इतिहास/बोधिवृक्ष का इतिहास -डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह के अनुसार

◆ बुध्द से बोधिवृक्ष को पहचान


◆ बोधिवृक्ष को Tree of avekning Awakening कहा जाता हैंयुवा काफिला भोपाल- 


भोजपुरी के प्रसिद्ध भाषावैज्ञानिक, कोशकार या आलोचक, भोजपुरी भाषा, व्याकरण, कोश आ वर्तनी के क्षेत्र में बहुत बड़ा नाम डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह का है। बोधिवृक्ष का इतिहास बताते हुए वे कहते हैं कि- 


आज से 2500 साल पहले जब बुद्ध थे, तब पीपल को पूरा यूरोप नहीं जानता था । सेंट्रल अमेरिका और कैरिबियन क्षेत्र में तो पीपल 19 सदी के आखिरी दौर में पहुँचा।


बुद्ध के कई सदी बाद वनस्पतिविज्ञानियों ने पीपल का बटैनिकल नाम Ficus Religiosa रखा। यह नाम गौतम बुद्ध के कारण पड़ा।


पीपल का Sacred Fig नाम भी बुद्ध के कारण हुआ। अंग्रेजी में जो पीपल का नाम Bo Tree है, वह Bodhi Tree का संक्षिप्त रूप है। पीपल से वाकिफ न होने के कारण यूरोपीय भाषाओं में पीपल का कोई आॅरिजनल नाम नहीं है।


एशिया के वे देश बेहद ख़ुशनसीब हैं कि उन्हें पीपल से परिचय तब हो गया, जब वे धम्म के शरणागत हुए। गौतम बुद्ध के कारण पीपल को एशिया में पहचान मिली।


बुद्ध ने यह पीपल सिंधु घाटी की प्राक बौद्ध सभ्यता से अर्जित किए थे और उसे Tree of  Awakening ( बोधिवृक्ष ) की ऊँचाई दी।


भारत के पड़ोसी देशों में से सर्वप्रथम पीपल श्रीलंका पहुँचा था। अशोक ने तीसरी सदी ई.पू. में श्रीलंका को बोधिवृक्ष से परिचय कराए।


फिर श्रीलंका के बाद फिलीपींस तथा सिंगापुर के लोग पीपल से परिचित हुए और कारवाँ चीन तक पहुँचा, जबकि चीन की प्राचीन सभ्यता के लोग पीपल से वाकिफ नहीं थे।