◆ अछूतानंद ‘हरिहर’ स्वामी जी आदिहिन्दू आन्दोलन के प्रवर्तक
◆ उत्तर भारत में बहुजन नवजागरण के अगुवा व्यक्तित्व
◆ डॉ. आंबेडकर के साथ मिलकर दलितों के लिए अलग प्रतिनिधित्व के लिए संघर्ष किया
◆ ब्राह्मणवाद को चुनौती देने वाली कविताएं एवं नाटक लिखा
युवा काफिला,भोपाल-
आदि हिंद आंदोलन के जनक एवं दलितों के प्रेरणा स्त्रोत स्वामी अछूतानंद हरिहर का जन्म ऐसे समय हुआ जिस समय दलित समाज और देश की बड़ी दुर्गति थी। हिंदू समाज में जाति-पांति, ऊंच-नीच,छोटे-बड़े की भावना का बड़ा जोर था। धर्मांधता का बोलबाला था। देश पराधीन था और यहां के लोगों का अध: पतन हो चुका था । ऐसे समय में स्वामी अछूतानंद ने अपने क्रांतिकारी विचारों से दलितों का मार्गदर्शन किया। अछूतो के अंदर से हीन भावना निकालकर उन्हें सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक संघर्ष के लिए प्रेरित किया।
स्वामी अछूतानंद का परिवार गांव सौरिख तहसील छिबरामऊ जिला फर्रुखाबाद का निवासी था। इनके पिता का नाम मोतीराम, माता रामप्यारी देवी और चाचा का नाम मथुरा प्रसाद था । उनके माता- पिता और चाचा सभी सन 1857 ई. के पूर्व में ही गांव में ब्राह्मणों के साथ संघर्ष हो जाने के कारण गांव छोड़कर जिला मैनपुरी के सिरसागंज के गांव उमरी में रहने लगे थे क्योंकि इनकी कौम संघर्षशील कौन थीं इसीलिए अपने आप पर हो रहे अत्याचारों को न सह सकी। यहीं पर 6 मई गुरुवार बैसाखी 1879 ई. में स्वामी जी का जन्म हुआ। इनके बचपन का नाम हीरालाल था। इनके पिता और चाचा देवली छावनी चले गए वहां फौज में नौकरी करने लगे। स्वामी जी की शिक्षा इनके चाचा मथुरा प्रसाद के यहां नसीराबाद अजमेर में हुई।इन्हें पढ़ने-लिखने का बड़ा शौक था। 14 वर्ष की आयु में आपने हिंदी,अंग्रेजी, उर्दू और गुरुमुखी का अध्ययन कर लिया था । इसके बाद साधुओं के साथ पर्यटन पर निकल गए। संन्यासियों के साथ रहने के कारण इन्हें हीरालाल से हरिहरानंद कहा जाने लगा। 24 वर्ष की आयु तक का भ्रमण करते रहे। इस दौरान अपने संस्कृत, बांग्ला, गुजराती और मराठी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। ज्ञान में वृद्धि हुई । इस समय आर्य समाज का बड़ा जोर था । उसके जलसे जगह-जगह होते थे और शात्रार्थ बड़े कठिन होते थे ।आपने आर्य समाज में प्रवेश लिया उसमें कई जगह शास्त्रार्थ करने का अवसर प्राप्त हुआ।
आगरा के पथवारी और सिरसागंज में अछूत विद्यालय की स्थापना की । सिरसागंज के विद्यालय में उद्घाटन के समय स्वामी जी के पहुंचने में कुछ देरी हुई। यहां उन्होंने देखा कि आर्य समाजी अध्यापकों द्वारा अभिजात बालकों को टाट पर आगे बैठाया जाता है और दलित वर्ग के छात्रों को पीछे जमीन पर। स्वामी जी को यह देखकर अत्यंत क्लेश हुआ और आर्य समाज के दलितों के प्रति भेदभाव को देखकर उन्होंने आर्य समाज से अपना पिंड छुड़ा लिया ।
स्वामी जी ने अछूतों के हित और संघर्ष के लिए आजीवन कार्य करने का संकल्प लिया । 1905 ई. में स्वामीजी ने दिल्ली आकर आंदोलन की शुरुआत की और यहां पर वीर रतन, देवीदास जटिया और जगतराम जटिया का स्वामी जी को भरपूर सहयोग मिला । यहां पर अखिल भारतीय अछूत महासभा की स्थापना हुई और 'अछूत पत्रिका' का संपादन किया। दिल्ली में अछूत वर्ग का भरपूर सहयोग मिला।
