किसी के दबाव (माता-पिता, सास-ससुर, एवं अन्य संबंधी) में आकर माँ बनने का रिस्क नहीं लेना चाहिए।
◆ शारीरिक एवं मानसिक रूप से तैयार होने के बाद ही, बच्चे के बारे सोंचना चाहिए।
◆ गर्भावस्था के पहले ही पूरी एवं सही स्वास्थ्य जानकारी लेने कि आवशयकता होती है, जिसके अधार पर पूरा ध्यान दिया जा सके, ताकि किसी तरह की कोई कठिनाई का सामना न करना पड़े ।
◆ हेल्थ की जाँच समय-समय पर जरुर करवाते रहें ताकि आवश्यकतानुसार उपचार हो सके।
◆ किसी तरह का कोई अनुचित पदार्थ का सेवन न करें, जैसे कोई नशा, दर्द की दवा या कोई गंभीर बिमारी की दवा इत्यादि।
उपचार:
‘प्रसव पश्चात अवसाद’ (ppd) की आशंका होने पर, बिना देर किए ही एक सक्षम मनोवैज्ञानिक के संपर्क में जाने कि आवश्यकता होती है, जो इस समस्या के समाधान में आवश्यक सहायता प्रदान करते है. जो निम्न है:
◆ अगर इस समस्या का जल्दी समाधान चाहिए तो इसके लिए पार्टनर (पति), परिवार, दोस्त एवं रिश्तेदार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो उसे मानसिक एवं आर्थिक सहायता प्रदान करते है, जिससे तकलीफ कम हो जाती है.
◆ एक मनोवैज्ञानिक, बच्चे की माँ को मानसिक रूप से तैयार करता है, ताकि बच्चे के उत्तरदायीत्व को सही तरीके से उठाने में सक्षम हो सके
◆ शारीरिक क्रिया-कलाप समस्या से निजात पाने में मदद करती है.
◆ मेडिटेशन मानसिक शांति के लिए एक उपयुक्त साधन है.
◆ रिलैक्सेशन थेरेपी कि भूमिका अत्यधिक होती है.
◆ कोगनिटिव बिहेवियर थेरेपी इसके लिए एक उपयुक्त समाधान प्रदान करता है.
इन सब के अतिरिक्त एक अच्छा और संतुलित खाना, 7-8 घंटे की अच्छी नींद लेनी चाहिए, जीवन को खुशीपूर्वक जीने की कोशिश करना एवं समाज में लोगों से मिलते-जुलते रहने कि आवश्यकता होती है, ताकि अपने दुःख-तकलीफ को एक दूसरे के साथ साझा किया जा सके ।
Dr Raj Kishore Ram
Assistant Professor,
Deptt. of Psychology,
R. B. College, Dalsingsarai