◆ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सकारात्मक पहल
◆ जनता को दिया सीएम राहत कोष का हिसाब
◆ अब पीएम केयर्स फंड का कब हिसाब देंगे मोदी? जनता मांगे जवाब
युवा काफिला, भोपाल-
विश्व सहित भारत में कोरोना संकट के बीच बड़ी संख्या में जनता द्वारा पीएम केयर्स फंड में लगातार दान किया गया और यह दान की प्रक्रिया निरंतर जारी हैं। इस बीच विपक्षी दलों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से जनता की ओर से लगातार यह मांग की जा रही है कि मोदी सरकार पीएम केयर्स फंड का हिसाब कब देंगे और जनता द्वारा ट्वीटर के माध्यम से पूछा जा रहा है कि वह पीएम केयर्स फंड में मिल रहे पैसो का किस तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। लॉक डाउन के दौरान न तो कर्ज की ईएमआई माफ हुई और न बिजली बिल साथ ही जनता की मांग के बावजूद केंद्र सरकार ने पीएम केयर्स फंड का अब तक हिसाब नहीं दिया है। इस बीच छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बड़ी सकारात्मक पहल की है। सीएम भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री राहत कोष का हिसाब जनता के सामने रख दिया है।
उन्होंने ट्वीट कर कहा, “मैं आप सबके बीच ‘मुख्यमंत्री सहायता कोष’ का हिसाब रख रहा हूं। मैं बताना चाहूंगा कि बीते 24 मार्च से लेकर 7 मई तक मुख्यमंत्री सहायता कोष में विभिन्न दान दाताओं के द्वारा कुल 56 करोड़ 4 लाख 38 हजार 815 रुपए की राशि प्राप्त हुई है।”
सीएम भूपेश बघेल ने आगे कहा, “इस फंड से कोरोना की रोकथाम एवं जरूरतमदों की सहायता के लिए राज्य के सभी जिलों को 10 करोड़ 25 लाख 30 हजार रूपए की राशि जारी की जा चुकी है। संकट के समय में आप सरकार पर इतना भरोसा जता रहे हैं तो पारदर्शिता को बरकरार रखना मेरा भी कर्तव्य है। विश्वास है आपका सहयोग आगे भी मिलेगा।”
पीएम केयर्स फंड को कोरोना महामारी से लड़ने के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया है। अब जनता यह सवाल पूछ रही है कि जब सालों से प्रधानमंत्री राहत कोष मौजूद है तो फिर एक नए फंड कि जरूरत क्यों आ पड़ी? जनता और विपक्ष नए कोष यानी पीएम केयर्स फंड को 'घोटाला' करार दे रहे हैं तो कुछ जगहों पर कहा जा रहा है कि नया फंड इसलिए बनाया गया, क्योंकि शायद यह नियंत्रक एंव महालेखा परीक्षक या कैग की परिधि से बाहर होगा जिसकी वजह से कोष से किए गए खर्च और उनके इस्तेमाल पर किसी की नजर नहीं रहेगी। कांग्रेस भी इस संबंध में केंद्र की मोदी सरकार से सवाल पूछ चुकी है।
साभार - फ़ोटो ट्वीटर से
मजदूर हलकान और प्रशासन मौन
आज मजदूर स्वयं को भयभीत महसूस कर रहा हैं क्योंकि उसे नौकरी की चिंता के साथ लॉक डाउन खुलने का इंतजार हैं। रोटी की तलाश में अपने घरों से सैकड़ो किलोमीटर दूर रहने को मजबूर यह वर्ग सदा ही उपेक्षा का शिकार रहा हैं। सरकार चाहे जिस भी दल की हो इन्हें अपने पेट के लिए रोज संघर्ष करना ही पड़ता हैं। यदि लॉक डाउन के पहले इन्हें समय दे दिया जाता तो आज ये सड़को और पटरियों पर अपने घरों के लिए पैदल न भटकते । राजधानी भोपाल के कोलार उपनगर स्थित न्यू आंबेडकर नगर बस्ती में आज भी कई जरूरतमंद परिवार ऐसे हैं जिन्हें न तो प्रशासन से कोई अनाज मिला हैं और न ही आश्वासन ये सभी एनजीओ और स्वयंसेवी संस्थाओं के दान पर ही अपना काम चला रहे हैं।