1923 ई. में स्वामी जी ने ऑल इंडिया आदि हिंदू महासभा की स्थापना की । जिसमें सभी अछूतों को संगठित होकर जाति-पांति के विरोध में, अंधविश्वास और भेदभाव के विरोध में कार्य करने के लिए स्वामी जी द्वारा प्रेरित किया जाता । स्वामी जी हिंदू दासता की जंजीरों से मुक्त होने का संदेश देते । 1925 ई. में बेनाझावर कानपुर को उन्होंने स्थाई निवास बना लिया । स्वामी जी के लिए गिरधारी भगत ने यह जगह दी थी । यहीं उन्होंने आदि हिंदू अखबार निकाला ।
सन 1922 ई. में इंग्लैंड के सम्राट जॉर्ज पंचम के पुत्र प्रिंस ऑफ वेल्स का दिल्ली आगमन हुआ। उनके स्वागत के लिए अछूत सम्मेलन का आयोजन हुआ । इसमें उनके स्वागत के साथ ही 17 सूत्रीय मांग पत्र रखा जो इस प्रकार है
1- आदि हिंदुओं का पृथक से चुनाव हो तथा पृथक से प्रतिनिधित्व दिया जाए ।
2- अछूतों की प्रगति हेतु विश्वविद्यालय और विद्यालय खोले जाए।
3- अस्पृश्यता निवारण हेतु कड़ा कानून बनाए जाएं।
4- शिक्षित अछूतों को शासकीय सेवा में लिया जाए।
5- स्थानीय संस्थाओं जैसे नगर- पालिका,डिस्ट्रिक्ट बोर्ड, ग्राम पंचायत, टाउन एरिया, नोटिफाइड एरिया में अछूत सदस्य नामजद किया जाए।
6- अछूतों को व्यापार और दुकानदारी करने की स्वतंत्रता दी जाए।
7- बेगार प्रथा का समूल नाश किया जाए।
8- अछूतों को सवर्णों के समान सामाजिक अधिकार प्राप्त हो।
9- प्रत्येक शासकीय, अशासकीय कमेटियों में संख्या के अनुपात में अछूतों को प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाए ।
10-अछूत छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जाए ।
11-अछूत बहुल गांवों में विद्यालय स्थापित की जाए।
12- पुलिस और फौज में अछूतों को प्रवेश दिया जाए।
13- मजदूरी में वृद्धि की जाए।
14- ग्रामीण चौकीदार पद पर अछूत ही नियुक्त किया जाए।
15-अछूत कृषकों को भूमि के पट्टे दिए जाएं ।
16- विधान सभाओं में अछूत भी लिए जाए।
17- उपरोक्त मांगों को देशी राज्यों में भी लागू किया जाए
प्रिंस ऑफ वेल्स के इंग्लैंड लौट जाने पर लंदन के सेक्रेट्री ऑफ स्टेट फॉर इंडिया का भारत के वायसराय के नाम सख्त आदेश आया कि अछूतों को प्रत्येक नगर पालिका, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड, ग्राम पंचायत , टाउन एरिया और नोटिफाइड एरिया आदि में एक-एक सदस्य के रूप में नामजद किया जाए और इस आदेश का कड़ाई से पालन किया जाए। इससे अछूतों के लिए आगे का मार्ग प्रशस्त हुआ।
1927 ई. में स्वामीजी ने यहां आदि हिंदू महासभा के मंच से पूर्ण स्वराज की मांग की और अछूतों की आजादी का दावा मजबूत किया । मुंबई, कोलकाता, लखनऊ, इलाहाबाद, अमरावती,अल्मोड़ा, जयपुर में अखिल भारतीय स्तर और जिला स्तर पर अछूत आजादी के अनेकों सम्मेलन हुए। भारत में अछूतों की आंखें खुलने लग गई और धीरे-धीरे दलितों का सहयोग मिलने लगा।
