मध्यप्रदेश उपचुनाव/ महंगी पड़ी सिंधिया को भाजपा से दोस्ती, लॉक डाउन पीरियड में ही नहीं बैठ पा रही पटरी

◆ बीजेपी में गठबंधन को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म 
◆ महंगी पड़ी सिंधिया को भाजपा की दोस्ती 
◆ लॉक डाउन के दौरान भाजपा से नहीं बैठ रही पटरी


◆ ग्वालियर-चंबल संभाग में कुल 34 सीटे हैं जिसमें से 15 सीटों पर होना हैं उपचुनाव


 युवा काफिला,भोपाल-


पूर्व केंद्रीय मंत्री और अब भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बड़ी उम्मीदों के साथ भाजपा के साथ नाता जोड़ा था और उनके साथ आए थे 22 बागी विधायक जिन्होंने की थी अपनी ही सरकार से बगावत।


लॉक डाउन के दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया और भाजपा के बीच में तल्ख़ियां बढ़ना शुरू हो गई  हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भारी दबाव के बाद भी मंत्रिमंडल में उनके समर्थकों को केवल दो मंत्री पद दिए गए । सूत्रों की माने तो सिंधिया अपने 12 समर्थकों को मंत्री बनाने हेतु प्रयासरत थे परंतु  ज्योतिरादित्य सिंधिया को केवल दो ही मंत्री तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत से ही संतोष करना पड़ा। सिंधिया के लगातार दबाव के बावजूद भाजपा और वरिष्ठ केंद्रीय नेतृत्व ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को कोई खास तवज्जो नहीं दी। सूत्रों की माने तो सिंधिया समर्थक और पूर्व विधायक, महाराज को केंद्र में मंत्री बनाना चाहते हैं। इसलिए मंत्री गोविन्द सिंह प्रदेश कार्यालय में मीटिंग कर रहे है।


भाजपा के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता नाराज होकर लॉक डाउन में कैद है । वही ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक प्रदेश कार्यालय में मीटिंग पर मीटिंग कर रहे हैं और लगातार ज्योतिरादित्य सिंधिया को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए दबाव बनाए जा रहे हैं।


ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस ने 2018 में किया था शानदार प्रदर्शन


भाजपा के चार से पांच बार के विधायक, मंत्री पद लेने की जुगत में लगे हुए हैं । वही मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने हेतु दबाव बनाने के लिए दिल्ली की दौड़ भी लगा रहे हैं । ज्ञात हो कि मध्य प्रदेश के उपचुनाव में 24 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, इनमें अधिकतर सीटें ग्वालियर चंबल इलाके की है। जहां भाजपा पिछले विधानसभा चुनाव में अपेक्षाकृत कम सीटें जीत पाई थी, जिसके कारण भाजपा के खाते में केवल.... सीटे जीत पाई थी और पूर्व कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के बदौलत ही मध्यप्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बन पाई थी।


सीटों को छोड़कर सागर, भोपाल, मालवा की 6 सीटें कांग्रेस कम अंतर से जीती थी। कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में गए सिंधिया समर्थकों काे टिकट मिलना तय है। साफ है कि वे कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाएंगे।


उपचुनाव की सीटें


ग्वालियर-चंबल की सीटें


ग्वालियर मुख्य: प्रद्युम्न सिंह तोमर ने 92 हजार 55 वोट हासिल कर भाजपा के जयभान सिंह पवैया को 21 हजार 44 वोट से हराया था, लेकिन अब सिंधिया भाजपा के हो गए हैं।


ग्वालियर पूर्व: लगातार तीसरी बार लड़े कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल ने भाजपा के सतीश सिकरवार को 17 हजार 819 वोट से हराया। उनके भाजपा में जाने से कांग्रेस को प्रत्याशी खोजने में दिक्कत आएगी।


डबरा: तीसरी बार विधायक बनीं इमरती देवी ने भाजपा के प्रत्याशी कप्तान सिंह को 57 हजार 446 वोट से हराया। वे सिंधिया खेमे की है।


सुमावली: भाजपा के अजब सिंह कुशवाह को 13 हजार 313 वोट से हराकर कांग्रेस के एंदल कंषाना ने 8.41% ज्यादा वोट हासिल किए थे।


मुरैना और दिमनी : पिछले चुनाव में भाजपा के रुस्तम सिंह और शिवमंगल सिंह तोमर चुनाव हारे। अब भाजपा को बढ़त मिल सकती है।


अंबाह: कमलेश जाटव ने निर्दलीय प्रत्याशी नेहा किन्नर को 7 हजार 547 वोट से हराया। यहां भाजपा के गब्बर सखवार तीसरे नंबर पर रहे थे।


