आरक्षण पर राजनीति/ SC/ST आरक्षण के लिए एकजुट हुए विधायक

◆ बिहार में सभी राजनीतिक दलों के दलित विधायक SC/ST आरक्षण को लेकर हुए लामबंद


◆ विधायकों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को लिखा पत्र मांगा लॉकडाउन के बाद मुलाकात का समय 


समय नहीं मिला तो हम सब बिहार के राज्यपाल से मुलाकात कर ज्ञापन देंगे


◆ आरक्षण के प्रावधान के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के हाल के फ़ैसले पर अपनी चिंता जाहिर की


आरक्षण के प्रावधान को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग 


◆ भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार के अंतर्गत अनुच्छेद 15 (4) और 16 (4) में हैं स्पष्ट प्रावधान 


◆ अनुच्छेद 330 में हैं राजनैतिक प्रतिनिधित्व


युवा काफिला, पटना-


बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम ने आज अचानक अनोखी करवट ली। सभी राजनीतिक दलों के दलित विधायकों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिख अनुसूचित जाति और जनजाति के आरक्षण के प्रावधान के सम्बंध में सुप्रीम कोर्ट के हाल के फ़ैसले पर अपनी चिंता जाहिर की । शुक्रवार को बिहार विधानसभा की लॉबी में सभी पार्टी के 40 में से 22 आरक्षित वर्ग के विधायकों नें एससी/एसटी आरक्षण के विषय पर बैठक ली। उन्होंने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को इस संबंध में पत्र लिखा है। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी प्रमुख थे। 


आख़िर क्या हैं मामला


दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के आरक्षण संबंधी मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि जाति आधारित आरक्षण में जिन लोगों ने 70 वर्षो से लाभ लिया हैं क्या उनकी स्थिति आज भी स्थिर हैं या पूर्व में आरक्षण का लाभ मिल चुके लोग आर्थिक रूप सक्षम हो चुके हैं। यदि उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है, तो उन्हें आरक्षण के लिए प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए और कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण नीति यह 70 साल से  चली आ रहीं हैं । एक बार आरक्षण का फायदा ले चुके परिवारजनों को अब यह फायदा नहीं मिलना चाहिए। इसे एक प्रकार से एस.सी/एस.टी में क्रीमी लेयर का फार्मूला माना जा रहा है। हालांकि हाल-फिलहाल ना तो ऐसा कोई कानून बना है और ना ही कोई आदेश जारी हुआ है परंतु जाति आधारित आरक्षण में अनुसूचित जाति जनजाति के गरीबों को प्राथमिकता की संभावना मात्र ने यह स्थिति निर्मित कर दी है।


लामबंद हुए विधायको की मांग


उद्योग मंत्री श्याम रजक ने बताया कि विधायकों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को इस संबंध में पत्र लिखा । इस 4 पन्नों के पत्र पर बिहार सरकार में उद्योग मंत्री श्याम रजक, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, विधायक लालन पासवान, रामप्रीत पासवान, शिवचंद्र राम, प्रभुनाथ प्रसाद, रवि ज्योति, शशिभूषण हजारी, निरंजन राम, स्वीटी हेंब्रम सहित कुल 22 दलित विधायकों ने अपने हस्ताक्षर किए हैं। पत्र पर मांझी के अलावा श्याम रजक, ललन पासवान, रामप्रीत पासवान, शिवचंद्र राम, प्रभुनाथ प्रसाद, रवि ज्योति, शशिभूषण हजारी, निरंजन राम, स्वीटी हेम्ब्रम सहित 22 विधायकों के दस्तखत हैं। 


विधायकों ने लॉकडाउन के बाद प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति से मिलने का समय मांगा है। समय नहीं दिया गया तो सब बिहार के राज्यपाल से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन देंगे। हालांकि लड़ाई लंबी होगी। उन्होंने कहा कि जल्द ही विधिवत मोर्चा बनेगा। इसका अलग कार्यालय होगा।

 

वहीं विधायकों का कहना है कि हाल के वर्षों में आरक्षण में कटौती के कई प्रयास किए हैं। आर्थिक आधार पर आरक्षण भी इसी प्रयास का हिस्सा है। उत्तराखंड सरकार ने तो एस. सी/एस. टी के कर्मचारियों को पदोन्नति में मिलने वाले आरक्षण को रद्द कर दिया हैं । दुर्भाग्य यह है कि सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कह दिया कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है।

 

क्या लिखा हैं पत्र में

पत्र में उन्होंने लिखा, "सुप्रीम कोर्ट भारतीय संविधान का संरक्षक और अंतिम व्याख्याकार है। किन्तु बहुत ही दुख से कहना पड़ रहा है कि 2017 से अब तक लगातार सुप्रीम कोर्ट का अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग को प्राप्त प्रतिनिधित्व आरक्षण एवं प्रमोशन में प्रतिनिधित्व आरक्षण के विरोध में फैसला आया है।" आरक्षण को संविधान की नौंवी अनुसूची का अंग बनाया जाए, ताकि इसमें छेड़छाड़ की गुंजाइश खत्म हो।


सारे विधायकों ने इस सम्बन्ध में उचित और न्यायसंगत निर्णय लेने की अपील की ।