जातिवादी हिंसा/ जातिवादीता का दंश और दलित युवक की दर्दनाक मौत

 


◆ म.प्र.के शिवपुरी में एक दलित को मौत के घाट उतारा


◆ बुध्द पूर्णिमा के आयोजन से


◆ लॉक डाउन के बीच जातिवादी  हिंसा का आंकड़ा बढ़ा


युवा काफिला, शिवपुरी-


मध्यप्रदेश शिवपुरी में एक दलित युवक को इसलिए मार डाला गया, क्योंकि उसने गाँव में बाबासाहेब की प्रतिमा लगवाई और बुद्ध पूर्णिमा मनाई। बुद्ध पूर्णिमा 7 मई को थी। युवक का नाम गजराज जाटव है। जातिवादियों ने पहले युवक का अपहरण किया, फिर कुछ समय बाद जान से मार दिया। स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिस मामले की लीपापोती में लगी है। सूचना है कि मृतक गजराज जाटव के पांच बच्चे हैं और पांचों लड़कियां हैं। सबसे बड़ी बच्ची की उम्र 10 साल है। गजराज जाटव एक उत्साही अम्बेडकरवादी युवक था, जो बाबासाहब डॉ. आंबेडकर और बुद्ध में विश्वास रखता था। घटना का विरोध जताने तमाम अम्बेडकरवादी पहुंच गए हैं। मौजूद अम्बेडकरवादी पुलिस से आरोपियों को गिरफ्तार करने की मांग कर रही है।


शिवपुरी में सिर्फ जगराज जाटव की हत्या ही नहीं हुई, अपितु बाबासाहब डॉ. आंबेडकर और बुद्ध में आस्था रखने वाले प्रत्येक भारतीय के आस्था और सम्मान को रौंदा हैं। ज्ञात हो की लॉकडाउन के दौरान जातिवादी ताकते अत्यंत सक्रिय हो गई हो गई हैं और ऐसा आए दिन हो रहा है। गौरतलब है कि भारत में सर्वाधिक प्रतिमाएं संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की है, जिन्हें असामाजिक तत्वों द्वारा समय-समय पर तोड़ा जाता है।


गाड़ियों पर ‘जय भीम’ मात्र लिखवाने से आम्बेडकरी समाज के युवाओं के साथ मार-पीट होती है। कितने ही मामले दबा दिए जाते हैं वहीं कई मामलों में उनकी हत्या भी हो जाती है। गजराज जाटव की हत्या भी ऐसा ही है।


सोचनीय प्रश्न है कि किसी जीते-जागते मानव में इतना ज्यादा जातिवाद कैसे भर जाता है ? वो किसी की हत्या कैसे कर सकता हैं? संभव है कि यह जातीय ऊंच-नीच की ओछी मानसिकता को दर्शाता है और अम्बेडकरवादी युवा गजराज जाटव पहले से ही जातिवादियों के निशाने पर रहे । पता नहीं ये जातिवादी इतनी नफरत कहां से लाते हैं? किस धार्मिक उन्माद में वो किसी को अपनी आस्था मानने भर से हत्या कर देते हैं। 


देश के प्रत्येक हिस्से में होने वाली इन घटनाओं पर हम पीड़ित परिवार के साथ कितना खड़े होते हैं। भारत के शहरों में न जाने कितने ही अम्बेडकरवादी संगठन है, वकील हैं, दो-चार अधिकारी हैं। इस कारण हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि पीड़ित व्यक्ति के साथ हम खड़े हों। अगर पीड़ित की मृत्यु हो जाती है तब तो हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। ऐसी घटनाओं में स्थानीय वकीलों को पीड़ित व्यक्ति और उसके परिवार के साथ खड़ा होना ही चाहिए। पीड़ित को न्याय आखिरी दम तक दिलवाना चाहिए। अम्बेडकरवादी संगठनों द्वारा पीड़ित व्यक्ति की आर्थिक मदद करनी चाहिए। अगर हम एकजुट होकर पीड़ित की मदद करने को तैयार रहेंगे तभी अम्बेडकरवाद को बल मिलेगा। क्योंकि जिस व्यक्ति के साथ मार-पीट होती है या फिर उसकी हत्या कर दी जाती है, उसका कसूर बस इतना भर होता है कि वह विचारधारा का संवााहक है। उसका कसूर बस इतना होता है कि वह अम्बेडकरवाद का झंडा थामे है । ऐसे प्रत्येक व्यक्ति के प्रति पूरे समाज की सामूहिक जिम्मेदारी होती है, हम सबको यह जिम्मेदारी समझनी चाहिए।


क्या गजराज जाटव के परिवार के साथ खड़े होने की जिम्मेदारी आम्बेडकरी समाज की नहीं ?


क्या समाज को गजराज जाटव के परिवार की आर्थिक मदद नहीं करनी चाहिए, और पूरे समाज को मिलकर हत्यारों को सजा नहीं दिलवानी चाहिए, जिससे गजराज जाटव का बलिदान व्यर्थ न जाए।