शिवराज कैबिनेट का गठन/ लंबी अटकलों के बाद कोरोना से लड़ेंगे शिवराज के पंचज

 


◆ मुख्यमंत्री ने अब केवल पांच लोगों को ही शपथ दिलाई हैं।


◆ इसके साथ ही सवाल उठने लगे हैं कि शिवराज ने इतनी छोटी कैबिनेट का गठन क्यों किया।


◆ सवाल यह भी कि यह शिवराज की पसंद है या मजबूरी।


युवा काफिला, भोपाल - 
एक लंबे इंतजार के बाद आखिरकार शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट का गठन मंगलवार को हो ही गया। आम लोगों से लेकर मंत्री बनने की उम्मीद लिए बैठे नेताओं के लिए यह अधूरी ख्वाहिशें पूरी होने जैसा ही है। कोरोना संकट की मार झेल रहे मध्यप्रदेश के लोगों को एक भरे-पूरे कैबिनेट की उम्मीद थी। तीन से चार बार के विधायकों की एक बड़ी तादाद भी मंत्री बनने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही थी। तीन दिन पहले तक ऐसी चर्चाएं भी थीं कि पहले चरण करीब एक दर्जन मंत्री बनाए जाएंगे। मुख्यमंत्री कार्यालय से इनके लिए गाड़ियों और दफ्तर की व्यवस्था करने का निर्देश भी जारी हो चुका था, लेकिन आज केवल पांच लोगों को ही शपथ दिलाई गई। इसके साथ ही सवाल उठने लगे हैं कि शिवराज ने इतनी छोटी कैबिनेट का गठन क्यों किया। सवाल यह भी कि यह शिवराज की पसंद है या मजबूरी।


दरअसल, कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार से सत्ता छीनने के लिए बीजेपी ने जिस तरह एड़ी-चोटी का जोर लगाया था, अलग-अलग गुटों को साथ लेकर चलना उसकी मजबूरी थी। सरकार बन जाने के बाद ये सभी गुट सत्ता में अपने प्रतिनिधित्व को लेकर उतावले हो रहे थे, लेकिन सीएम शिवराज चाहकर भी सभी गुटों को संतुष्ट नहीं कर सकते। ऐसे में पार्टी आलाकमान ने बीच का रास्ता निकाला, जिसमें सभी गुटों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व देकर उन्हें साधने की कोशिश की गई है।


विपक्षी पार्टियां ही नहीं, बीजेपी के अपने विधायक भी मंत्रिमंडल के गठन में देरी से खुश नहीं थे। विपक्षी पार्टियां आरोप लगा रही थीं कि सत्ता में आने की जल्दी में बीजेपी ने कमलनाथ की सरकार तो गिरा दी, लेकिन अब कैबिनेट का गठन तक नहीं कर पा रही। स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक भी कोरोना संकट के दौर में प्रदेश में स्वास्थ्य ,वित्त और गृह जैसे महत्वपूर्ण विभागों का मंत्री नहीं होने को लेकर आपत्ति जता रहे थे। राज्य में कोरोना का प्रकोप भी तेजी से बढ़ रहा है। इसलिए शिवराज के लिए कैबिनेट गठन में और देरी करना मुनासिब नहीं था।


कैबिनेट चुनने में किसकी चली?


जिन पांच मंत्रियों ने शपथ ली है उसमें कमल पटेल का नाम चौंकाने वाला है। कमल पटेल पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के खेमे के माने जाते हैं। फिलहाल उमा भारती प्रदेश के राजनीति परिदृश्य से गायब हैं लेकिन कमल पटेल शिवराज की पिछली सरकार में भी मंत्री रहे हैं। उस दौरान उन्होंने अपनी ही सरकार पर अवैध खनन को लेकर कई तरह के आरोप लगाए थे, जिसके चलते सीएम शिवराज की फजीहत हो चुकी है। माना जा रहा था कि शिवराज उन्हें कैबिनेट में शामिल नहीं करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है। इसके अलावा सोमवार शाम तक शिवराज, गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह को मंत्री बनाने की कोशिश में जुटे थे, लेकिन इन्हें भी कैबिनेट में जगह नहीं मिली है। यही दोनों नेता हैं जो बेंगलुरु से कांग्रेस के विधायकों का इस्तीफा लेकर आए थे। कैबिनेट विस्तार में इन फैसलों की वजह से सवाल उठ रहे हैं कि क्या मंत्रियों को चुनने में सीएम शिवराज के मन की नहीं चली है।


शिवराज सरकार के 5 योद्धा 


मंत्रिमंडल में नरोत्तम मिश्रा को शामिल करने पर कोई संदेह नहीं था। कमलनाथ सरकार को गिराने में उनकी भूमिका को देखते हुए शिवराज की सरकार में उन्हें नंबर दो की हैसियत मिलने की पहले से ही संभावना जताई जा रही थी। तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत कैबिनेट में ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के प्रतिनिधि हैं। सिलावट कमलनाथ की सरकार में स्वास्थ्य और राजपूत परिवहन मंत्री थे। कमल पटेल पूर्व सीएम उमा भारती के करीबी हैं और मीना सिंह प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा की।


