साक्ष्य/ लाॅकडाउन के बीच धरती फ़ाड़कर बाहर आ गया यह

◆ लाॅकडाउन के बीच आज की बड़ी पुरातात्विक खबर


◆ जेसीबी से खुदाई में बौद्ध विहार के दो स्तंभ मिले 


◆ दो स्तंभो पर गौतम बुद्ध की मूर्ति उकेरी हुई हैं


युवा काफिला,संकिसा- 


संकिसा स्तूप से संकिसा गेस्ट हाउस तक सड़क चौड़ीकरण के दौरान जेसीबी की खुदाई में बौद्ध विहार के दो स्तंभ आज मिले है। स्तंभ की ऊँचाई 5 फीट है। स्तंभ पर 8 पँखुड़ियों के कमल - पुष्प के बीच गौतम बुद्ध की मूर्ति उकेरी हुई है। 8 पंखुड़ियाँ अष्टांगिक मार्ग के संकेतक हैं।


संकिसा ( संकाश्य या साकमुनिसा) का महत्व - 


दिल्ली से कानपुर मार्ग पर एटा के निकट संकिसा उत्तर प्रदेश के जिला फर्रुखाबाद में है। संकिसा की खोज कनिंघम ने 1842 में की थी। उन्होंने अपनी पुस्तक " द एन्शियंट जिओग्राफी ऑफ इंडिया " में संकिसा के बारे में विस्तार से लिखा है। पाँचवी सदी में फाह्यान ने यात्रा की थी। उन्होंनेे लिखा हैंं कि जनपद बहुत उपजाऊ है। जनता खुशहाल है। विदेश के लोग भी यहाँ आते है और उनकी आवश्यकता की सभी चीजें यहाँ उपलब्ध है।


फाहियान ने संकिसा में मौजूद सभी स्तूप, स्तंभ और विहारों का सविस्तार वर्णन किए हैं। यहीं गौतम बुद्ध ने उत्पला ( उत्पलवर्णा) को दीक्षा देकर संघ का द्वार स्त्रियों के लिए खोल दिए थे।


उत्पला की दीक्षा


गौतम बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनन्द के कहने पर यहाँ आये व संघ में स्त्रियों की प्रवृज्या पर लगायी गयी रोक को तोड़ा था और भिक्षुणी उत्पलवर्णा को दीक्षा देकर बौद्ध संघ का द्वार स्त्रियों के लिए खोल दिया गया था।


भूमि पर स्तूप बना है और वहाँ लगभग 4 हजार बौद्ध श्रमण हैं। जंबुद्वीप के राजा अशोक इस स्थल से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने यहाँ धम्म यात्रा की और स्तूप, स्तंभ और विहार बनवाए।


सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेनसांग ने लगभग यहीं बात बताई है। लेकिन तब वहाँ श्रमणों की संख्या 1000 थी और संघाराम 10 थे।


ह्वेनसांग ने अशोक स्तंभ का उल्लेख करते हुए लिखा कि विहार के बाहर अशोक स्तंभ है, 70 फीट ऊँचा है, रंग बैंगनी चमकदार है, स्तंभ पर मसाला लगा है और सबसे ऊपर सिंह अपने पुट्ठों के बल बैठा है।


लोग कहते रहे हैं कि सब टीला है, मगर अब संकिसा की विराट बौद्ध सभ्यता धरती फ़ाड़कर बाहर आ रही है।


संकिसा! साकमुनिसा!!


वर्तमान संकिसा


वर्तमान संकिशा एक टीले पर बसा छोटा सा गाँव है, टीला बहुत दूर तक फ़ैला हुआ है, और किला कहलाता है, किले के भीतर ईंटों के ढेर पर बिसहरी देवी का मन्दिर है, जिसे सनातन धर्म के लोगो द्वारा बनाया गया है। वास्तविक में यह स्थान बौद्धों का ही है। यहां पर सम्राट अशोक के द्वारा बनवाया गया एक स्तूप था जो कि अब एक ईंटों का ढेर बन गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा भी इसे बौद्ध स्थान ही माना गया है। इस स्थान पर किसी भी प्रकार की खुदाई या ईमारत नहीं बना सकते हैं। पास ही अशोक स्तंभ का शीर्ष है, जिस पर हाथी की मूर्ति निर्मित है, आताताइयों ने हाथी की सूंड को तोड डाला है।