◆ बौद्ध विहारों को कोई एक परिवार अपनी बपौती न समझे
◆ ज्वलंत प्रश्न युवा मंडल क्यों नहीं हैं सक्रिय
◆ अपने ही परिजनों को रखते हैं समिति में
युवा काफिला, भोपाल-
बौध्द धम्म एक आचरण हैं । जिसमें मनुष्य का मनुष्य से व्यवहार को प्राथमिकता दी जाती हैं और महाकारुणिक बुध्द ने सर्वप्रथम पांच भिक्खुओं के माध्यम से संघ की स्थापना की ।
बुध्द धम्म एक सभ्यता हैं जिसमें मानवीय तराजू पर भावनाओं को तौला जाता हैं । इन्हीं लोगों ने इतने बड़े लॉक डाउन ( लगभग 62 दिन ) में भी मानवता के संवाहक की कार्य करते रहे ।
बुध्द ने अपनी जनकल्याणमयीं धम्म देसनाओ के माध्यम से ही मनुष्य जीवन के श्रेष्ठ निर्माण के उद्देश्य से 45 वर्षो (बोधी प्राप्त होने से) तक प्रेरणादायी नेतृत्व प्रदान किया जिसके परिणामस्वरूप बौद्ध धम्म के प्रति उपासक-उपासिकाओं में आकर्षण पैदा हुआ हैं।
संघ क्या प्रारूप-
बुध्द ने सवाक ( श्रावक) दो भागों में विभक्त किए हैं। एक तो भिक्खु संघ और दूसरा गृहस्थ सावक जो उपासक कहलाते थे। भिक्खु एक संघ में संगठित थे, किन्तु वे गृहस्थ नहीं थे। भिक्खु मुख्यतः एक परिव्राजक हैं। यह परिव्राजक संस्था बौद्ध भिक्खुओं से भी प्राचीन हैं । परिव्राजक अर्थात जिन्होंने अपना पारिवारिक जीवन त्याग दिया हो। पहले परिव्राजकों का कोई संघ नहीं था, लेकिन न उनकी कोई जीवनशैली थीं और न कोई अनुशासन था , इतिहास में पहली बार तथागत ने अपने भिक्खुओं का एक संघ बनाया जिसे भिक्खु संघ कहा गया। उनके लिए अनुशासन के नियम बनाए और कुछ मापदंड निश्चित किए जिनका उन्हें पालन करना और लक्ष्य प्राप्त करना होता था ।
इसका सम्पूर्ण वर्णन बाबा साहेब द्वारा रचित बुध्द और उनका धम्म में संघ नामक अध्याय में दिया गया हैं।
यात्रियों का राजकुमार ह्वेनसांग-
सम्राट अशोक के समय का वर्णन करते हुए ह्वेनसांग लिखते हैं कि विहार को संघाराम (जहां संघ का आरामगाह हो ) उसे कहते । इसका संचालन पूर्णतः राजा अथवा सम्पन्न परिवारजनों के माध्यम से किया जाता । इसमें धम्म (आचरण) की शिक्षा दी जाती, यहां अस्पताल के माध्यम से इलाज किया जाता था वहीं गरीब और असहाय व्यक्ति को सहायता की जाती थीं।
विहार-
बौद्ध अनुयायीओं के प्रार्थना स्थल या उपासनास्थल मठों को विहार कहते हैं। विहारों में बुद्ध प्रतिमा होती है। विहार में बौद्ध भिक्षु निवास करते है।
उच्च शिक्षा में धार्मिक विषयों के अलावा अन्य विषय भी शामिल थे, और इसका केन्द्र बौद्ध विहार ही था। इनमें से सबसे प्रसिद्ध, बिहार का नालन्दा विश्वविद्यालय था। अन्य शिक्षा के प्रमुख केन्द्र विक्रमशिला और उद्दंडपुर थे। ये भी बिहार में ही थे। इन केन्द्रों में दूर-दूर से, यहाँ तक की तिब्बत से भी, विद्यार्थी आते थे। यहाँ शिक्षा नि:शुल्क प्रदान की जाती थी। इन विश्वविद्यालयों का खर्च शासकों द्वारा दी गई मुद्रा और भूमि के दान से चलता था। नालन्दा को दो सौ ग्रामों का अनुदान प्राप्त था। बौद्ध धम्म में भिक्खुओं के ठहरने को विहार करना कहते है।
भिक्षु जीवन के प्रारंभ में कहीं भी निवास की चर्चा नहीं है। सिद्धार्थ ने जब गृह त्याग किया तो उनके सामने यह प्रश्न नहीं था कि वह कहां निवास करेंगे। उन्होंने तो आनागरिता के लिए ही तो अगारिता का परित्याग किया था । भिक्षु के सम्मुख भी ऐसी बात नहीं थी कि वे घर छोड़ने पर कहां रहेंगे पर ज्यो-ज्यो भिक्खु की संख्या बढ़ने लगी, तो आवास को एक मूलभूत आवश्यकता के रूप में समझा गया इस पृष्ठभूमि में उनके लिए कई प्रकार के आवासों की अनुमति दी गई वह कुटी,आराम, विहार, प्रासाद, गुहा, अड्ढ़योग,लेणी, हर्मि, गुहा, पलालपुंज, वृक्षमूल, आकाश, आदि। इस प्रसंग में सर्वप्रथम मगध राजा बिंबिसार द्वारा बेलू वन आराम के दान का प्रसंग आता है, इसे बुद्ध ने राजगृह में स्वीकार किया था।