कैसे साधे जातीय समीकरण


कैबिनेट का हिस्सा बने पांच सदस्य अलग-अलग समाजों के हैं। नरोत्तम मिश्रा ब्राह्मण और राजपूत समाज से गोविंद सिंह राजपूत को जगह दी गई है। कमल पटेल कुर्मी और तुलसी सिलावट अनुसूचित जाति वर्ग के प्रतिनिधि हैं। मीना सिंह मंत्रिमंडल का आदिवासी और महिला चेहरा हैं। मंत्रिमंडल में जातीय समीकरणों को साधने के लिए गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह जैसे वरिष्ठ पार्टी नेताओं की दावेदारी को फिलहाल होल्ड पर रखा गया है।


किसके सपने रह गए अधूरे


सिंधिया खेमे के साथ कांग्रेस से  बिसाहूलाल सिंह, एंदल सिंह कसाना और हरदीप सिंह डंग को बीजेपी नेताओं ने व्यक्तिगत रूप से मंत्रिमंडल में शामिल करने का भरोसा दिलाया था। सिंह और डंग वैसे भी सिंधिया के धुर समर्थकों में नहीं गिने जाते रहे, लेकिन छोटी कैबिनेट के चलते इन्हें भी फिलहाल मंत्री नहीं बनाया गया है।


कोरोना से ज्यादा चुनाव की चिंता?


कैबिनेट गठन पर कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने कहा कि यह मध्यप्रदेश के साथ यह अन्याय है। कोरोना संकट के बीच भी भाजपा राजनीति कर रही है। राजनीतिक विशेषज्ञों का भी मानना है कि बीजेपी की निगाहें फिलहाल विधानसभा चुनावों पर टिकी हैं। छह महीनों के अंदर 22 सीटों पर चुनाव होने हैं और बीजेपी का लक्ष्य इनमें से अधिकांश सीटें जीतकर विधानसभा में संख्या बल को अपने पक्ष में करना है। इसके लिए वह अलग-अलग गुटों को एकसाथ साधने की कोशिश कर रही है। वह मंत्री पद के लॉलीपॉप को सामने रखकर गुटों को असंतुष्ट होने का मौका नहीं देना चाहती।


ऐसा है शिवराज का पंच 


 


◆ नरोत्तम मिश्रा: दतिया से विधायक नरोत्तम भाजपा कद्दावर नेता है। प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण चेहरा । शिवराज सरकार के पिछले 3 कार्यकाल में में भी मंत्री रह चुके हैं एवं महत्वपूर्ण मंत्रालयों को संभाल चुके हैं । केंद्रीय नेताओं से अच्छे संपर्क और ग्वालियर-चंबल संभाग की भविष्य की राजनीति को साधने के लिए पहली बार में मंत्री बनाए गए।


◆ तुलसी सिलावट:अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं। सिंधिया समर्थक है और अभी-अभी कांग्रेस से आए हैं मालवा क्षेत्र के बड़े नेताओं में शुमार हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे खास व्यक्ति माने जाते हैं। कमलनाथ सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं। तुलसी सिलावट के भाजपा में शामिल होने के बाद पार्टी को अनुसूचित जाति वर्ग का एक बड़ा नेता मिल गया है। हालांकि, ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के डॉ. प्रभुराम चौधरी भी इसी वर्ग से आते हैं।


◆ गोविंद सिंह राजपूत: बुंदेलखंड के बड़े ठाकुर नेताओं में एक हैं। सागर जिले की सुरखी विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। सिंधिया खेमे के रसूखदार ठाकुर नेता होने की वजह से मंत्री बनाए गए। कमलनाथ सरकार में ये राजस्व मंत्री रह चुके हैं।


◆ मीना सिंह:अनुसूचित जनजाति वर्ग से आती हैं। महिला और आदिवासी वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं। आदिवासी बाहुल्य उमरिया जिले से विधायक हैं।


◆ कमल पटेल:ओबीसी वर्ग से आते हैं। शिवराज और कैलाश विजयवर्गीय के करीबी माने जाते हैं। पहले भी मंत्री रह चुके हैं। हरदा से विधायक हैं।


ज्ञात हो कि मध्य प्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा में सदस्यों की संख्या के लिहाज से मंत्रिमंडल में अधिकतम 15 प्रतिशत यानी 35 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। शिवराज सिंह चौहान ने फिलहाल 5 लोगों को जगह दी है और उन्हें मिलाकर छह लोग ही होते हैं। मंत्रिमंडल में अभी भी 29 जगह हैं, माना जा रहा है कि बाद में बीजेपी के दिग्गज नेताओं को जगह दी सकती है। इसके अलावा कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले कुछ नेताओं को भी मंत्री बनाया जा सकता है।


राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने इसे बताया संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन


कांग्रेस नेता विवेक तन्खा ने मंत्रिमंडल गठन के बाद एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान पर ट्वीट करते हुए निशाना साधा है। उन्होंने लिखा है, शिवराज जी, कैबिनेट के संबंध में मेरे सुझावों को 'आंशिक' रूप से ही मानने के लिए धन्यवाद 'परंतु'


- संविधान की धारा 164 -1ए के अनुसार न्यूनतम 12 मंत्री होने चाहिए-बीजेपी को संवैधानिक प्रावधानों से परहेज क्यों?


2 - पहली बार चारों महानगरों से मूल 'बीजेपी' का प्रतिनिधि नहीं।


3 - ऑपरेशन लोटस के महत्वपूर्ण किरदार कैसे छूट गए??


4 - वरिष्ठतम नेता और पूर्व एलओपी भी शामिल नहीं।


इस आशा के साथ की प्रदेश में मौत का तांडव रुकेगा और हम कोरोना से जंग जीतेंगे।