युवा काफ़िला,भोपाल-
◆ महान स्वतंत्र सेनानी करतार सिंह सराबा : जन्मदिन 24 मई
(24/5/1896-16/11/1915)
सेवा देश दी जिंदडीए बड़ी औखी,
गल्लां करनियाँ बहुत सुखल्लियाँ ने,
जिन्ना देश सेवा विच पैर पाया,
उन्ना लाख मुसीबतां झल्लियाँ ने। ...
उस आयु में जब हम आप अपने परिवार के प्रति भी अपना उत्तरदायित्व नहीं समझते, खुद को देश पर बलिदान कर दिया, मात्र 19 वर्ष की आयु में मातृभूमि के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले क्रांतिकारी का नाम है- करतार सिंह सराबा।
जन्म
24 मई 1896 में पंजाब में लुधियाना के सराबा गाँव में एक जाट सिख परिवार के सरदार मंगल सिंह और साहिब कौर के पुत्र के रूप में जन्मे करतार ने बचपन में ही अपने पिता को खो दिया था और उनका तथा उनकी छोटी बहन धन्न कौर का लालन पालन उनके दादा जी द्वारा किया गया| मंगल सिंह के दो भाई और थे- उनमें से एक उत्तर प्रदेश में इंस्पेक्टर के पद पर प्रतिष्ठित था तथा दूसरा भाई उड़ीसा में वन विभाग के अधिकारी के पद पर कार्यरत था।
शिक्षा-दीक्षा
अपने गांव से प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद करतार सिंह ने लुधियाना के मालवा खालसा हाई स्कूल में दाखिला लिया और दसवीं की परीक्षा पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए अपने चाचा के पास उड़ीसा चले गए। जब वे केवल 15 वर्ष के थे, उनके अभिभावकों ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका भेज दिया गया, जहाँ पहुँचने पर उन्होंने पाया कि जहाँ और देशों के नागरिकों से थोड़ी बहुत ही पूछताछ की जाती है, वहीँ भारतीयों से अपराधियों की तरह सवाल जवाब किये जाते हैं| किसी सहयात्री से पूछा तो बताया गया कि हम गुलाम देश के वासी हैं इसलिए हमारी यही इज्जत है| इस घटना ने उनके मन पर अमिट प्रभाव डाला। उस समय भारतीय लोग विदेशों में जाकर या तो बंधुआ श्रमिकों के रूप में काम करते थे या फिर अंग्रेजी फौज में शामिल होकर उनके साम्राज्यवाद को बढ़ाने में अपनी जान दे देते थे। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिर्फोनिया एट बर्कले में दाखिला लेने के बाद करतार सिंह ने अन्य लोगों से मिलकर ऐसे भारतीयों को संगठित कर भारत को आजाद कराने के लिए कार्य करना शुरू किया।
गदर पार्टी की स्थापना
21 अप्रैल, 1913 को कैलिफोर्निया में रह रहे भारतीयों ने एकत्र हो एक क्रांतिकारी संगठन गदर पार्टी की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य सशस्त्र संघर्ष द्वारा भारत को अंग्रेजी गुलामी से मुक्त करवाना और लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना करना था। 1 नवंबर, 1913 को इस पार्टी ने गदर नामक एक समाचार पत्र का प्रकाशन करना प्रारंभ किया जो हिंदी और पंजाबी के अलावा बंगाली, गुजराती, पश्तो और उर्दू में भी प्रकाशित किया जाता था। करतार सिंह ग़दर पार्टी के तो संस्थापक सदस्य थे ही, गदर समाचार पत्र का सारा काम भी वही देखते थे। यह समाचार पत्र सभी देशों में रह रहे भारतीयों तक पहुंचाया जाता था। इसका मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी शासन की क्रूरता और हकीकत से लोगों को अवगत करना था। कुछ ही समय के अंदर गदर पार्टी और समाचार पत्र दोनों ही लोकप्रिय हो गए।
अंग्रेजी सरकार का विरोध
1914 में प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजी सेना युद्ध के कार्यों में अत्याधिक व्यस्त हो गई थी। इस अवसर को अपने अनुकूल समझ उसका लाभ लेने एवं ब्रिटिश शासन की चूलें हिलाने की दृष्टि से गदर पार्टी के सदस्यों ने 5 अगस्त, 1914 को प्रकाशित समाचार पत्र में अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध डिसिजन ऑफ डेक्लेरेशन ऑफ वार नामक लेख प्रकाशित किया| हर छोटे-बड़े शहर में इस इस लेख की प्रतियां वितरित की गईं। करतार सिंह एवं अन्य कई साथी भारत आये और युगांतर के संपादक जतिन मुखर्जी के परिचय पत्र के साथ रास बिहारी बोस से मिले। करतार सिंह ने बोस को बताया कि जल्द ही 20,000 अन्य गदर कार्यकर्ता भारत पहुंच सकते हैं। वे रास बिहारी बोस के साथ मिलकर उपयुक्त योजना का निर्माण करने का प्रयास करने लगे ताकि विद्रोह एक साथ शुरू किया जा सके|
ब्रिटिश सरकार की नज़रों से ये प्रयास छुप ना सका और कुछ गद्दारों की वजह से काफी लोग पकड़े और मारे गए। फिर भी लुधियाना के एक ग्राम में गदर सदस्यों की सभा हुई, जिसमें 25 जनवरी, 1915 को रास बिहारी बोस के आने के बाद 21 फरवरी से सक्रिय आंदोलन की शुरूआत करना निश्चित किया गया। कृपाल सिंह नामक पुलिस के एक मुखबिर ने अंग्रेजी पुलिस को इस दल के कार्यों और योजनाओं की सूचना दे दी, जिसके बाद पुलिस ने कई गदर कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। इस अभियान की असफलता के बाद सभी लोगों ने अफगानिस्तान जाने की योजना बनाई पर परन्तु जब करतार सिंह वजीराबाद पहुँचे, तो उनके मन में यह विचार आया कि इस तरह छिपकर भागने से अच्छा है कि वे देश के लिए फाँसी के फंदे पर चढ़कर अपने प्राण निछावर कर दें।
लौटकर करतार सिंह ने सरगोधा के पास सैनिक छावनी में विद्रोह का प्रचार करना शुरू कर दिया और जब तक वो अंग्रेज सरकार की गिरफ्त में आये, उनका नाम क्रांति का पर्याय बन गया। भगत सिंह जैसे महान क्रन्तिकारी ने उन्हें अपने गुरु, सखा और भाई के रूप में स्वीकार किया है और यही करतार सिंह के व्यक्तित्व को बताने के लिए काफी है। सराभा ने अदालत में अपने अपराध को स्वीकार करते हुए ये शब्द कहे -
"मैं भारत में क्रांति लाने का समर्थक हूँ और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अमेरिका से यहाँ आया हूँ। यदि मुझे मृत्युदंड दिया जायेगा, तो मैं अपने आपको सौभाग्यशाली समझूँगा।"
फाँसी
लाहौर षड़यंत्र केस के नाम पर भारत के इस सच्चे सपूत को मात्र 19 वर्ष की आयु में 16 नवम्बर 1915 में उनके छह अन्य साथियों - बख्शीश सिंह (ज़िला अमृतसर), हरनाम सिंह (ज़िला स्यालकोट), जगत सिंह (ज़िला लाहौर), सुरैण सिंह व सुरैण दोनों (ज़िला अमृतसर) व विष्णु गणेश पिंगले (ज़िला पूना महाराष्ट्र)- के साथ लाहौर जेल में फांसी दे दी गयी।
संदर्भ : क्रांतिदूत