◆ एक गरीब की वास्तविक दासता
◆ घर पहुँचने हजारों कि.मी. पैदल ही सफर
◆ पांच-पांच ,छः-छः दिनों से भूखे प्यासे लगातार चल रहे हैं मजबूर लोग
युवा काफिला, भोपाल-
मेरी सूखियां (आँखन देखी)
आज सूखियां ने पौ फटते ही सवाल किया, मां बापू कब आयेगा। मां ने दिलासा देते हुए कहा - अभी बारह रोज हो गए हैं निकले, पहुंचते ही होंगे, गंगा का किनारा जरा लंबा है न, रास्ते संकरे, कहीं-कहीं उबड़ - खाबड़ पहाड़, कहीं सूखे जंगल, सूखी नदियां ऊपर से सूरज का ताप, पेट में मरोड़ती आंते।
छः रोज हुए बापू ने बताया था, इंसानी जानवरों से बच गया तो जरूर पहुंच जाऊंगा, साथ में कुछ सूखियां की चूड़ियां, बिंदी भी है वो भी लेते हुए आऊंगा ।
सूखियां ने कहा- मां तूने तो कहा था, बापू पैसे कमाने गया है और कह गया था, अब की गर्मी लौटेगा तो तेरे लिए साड़ी, मेरे लिए फ्रॉक लायेगा, छत भी सुधरेगा, पिछली बारिश घर बहुत टपकता था न मां।
मां बापू कब आयेगा??? भूख लगी है मां, दो रोज से तुमने दलिया भी नहीं दिया मां, मां बापू कब आयेगा???
देवकी की आंखों में आंसू झर-झर बहने लगे, थोड़ी देर शून्य में ताकती रही फिर सूखियां से बोली - आ पैर में कपड़ा बांध दू, फिर भूख न लगेगी। मैं ठाकुर के घर से आती हूं। तेरे भाग से कुछ मिल जाये।
भागती-भागती ठकुराईन के पास पहुंची । होश ही ना रहा, कि वो कहां खड़ी है ??? ठकुराइन ने गंदी गाली देते हुए कहा - ये चुहड़ी कहो खड़ी हैं, बाहर निकल घर के , देवकी सकपकाई, भय से कांपते हुए, करुण हृदय करते हुए बाहर आकर बोली - ठकुराइन कुछ अनाज दे दो, मेरा आदमी कमाने गया था, गांव पहुंचा नहीं है , बिटिया को खाना खिलाना है, दो रोज से अन्न का दाना नहीं हैं। ठकुराइन ने मौका भांप लिया बोली - ले जा एक मन गेहूं, बिटिया को जी भर के खिला देना, लेकिन सुन पूरे साल भर तू मेरे घर दो मन माहवार पर काम करेगी, बोल करेगी ? देवकी ने गर्दन नीचे कर सिर हिलाया। देवकी ऊंची आवाज में रोने लगी, उसे बचपन की याद आयी, उसकी मां ऐसे ही ठाकुर के यहां जीवन भर की बंधुआ हो गई थी ।
अनाज लेकर घर पहुंची । सात बरस की सूखियां बोली मां, अब तो रोटी मिल जायेगी, देवकी बिना कुछ कहे जमीन पर धंस गई, दहाड़ मार कर रोने लगी, जीवन भर का सौदा जो कर आयी थी, सूखियां बोली मां बापू कब आयेगा ???
व्यंगकार -राहुल विद्रोही,एक स्वतंत्र विचारक हैं ।