मेहगांव: भाजपा के राकेश शुक्ला को कांग्रेस के ओपीएस भदौरिया ने 25 हजार 814 वोट से हराकर 15.92% ज्यादा लिए थे। सिंधिया की वजह से यहां कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगेगी।


गोहद: कांग्रेस प्रत्याशी रणवीर जाटव ने भाजपा के लाल सिंह आर्य को 23 हजार 989 वोट से हराया और 18.64% वोट ज्यादा लिए थे। अब भाजपा के लिए आसान होगी और कांग्रेस यहां कमजोर होगी।


भांडेर: भाजपा प्रत्याशी रजनी प्रजापति यहां कांग्रेस प्रत्याशी रक्षा सरोनिया से 39 हजार 896 वोट से हार गई थीं।


 करैरा : कांग्रेस प्रत्याशी जसमंत जाटव ने 64 हजार 201 वोट हासिल कर भाजपा प्रत्याशी राजकुमार खटीक को 14 हजार 824 वोट से हराया था, लेकिन अब कांग्रेस का वोट बैंक कम हो सकता है।


 पोहरी : भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद भारती तीसरे नंबर पर रहे और कांग्रेस प्रत्याशी सुरेश धाकड़ ने बसपा के कैलाश कुशवाह को 7 हजार 938 वोटों से हराया। बसपा यहां फिर जोर लगा सकती है।


 बमौरी: महेंद्र सिंह सिसौदिया ने भाजपा के बृजमोहन सिंह को करीब 28 हजार वोटों से हराया था। वे कांग्रेस में मंत्री भी रहे।


अशोकनगर: भाजपा के लड्‌डूराम कोरी को जजपाल जज्जी ने 9 हजार 730 वोट से हराया था।


मुंगावली: कांग्रेस से बृजेंद्र सिंह यादव ने भाजपा के कृष्ण पाल सिंह को 2 हजार 136 वोट से हराया था।


जौरा : कांग्रेस से बनवारी लाल शर्मा ने बसपा के मनीराम धाकड़ को 15 हजार 173 वोट से हराया था और भाजपा प्रत्याशी सूबेदार सिंह तीसरे नंबर पर रहे थे। शर्मा के निधन से यह सीट खाली हो गई है।


मालवा अंचल की सीटें


सुवासरा: कांग्रेस के टिकट पर हरदीप डंग ने भाजपा के राधेश्याम पाटीदार काे हराया था। वे केवल 350 वोेट से ही जीत दर्ज कर सके थे। डंग ने दो बार भाजपा प्रत्याशी राधेश्याम पाटीदार को शिकस्त दी थी। उनके इस्तीफा देने का लाभ भाजपा को होगा।
अनूपपुर: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे बिसाहूलाल सिंह भी मंत्री न बनाए जाने से नाराज थे। 2013 के चुनाव में रामलाल राैतेल ने उन्हें हराया था, लेकिन पिछले चुनाव में बिसाहूलाल ने राैतेल काे करीब 10 हजार वाेट से हराया था।
आगर : इस सीट से भाजपा के मनोहर ऊंटवाल ने कांग्रेस के विपिन वानखेड़े को हराया था। इसके पूर्व भी इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा है। ऊंटवाल के निधन के बाद यह सीट खाली हो गई है। सहानुभूति लहर और सरकार गिरने का फायदा भाजपा को मिलेगा।
बदनावर : राजवर्धन सिंह दत्तीगांव ने कांग्रेस से चुनाव लड़कर भाजपा प्रत्याशी भंवरसिंह शेखावत को हराया था। वे 40 हजार से ज्यादा मतों से जीते थे और बड़ी जीत दर्ज की थी। क्षेत्र में उनका प्रभाव है। कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद यहां पार्टी कमजोर होगी। कांग्रेस को उनका विकल्प खोजना होगा। भाजपा फायदा उठाएगी।
हाटपिपल्या : इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी मनोज चौधरी ने भाजपा के दीपक जोशी काे हराया था। वैसे इस सीट पर भाजपा का दबदबा रहा है, लेकिन इस चुनाव में चौधरी जीते थे। चौधरी ने 13 हजार से ज्यादा मतों से जोशी को हराया।
सांवेर : स्वास्थ्य मंत्री रहे तुलसी सिलावट ने भाजपा के राजेश सोनकर को करीब तीन हजार मतों से हराया था। आमतौर पर इंदौर जिले की सीटों पर भाजपा का दबदबा रहा है। सिलावट ने जीत दर्ज कर भाजपा को झटका दिया था। उनके इस्तीफे से कांग्रेस को झटका लगा है।
सांची: स्कूल शिक्षा मंत्री रहे प्रभुराम चौधरी कांग्रेस से चुनाव जीते थे। पूर्व में इस सीट से भाजपा के गौरीशंकर शेजवार चुनाव जीतते रहे हैं। 2018 में हुए चुनाव में उनके बेटे मुदित शेजवार को चौधरी ने करीब दस हजार वोटों से हराया था। चौधरी सिंधिया समर्थक हैं।


