जन्मदिन/प्रेरणास्त्रोत की मिसाल पहली महिला पर्वतारोही बछेंद्री पाल

 


          पर्वतारोही बछेंद्री पाल : जन्मदिन 24 मई


◆एवरेस्ट फतह करने वाली प्रथम भारतीय महिला


◆ दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को  किया था फतह


युवा काफिला, भोपाल- 



मेरा जन्मस्थान पहाड़ी गांव नाकुरी, उत्तरकाशी, उत्तराखंड है। परिवार की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। माता-पिता इस कथ्य का धार्मत: पालन करते रहे कि हृदयालुता सभी धर्मों का सार है। वे सामने से गुजरने वाले ग्रामीणों को चाय पी लेने का आग्रह किया करते थे। मैं अपने माता-पिता की तीसरी और विद्रोही स्वभाव की संतान थी। जिसे हर बात पर प्रश्न पूछने की आदत पड़ गई थी। मैं किसी लड़की के लिए तय पारंपरिक जीवन शैली से संतुष्ट नहीं थी।


लिंगभेद


मैं बड़े भाई को देखती थी कि वह छोटे भाई को प्रेरित करता है तो मैंने सोचा! मैं क्यों नहीं? मुझे लगने लगा कि भाइयों से सदैव अच्छा बर्ताव किया जाता है और उनके सामने सभी अवसर और विकल्प खुले है। इसने मेरी यह दृढ़ता बढ़ा दी कि मैं सिर्फ वही करूंगी जो लड़के कर रहे हैं बल्कि उनसे भी बेहतर। मैं जिस खेल में गई उसमें अव्वल आई। इस प्रकार  कई पुरस्कार जीते और उन्हें बड़े गर्व के साथ घर लायी। 


गृहकार्य


एमए बीएड कर लेने के बाद भी मैं घर के काम में हाथ बंटाने से नहीं हिचकती। पहाड़ों की ऊंचाई से जलावन/घास भी लाती। यह एक अद्भुत गुण था जो मैंने अपने माता-पिता से प्राप्त किया। उन्होंने पढ़ाई का सही अर्थ समझाया था। मैं आज भी घर हो या समाज, पूरे दिन काम कर संतुष्ट और खुश रहती हूँ।


अवसर


शिक्षित बेरोजगार की स्थिति मेरे लिए सबसे कठिन घड़ी थी। पर मुझे हवाई जहाज में उड़ने और नामी लोगों से मिलने के सपने देखने से नहीं रोक पायी। और अवसर ने दस्तक भी दी। उत्तरकाशी में पर्वतारोहण के आरंभिक प्रशिक्षण में ही उप-प्रधानाचार्य कर्नल प्रेमचंद ने मुझे एवरेस्ट के लिए उपयुक्त घोषित कर दिया। इसके बाद तो पीछे मुड़कर देखने का प्रश्न ही नहीं उठा।


आर्थिक समस्या


पर्वतारोहण में जिस प्रकार मेरे सपने साकार हो रहे थे, उससे मैं खुश थी पर इससे आर्थिक समस्याओं का समाधान नहीं हुआ। 10.2.1983 में "नेशनल एडवेंचर फाउंडेशन" के निदेशक ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह उत्तरकाशी आए। वे राष्ट्रीय पर्वतारोहण संस्थान प्रशिक्षकों के लिए पर्वतारोहण प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना चाहते थे। उन्होंने मुझ समेत सात स्थानीय शिक्षित महिलाओं का चयन छात्रवृति के लिए किया। मैंने इस सुप्रसिद्ध पर संवेदनशील वरिष्ठ पर्वतारोही को यह स्पष्ट कर दिया कि मेरे माता पिता मुझे विवाह के लिए दबाव दे रहे थे ताकि परिवार का वित्तीय बोझ कम हो। मैंने उनसे उन लोगों के लिए भी कोई रास्ता निकालने के लिए कहा जो गरीब थे, पर पर्वतारोहण में रुचि रखते थे।


समाधान


अगले दिन ब्रिगेडियर ने हमें "भागीरथी सेवन सिस्टर्स एडवेंचर क्लब" हेतु आवेदन पत्र भरने के लिए कहा और बताया कि यह एक अनोखा संगठन होगा जो अन्य लड़कियों को पर्वतारोहण आदि के लिए प्रेरित करेगा, उसकी शिक्षा देगा। ब्रिगेडियर ने वादा किया कि यह योजना आर्थिक कठिनाइयों का समाधान करेगी। हमारा मनोबल आसमान छूने लगा और हम तन्मयता से प्रशिक्षण में जुट गए।