आदर्श विहार-
◆ बुद्ध विहारों में बुद्ध की प्रतिमा हो ।
◆ भिक्षु निवास हो साथ ही उपासक और उपासिकाओं के बैठने की उत्तम व्यवस्था हो।
◆ भिक्षु द्वारा दिये जाने वाले ज्ञान (शिक्षा) को समझने और समझाने के लिए प्रशिक्षण स्थल हो।
◆ धम्म प्रचार -प्रसार हेतु योजना बने एवं क्रियान्वयन कैसे हो उस पर लगातार कार्य किया जाए।
◆ धार्मिक और वैज्ञानिक विषयों पर परिचर्चा के साथ स्कूलों और कॉलेजों की किस प्रकार स्थापना की जाए।
◆ अस्पतालों और राहत केंद्रों की स्थापना की जाए।
◆ बौद्ध धर्म के प्रसार करने वाले लोगों की फौज तैयार करना।
◆ धम्म प्रशिक्षण की तैयारी के लिए बौद्ध सेमिनार शुरू करना।
◆ सभी धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन को बढ़ावा देना।
◆ बौद्ध धर्म के प्रकाशन को और बड़े पैमाने पर बौद्ध धर्म की वास्तविक समझ देने के लिए पुस्तिकाओं और पुस्तिकाओं को जारी करना।
◆ विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने आवश्यक छात्रवृत्ति
आजकल के बुद्ध विहार
प्रायः सभी बुद्ध विहार में देखा गया है कि संचालन समिति में एक अध्यक्ष होता है। उसी के अन्य रिश्तेदार उपाध्यक्ष,सचिव और कोषाध्यक्ष होते है अर्थात किसी एक परिवार का प्रभुत्व उस विहार पर चलता है और कार्यक्रम के नाम पर लगे रहते हैं विहारों में ताले, जो करते हैं खुलने का इंतजार । राजधानी के सड़को से निकलते हुए यह कहानी गांव तक जाती हैं। विहारों में अपने-अपने घरों से टिफिन बुलाओं और दिन भर खाना-खजाना कार्य चलाओं कारण इन विहारों के रख-रखाव की जिम्मेदारी जिनके पास हैं या तो वे सभी सेवानिवृत्त चंद लोग हैं या शासकीय सेवक हैं अर्थात मध्यम वर्ग का धम्म से कोई लेना देना नहीं, उनकी भागीदारी शून्य। रखरखाव करने वाले लोगों के बच्चे शहर और देश से बाहर रहते हैं इसलिए अब वक्त आ गया हैं कि जिम्मेदारी युवाओं को सौंपी जाए और वे सभी जो काफी अनुभवी हैं मार्गदर्शक मंडल में आने को तैयार रहे क्योंकि 21 वीं सदी युवाओं की हैं।
विहार किसी एक जाति तक सिमटा-
बुध्द विहार में सभी का प्रवेश खुला हैं और बुध्द के धम्म में ज्ञान का भंडार हैं। यहां सदस्यों का दर्जा जन्म से नहीं बल्कि गुणों से निश्चित होता हैं। सभी समान हैं और सामाजिक हैसियत का विहारों में कोई स्थान नहीं हैं यहां आकर जाति मिट जाती हैं । यहां लिंग का कोई भेद नहीं हैं ।
अभी राजधानी के ही एक बुध्द विहार को लीजिए, जिसमें गरीब तबके के जरूरमंद बच्चों को निःशुल्क ट्यूशन के माध्यम से शिक्षा दी जाती थीं लेकिन विहार की समिति के चंद मुट्ठीभर लोगों ने शिक्षा का विरोध कर ट्यूशन बन्द करा दी जिससे भविष्य के सम्राट जो आगे कुछ बन सकते हैं उन्हें वंचित कर दिया।
छोटे विहार रहते हैं दान से वंचित-
आज कुछेक लोग पढ़-लिखकर काबिल बने लेकिन उन्हें अपनी पुरानी बस्तियों में जाने में शर्म आती हैं जहां वे कभी रहते थे। एक समय की घटना है बाबा साहब ने सर्वप्रथम जिन विद्यार्थियों को विदेश पढ़ने भेजा उनमें से एक विद्यार्थी भारत आने पर कलेक्टर बना और कलेक्टर बनने के बाद जब वह बाबा साहब से मिला तो बाबासाहेब ने उन्हें एक ही बात कही -
कलेक्टर छात्र बोले क्या ?
बाबा साहेब- सप्ताह में एक बार उस स्थान पर अपनी सरकारी गाड़ी से सूटबूट में जाना ताकि लोगों में पढ़ने की ललक जागे।
यह काम करना बहुत जरुरी था, लेकिन अफसोस आज यह काम चंद लोग कर रहे हैं ।
केवल विकसित विहारों को देते हैं दान-
विहारों के रखरखाव की जिम्मेदारी प्रायः उपासक-उपासिकाओं की ही होती है और इनका रखरखाव प्रायः दान के पैसों से चलता है लेकिन यह दान आजकल विहार के स्टेटस और उसमें काम करने वाले लोगों को देख कर दिया जाता है। कुछ लोग विहारों को राजनीतिक अखाड़ा बना लेते हैं।