तीसरा मोर्चा हो गया है सक्रिय


पूर्व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत की तात्कालिक वजह राज्यसभा टिकट की दावेदारी को माना जा रहा है, ऐसे में कई दिग्गज कांग्रेसियों को दरकिनार कर दलित नेता फूलसिंह बरैया को टिकट देने के पीछे ग्वालियर-चंबल अंचल के जातिगत गणित को बताया जा रहा है। बदले सियासी घटनाक्रम में मुरैना की जौरा विधानसभा के साथ बागी विधायकों की सीट पर भी उपचुनाव हो सकते हैं। इनमें भिंड-मुरैना, दतिया-शिवपुरी की छह सीटें आरक्षित हैं और यहां बरैया एक चिरपरिचित चेहरा है। ऐसे में सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद बरैया को यूं तरजीह देने से कांग्रेस के लिए कुछ हद तक "डैमेज कंट्रोल" हो सकता है।


बागी विधायकों के सीटों का गणित


जिन सीटों पर उपचुनाव होना है, उनमें 15 ग्वालियर-चंबल अंचल की सीटें हैं। इन विधायकों की ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व, मुरैना, सुमावली, दिमनी, पोहरी, मेहगांव, मुंगावली, बामोरी को छोड़कर 6 सीटें अंबाह, गोहद, डबरा, भांडेर, करैरा, अशोकनगर आरक्षित हैं। यहां बसपा का कोर वोटर भाजपा-कांग्रेस के समीकरण गड़बड़ाने की स्थिति में रहता है। 


बसपा करती है उपचुनाव से परहेज


बसपा अक्सर उपचुनाव से परहेज करती है और यदि बदले सियासी घटनाक्रम में किसी सीट पर प्रत्याशी उतरने का मन बनाती भी है तो भी जिस तरह अभी तक बसपा के दो विधायक सरकार के साथ खड़े हैं, कांग्रेस को उसे साधना मुश्किल नहीं होगा। इसीलिए अपने पाले में मुश्किल लग रही राज्यसभा सीट पर बरैया को उतारा गया है ताकि हार होने पर भी ग्वालियर चंबल संभाग में सिंधिया के कारण कमजोर हुई कांग्रेस को उपचुनाव में एक चेहरा मिल सके।


2 अप्रैल के आंदोलन के बाद हुए विधानसभा चुनाव में दिखी थी ताकत: 


ग्वालियर-चंबल अंचल में भाजपा की बड़ी हार को 2 अप्रैल का एससी/एसटी एक्ट के समर्थन में हुआ आंदोलन भी माना गया था। साथ ही अजाक्स के बड़े कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के माई के लाल बयान के बाद सवर्णों के एक धड़े ने भाजपा से दूरी बना ली थी और दलित वोट बिखर कर कांग्रेस के खाते में गया वहीं बसपा का भी प्रदर्शन भी बेहतर हुआ।


बागी विधायकों की सीटों पर बसपा रहा है निर्णायक फैक्टर


बागी विधायकों की सीटों पर बसपा के कोर वोटर की मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के राजनीति में तीसरे धड़े की ज्यादा गुंजाइश न होने के बावजूद इन सीटों से बसपाई विधानसभा पहुंचते रहे हैं। बसपा के टिकट पर भांडेर से खुद फूल सिंह बरैया 1998 में विधायक रह चुके हैं।


वहीं गोहद से 1993 में चतुरीलाल, मेहगांव से नरेश सिंह, अम्बाह से सत्याप्रकाश, डबरा से जवाहर सिंह सहित एक साथ पांच विधायक ग्वालियर चंबल अंचल से रहे। 2003 में करैरा से लाखन सिंह यादव विधायक रहे वहीं जौरा सीट से 1998 में सोनेराम कुशवाह, 2008 में मनीराम धाकड़ विधायक रहे।


लोकसभा चुनाव से पहले फूल सिंह बरैया हुए थे कांग्रेस में शामिल


फूल सिंह बरैया लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने अपने बहुजन संघर्ष दल के साथ कांग्रेस में शामिल हुए थे। इसमें भी दिग्वजय सिंह की भूमिका थी। उस समय भिंड-दतिया सीट से उन्हें प्रत्याशी बनाए जाने की भी चर्चा थी पर ऐन समय पर सवर्ण आंदोलन के दौरान दलित युवा नेता के रूप में सामने आए देवाशीष जरारिया को टिकट दे दिया गया। राज्यसभा टिकट देकर पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह द्वारा किया गया वह वादा पूरा हो गया वहां ग्वालियर चंबल अंचल में सिंधियाविहीन कांग्रेस को दलित क्षत्रप को भी आगे किया गया है।