युवा काफिला, भोपाल-
रावण तुम भी दल बदल लेते
रावण तुम मात्र अपहरणकर्ता ही निकले,
ये काम तो भाडे के गुर्गे भी कर सकते थे।
न तुमने ज्यादती किया ,न ही प्रताडित किया,
चाहते तो पूरा दुश्मन परिवार् खत्म कर सकते थे।
न तुमने भाईयों में फूट डाली,न छुपकर प्रहार किया,
सामने से ही लडे,दूतों का तो संहार कर ही सकते थे।
मंदोदरी की समझाइस का भी असर ना हुआ तुम पर,
शूर्पणखा ज्यादती पर प्रतिप्रश्न तो तुम कर ही सकते थे।
कहते हैं तुम्हारा घमंड, अहंकार ले डूबा तुम्हें,
जबकि इसी अहंकार का स्वयंवर में प्रदर्शन कर सकते थे।
तुम प्रकांड विद्वान,बलशाली और स्वर्णपुरी के स्वामी थे,
ऐश्वर्य, राज ,कुल बचाने कुछ भी समझौता कर सकते थे।
ठीक ही करते हैं दहन तुम्हारा,तुम समय के साथ न चल सके,
तुम भी दल बदल लेते, निष्ठा भी तो बदल सकते थे।
एक टुकडा दे देते विभीषण को भले भीख की तरह,
अपने गद्दार भाई के साथ ऐसी दरियादिली तो तुम कर ही सकते थे ।
आज भी सीख लो इज्ज़त का बदला कैसे कैसे लेते हैं,
फिर अगले बरस न जलो शायद, कुटनीति तो चल ही सकते थे ।
-पीयुदेव