1928 ई. में स्वामी अछूतानंद की भेंट डॉ बी.आर. आंबेडकर से मुंबई में आदि हिंदू सम्मेलन में हुई। डॉ आंबेडकर स्वामी जी को अपने घर ले गए। वहां पर दोनों ने मिलकर दलितों के हक और अधिकारों के लिए संघर्ष करने का दृढ़ निश्चय किया। सन 1932 ई. में जब इंग्लैंड में गोलमेज कांफ्रेंस आयोजित की गई तब भारत से अछूतों का प्रतिनिधित्व डॉ बी. आर. आंबेडकर ने किया । लेकिन कुछ असामाजिक लोगों द्वारा यह भ्रम अंग्रेजों में फैलाया गया कि अछूतों के नेता डॉ आंबेडकर नहीं गांधी है,तब स्वामी अछूतानंद ने उस समय के सहयोगी कनौजी लाल के माध्यम से पूरे भारतवर्ष से हजारों की संख्या में तार, रजिस्टर्ड लेटर और पोस्टकार्ड भिजवाए जिसमें लिखा होता था भारत में अछूतों के एकमात्र नेता डॉ बी. आर. आंबेडकर तो ऐसे थे हमारे स्वामी अछूतानंद जी।
भारत में साइमन कमीशन के आने पर उसके समक्ष आदि हिंदू महासभा के नेताओं ने दलितों को पृथक प्रतिनिधित्व देने तथा छुआछूत की समस्याओं को निर्भयतापूर्वक रखा।
लखनऊ के आदी हिंदू महासम्मेलन में जब डॉ बाबासाहेब आंबेडकर पधारें तो सभासदों ने डॉ बी. आर. आंबेडकर का जयघोष के साथ स्वागत किया। स्वामी अछूतानंद हरिहर ने सामाजिक वर्ण-भेद की परंपरा को समाप्त करने के लिए अनेक धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया। स्वर्ग -नरक, पुनर्जन्म और मनुवादी संस्कृति की मान्यताओं का खंडन किया। स्वामी जी कोरे उपदेशक ही नहीं थे बल्कि वे अच्छे कवि भी थे। अछूत और आदि हिंदू अखबारों का संपादन भी करते थे ।उन्होंने कई छोटी-बड़ी रचनाएं भी की जिनमें शंबूक बलिदान (नाटक), मायानाद बलिदान जीवनी,अछूत पुकार (भजनावली), पाखंड खंडिनी (मीमांसा), आदि वंश का डंका (कवितावली) रामराज्य न्याय (नाटक) प्रमुख है । इस दृष्टि से स्वामी जी को दलित साहित्य का प्रथम रचनाकार कहा जाता है।
अखिल भारतीय अछूत कांग्रेस को संबोधित करते स्वामी जी कहते हैं-
सभ्य सबसे हिंद के प्राचीन है हकदार हम।
है बनाया शूद्र हमको थे कभी सरदार हम ।
नीचे गिराए पर अछूत, छूत से हम हैं बरी।
आदि हिंदू है न शंकर, वर्ण में है हम हरी।।
अब नहीं है वह जमाना, जुल्म हरिहर मत सहो।
तोड़ दो जंजीर, जकड़े क्यों गुलामी में रहो।।
आदि वंश डंका में वे कहते हैं-
जुल्म पापी ने किया, हमको मिटाने के लिए ।
वर्ण शंकर लिख दिया, दिल दुखाने के लिए ।।
कूप का मेंढक बना, जकड़ा हमें दासत्व में
कानून था उनको नहीं, विद्या पढ़ाने के लिए।।
मनुस्मृति को दलितों का दुश्मन उन्होंने लिखा-
निसदिन मनुस्मृति हम को जला रही है।
ऊपर न उठने देती, नीचे गिरा रही है।।
ब्राह्मण व क्षत्रियों को सबका अफसर बनाया।
हमको पुराने उतरन पहनो ऐसा बता रही हैं।
जो काम डॉ आंबेडकर ने महाराष्ट्र में किया,वही कार्य उत्तर भारत में स्वामी अछूतानंद हरिहर ने किया। आदि वंश के आंदोलन के प्रवर्तक, दलित क्रांति के जनक स्वामी अछूतानंद हरिहर जी ने 20 जुलाई 1933 ई. को 54 वर्ष की आयु में कई दिनों की अस्वस्थता के बाद बेनाझावर कानपुर में अपना शरीर त्याग दिया अब वहां उनकी समाधि पर एक स्मृति स्मारक बना हुआ है।