एकमात्र महिला


पुनर्गठित शिखर अभियान दल 22 मई को दक्षिण कोल के लिए रवाना हो गया। कैंप-4 दक्षिण कोल में अवस्थित था, जो शिखर कैंप भी था। इस दल में मैं एकमात्र महिला थी क्योंकि मैं तंदुरुस्त थी और मेरा प्रदर्शन साहस भरा। नायक ने अभियान का सारा दारोमदार मुझ पर छोड़ दिया क्योंकि इस चौथे भारतीय एवरेस्ट अभियान का मकसद, खासकर भारतीय महिलाओं को शिखर पर पहुंचने का अवसर देना था। मैं अपनी आंतरिक ताकत पहचान गई और इस अभियान में अपना सब कुछ झोंक देना चाहती थी।


सागरमाथा


मैं 23.5.1984 को 1:07 बजे दिन में एवरेस्ट शिखर पर खड़ी थी। ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला! एवरेस्ट शिखर की चोटी पर सट-सट कर भी दो लोगों के लिए जगह नहीं थी। चारों ओर हजारों मीटर की गहराई में उतरती ढलानों के कारण वहाँ अपनी जान बचाने का एकदम ख्याल आया और हमने बर्फ की कुल्हाड़ी धंसाकर सबसे पहले खुद को सुरक्षित कर लिया। उसके बाद में घुटने तक बर्फ में धंस गई और बर्फ पर माथा टेक मैंने "सागरमाथा के मुकुट" को चूम लिया। खुशी की उस घड़ी में मेरा मन अपने माता-पिता पर चला गया जिन्होंने मुझे संघर्ष और कठिन परिश्रम की महत्ता का पाठ पढ़ाया था। हम शिखर पर 43 मिनट तक रहे। ल्हात्से, नुप्त्से और मकालू सरीखी दानवाकार चोटियां हमारे इस पहाड़ के सामने बौनी लग रही थी।


लक्ष्य


इसके बाद अनेक हवाई यात्राएं की, अनेकों गणमान्य लोगों के अतिरिक्त मैं मा. इंदिरा गांधी से जब मिली तो उन्होंने भाव विभोर होकर मुझे देखते हुए कहा,"हम इस देश में सैकड़ों बछेंद्री चाहते हैं। तुमसे आग्रह है कि ग्रामीण लड़कियों के बीच भी एडवेंचर स्पोर्ट्स को प्रोत्साहित करो क्योंकि लड़कियां कठोर परिश्रम तो करती है पर ऐसे खेलों में अपनी क्षमता नहीं लगा पाती।" एवरेस्ट की चढ़ाई के बाद मैंने यह मन बना लिया था कि मैं युवकों एवं महिलाओं के बीच एडवेंचर स्पोर्ट्स और उद्यम के प्रति उत्साह जगाऊँगी। मैंने इसे अपने जीवन का लक्ष्य बनाने की ठान ली। टाटा स्टील ने समाज में साहसिक खेलों की एक संस्कृति विकसित करने के लिए हरसंभव अवसर प्रदान किया ताकि हम साहस, दृढ़ता और उत्साह से परिपूर्ण चेहरों को उभार सके, खासकर बच्चों के लिए मैं प्रयासरत हूँ, ये बच्चे ही भविष्य के मार्गदर्शक हैं।


सही मूल्यांकन


मेरी नजर में किसी व्यक्ति का सही मूल्यांकन यही है और मैं कहती हूँ, "आपकी काबिलियत का सही मूल्यांकन उन सभी लाभों से हैं जो आपकी सफलता से अन्य लोगों को मिलते हैं।"


सम्मान/पुरस्कार


01.भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन द्वारा स्वर्ण पदक (1984)
02.पद्मश्री (1984) से सम्मानित।
03.उ.प्र. शिक्षा विभाग द्वारा स्वर्ण पदक (1985)
04.अर्जुन पुरस्कार (1986) भारत सरकार द्वारा।
05.कोलकाता लेडीज स्टडी ग्रुप अवार्ड (1986)।
06.गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (1990) में सूचीबद्ध।
07.नेशनल एडवेंचर अवार्ड भारत सरकार के द्वारा (1994)।
08.उत्तर प्रदेश सरकार का यश भारती सम्मान (1995)।
09.हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से पी एचडी की मानद उपाधि (1997)।
10.संस्कृति मंत्रालय, मध्य प्रदेश द्वारा पहला वीरांगना लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय सम्मान (2013-14)


लेखन


बछेन्द्री पाल ने एक पुस्तक भी लिखी है, जिसका नाम है ‘एवरेस्ट-माई जर्नी टू द टॉप’।


संदर्भ 
1.पुस्तक-क्रांतिकारी महिलाएं
प्रकाशक-गौतम बुक सेंटर
1/4446 डॉ.अंबेडकर गेट, रामनगर एक्सटेंशन, मंडोली रोड, शाहदरा, दिल्ली-110032
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