मध्यप्रदेश पॉलिटिक्स/ मध्यप्रदेश में असंतुष्ट को मनाने मैराथन मीटिंगो का दौर शुरू

◆ सिंधिया समर्थकों को मंत्री बनाने की शर्त के कारण मुश्किल में सूबे की सरकार


◆ वरिष्ठ विधायकों को मनाने की कवायद में जुटा संगठन 


◆ सत्तापक्ष और विपक्ष पार्टियों में असंतुष्ट विधायकों की फौज


◆ क्षेत्रवार और जातिगत संतुलन को लेकर संगठन नेताओं को मनाने जुटा


युवा काफिला, भोपाल-


मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार में सिंधिया समर्थक छह पूर्व मंत्रियों को शामिल करने तथा मंत्री पद की लालसा में में आए चार ‘कांग्रेसियों’ को मंत्रिमंडल में शामिल करने की शर्त के कारण भाजपा संगठन और शिवराज सरकार अपनी ही बनाई रणनीति में फसते हुए दिख रही हैं । आठ से दस सिंधिया समर्थकों को मंत्री बनाने के कारण भाजपा के कई वरिष्ठ विधायकों को पत्ता कट रहा है। इससे उनमें असंतोष  और विरोध के स्वर भी सुनाई देने लगे हैं। असंतोष को रोकने के लिए पार्टी के प्रादेशिक और राष्ट्रीय संगठन में अनेक वरिष्ठ विधायकों को महत्वपूर्ण पदों से नवाजा जा सकता है। सूत्रों के अनुसार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा की कार्यकारिणी के साथ ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की टीम में भी सूबे से कई वरिष्ठ विधायकों को जगह मिल सकती है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की टीम में शामिल होने के लिए मध्यप्रदेश के नेताओं ने भी लामबंदी शुरू कर दी है। प्रदेश के लगभग आधा दर्जन दिग्गज नेता राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल होने के लिए प्रयासरत हैं। इनमें मौजूदा पदाधिकारी प्रभात झा, कैलाश विजयवर्गीय, उमा भारती के अलावा पूर्व प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान, राकेश सिंह, रंजना बघेल, लालसिंह आर्य,राजेंद्र शुक्ल, कुसुम महदेले,विजय शाह,गणेश सिंह शामिल हैं।


अब तक भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की टीम में प्रदेश से पांच केंद्रीय पदाधिकारी थे। इनमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर हैं। वे सदस्यता के राष्ट्रीय प्रभारी भी रहे। उमा भारती सहित पूर्व राज्यसभा सदस्य प्रभात झा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और ज्योति धुर्वे सचिव पद पर काम कर रहे थे। वहीं, पूर्व मंत्री कैलाश विजयवर्गीय राष्ट्रीय महासचिव के रूप में बंगाल का प्रभार संभाल रहे थे।


लॉकडाउन के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर जेपी नड्डा की नई टीम बनेगी, जिसमें स्थान बनाने के लिए ज्यादातर नेता दिल्ली में सक्रिय हो गए हैं। केंद्रीय पदाधिकारी पिछले कुछ समय से प्रदेश में अति सक्रियता दिखा रहे थे, जिसकी वजह साफ थी कि आने वाली टीम में अपना स्थान बना सकें। नड्डा की ससुराल जबलपुर की है इसलिए वे प्रदेश के ज्यादातर नेताओं को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं।


दावेदार नेता



उमा भारती – उत्तर प्रदेश की सियासत छोड़कर इन दिनों मध्यप्रदेश में सक्रिय हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल की कैबिनेट में सुश्री उमा भारती पांच साल तक मंत्री रहीं। फिलहाल संगठन में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। मप्र की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। 2003 में भाजपा ने उमा को सीएम चेहरे के तौर पर पेश किया था। इस बार उन्होंने स्वेच्छा से लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा।


राकेश सिंह – मप्र भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह जबलपुर से चौथी बार सांसद हैं। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उन्हें मात्र दो साल का कार्यकाल मिला। संगठन के नजरिए से महाराष्ट्र के सह प्रभारी रह चुके हैं। मोदी कैबिनेट में स्थान नहीं मिलने के कारण कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है।


रंजना बघेल– अनुसूचित जनजाति वर्ग से 1990 में सबसे कम उम्र की विधायक बनी। पटवा सरकार में संसदीय सचिव रहीं। शिवराज कैबिनेट में भी मंत्री रहीं। उन्हें बैतूल से सांसद रहीं ज्योति धुर्वे का स्थान दिया जा सकता है।


प्रभात झा- मध्य प्रदेश के अध्यक्ष रहने के साथ-साथ पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की टीम में उपाध्यक्ष रहे हैं। इससे पहले भी मध्य प्रदेश भाजपा के लंबे समय तक मीडिया प्रभारी रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय से प्रकाशित होने वाले कई पत्र-पत्रिकाओं के प्रभारी हैं।


राजेंद्र शुक्ल-शिवराज सिंह चौहान सरकार के तहत 2013 में केबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली थी। विंध्य क्षेत्र का बड़ा ब्राम्हण चेहरा। विंध्य क्षेत्र से पार्टी का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा ।