कोरोना पॉलिटिक्स/ शिवराज पर भारी क्यों कमलनाथ का मीडिया मैनेजमेंट..

भोपाल- 
'निजाम' बदला कब असर दिखाएंगी नई 'नीतियां'..! चुनौती कोरोना से आगे मंत्रिमंडल और उपचुनाव.....
राकेश अग्निहोत्री' सवाल दर सवाल' नया इण्डिया, कांग्रेस की घेराबंदी ,शिवराज मंत्रिमंडल गठन पर खड़े किए सवाल, कलह को हवा देने में जुटे  कमलनाथ, दिग्विजय सिंह,विवेक तंखा )
सूबे का निजाम बदला कमलनाथ को जाना पड़ा.. सत्ता में वापसी के साथ शिवराज की एक बार फिर हुई धमाकेदार एंट्री... कोरोना के विज्ञापन और शिवराज की अपील को छोड़ दिया जाए तो सियासी सवालों साथ  न्यूज़ चैनल , अखबारों के साथ उस सोशल मीडिया पर भी कमलनाथ छाए हुए जिन्होंने मुख्यमंत्री रहते फोटो पब्लिसिटीज को गैरजरूरी करार दिया था। सरकारी प्लेटफार्म और भाजपा संगठन के नेटवर्क को छोड़ दिया जाए तो शिवराज उनके रणनीतिकारों पर कांग्रेस के एफर्ट और व्यक्तिगत संबंधों के साथ कमलनाथ का मीडिया मैनेजमेंट भारी साबित हो रहा है। शिवराज सिंह चौहान ने भले ही पूर्व मुख्यमंत्रियों से सहयोग और सुझाव मांगा लेकिन कुछ घंटे बाद ही कमलनाथ दिल्ली में नजर आए। जहां से उन्होंने न सिर्फ शिवराज बल्कि नरेंद्र मोदी पर भी यह कहकर निशाना साधा कि सरकार गिराने के खेल में कोरोना मध्यप्रदेश में आउट ऑफ कंट्रोल साबित हो रहा है । कमलनाथ जिन्होंने मुख्यमंत्री रहते आईफा से लेकर दूसरे पब्लिसिटी स्टंट का सहारा लेकर मध्य प्रदेश के कायाकल्प का भरोसा ही नहीं दावा किया था। उनकी सरकार की नीतियां फैसले और कार्यक्रम जमीन पर नजर आते  इससे पहले कुनबे की कलह सामने आई। विधायकों की बगावत उनके मंसूबों पर पानी फेर गई। कोरोना की बड़ी चुनौती के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले शिवराज सिंह चौहान ने एक साथ कई मोर्चों पर फीडबैक ले जरूरी बड़े फैसले लिए। बावजूद इसके वह राजधानी से दूर जिले और ब्लॉक स्तर पर या तो कारगर सिद्ध नहीं हो पा रहे या फिर जरूरी प्रचार-प्रसार के अभाव में उपलब्धियां उनके खाते में नहीं जा रही। शिवराज ने मजदूरों के खाते में 1000 तो दूसरे राज्यों के मध्य प्रदेश में फंसे मजदूरों को भी आर्थिक सहायता के साथ राशन कार्ड के दायरे से बाहर निकलकर अनाज वितरण को अपनी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रखा । यही नहीं कोरोना पीड़ितों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा तब  जरूरी टेस्ट 60 से बढ़कर जब 1200  तक जा पहुंची । यही नहीं तत्परता दिखाने के साथ  जरूरी टेस्ट के लिए सरकारी हवाई जहाज से सैंपल दिल्ली भेजे जा रहे। तब भी रविवार को चर्चा कमलनाथ की उस वीडियो कांफ्रेंस की ज्यादा रही। लॉक डाउन के दौरान जो अचानक दिल्ली में प्रकट होने से देखने और सुनने को मिली। सोशल मीडिया पर सवाल और आरोपों  पर केंद्रित कमलनाथ की प्रेस रिलीज शिवराज के मीडिया से संवाद पर उस वक्त भारी नजर आई । जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कभी भी लॉक डाउन के दूसरे चरण का ऐलान कर सकते तो शिवराज मंत्रिमंडल के गठन की तारीख का भी ऐलान कभी भी हो सकता है । ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी क्या मुख्यमंत्री रहते कमलनाथ का अपना भरोसेमंद प्रशासनिक नेटवर्क और कांग्रेस से ज्यादा निजी मीडिया मैनेजमेंट मुख्यमंत्री शिवराज के मुकाबले ज्यादा प्रभावी और असरदार साबित हो रहा है । यदि इस बात में दम तो फिर वह कमजोर कड़ी क्या है जिसके कारण शिवराज की मेहनत पर पानी फिरने की तिकड़म और कोशिश ज्यादा चर्चा और असरदार सिद्ध होने लगी  है।  यही नहीं विपरीत परिस्थितियों में 3 हफ्ते के मुख्यमंत्री की नीति और नियत पर विपक्ष द्वारा सवाल खड़े किए जाने लगे। 


शिवराज सिंह चौहान को सिर्फ कोरोना पर समय रहते नियंत्रण के साथ मोदी सरकार का भरोसा जीत कर दिखाना होगा। बल्कि तख्तापलट के बाद बनी सरकार का मंत्रिमंडल गठन और उसके बाद होने वाले 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव तीन बड़ी चुनौतियां एक दूसरे से जुड़ी हुई सामने है। इन तीन चुनौतियों को एक दूसरे से जोड़कर ही देखा जाएगा क्योंकि इसी से तय होगा भाजपा की साढे 3 साल की सरकार का भविष्य 3 में से यदि कोई एक कड़ी भी कमजोर साबित हुई। तो लंबे सियासी जीवन में कमाई पुण्याई और उनके भविष्य पर सवाल खड़े हो सकते और यदि क्रमशः यह लड़ाई जीत ली तो मध्य प्रदेश में वह अपना ही कीर्तिमान तोड़कर एक नया रिकॉर्ड स्थापित भी कर सकते हैं। सियासत के साथ सामाजिक सरोकार को मुख्यमंत्री रहते पहले ही एक नई दिशा दे चुके शिवराज के लिए सेवा समर्पण का मौका नई चुनौतियों के साथ मिला है.. ऐसे में संकट भले ही कोरोना संकट का फिर भी शिवराज की राजनीतिक सोच, उनकी कार्यशैली राजनीतिक दूरदर्शिता विधायकों और जनता पर पकड़ कसौटी पर होगी। मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही शिवराज कोरोना के कहर से जूझते हुए नजर आए। 20 घंटे से ज्यादा प्रतिदिन काम कर जिन्होंने अपने अनुभव और समन्वय सामंजस की सियासत को दांव पर लगा दिया । उन्होंने  नए चीफ सेक्रेटरी को छोड़ दिया जाए तो मैदानी अफसरों  में बदलाव का जोखिम मोल नहीं लिया बल्कि उन पर पूरा भरोसा किया। वह बात और है कि स्वास्थ्य विभाग से जुड़े जिम्मेदार अधिकारियों ने  इस भरोसे को तोड़ा और शिवराज की विनम्रता को कमजोरी साबित किया । संक्रमण पर रोकथाम की उपलब्धियां या फिर सरकार की नीति और नियत  के साथ शिवराज की अपनी लोकप्रियता और मेहनत की पराकाष्ठा मीडिया के मोर्चे पर इसका मूल्यांकन और टेक्नोलॉजी के बेहतर उपयोग के साथ कुछ नया इस पारी में अभी तक नजर नहीं आया।


कार्यकाल का एक माह पूरा नहीं हुआ और खामियां निकाली जाने लगी है। हमेशा खास के ज्यादा आम आदमी को न्याय और सुविधा दिलाने की बात करने वाले शिवराज चर्चा में आए तो उसकी एक वजह कोरोना से पीड़ित अधिकारियों और पत्रकारों के साथ दूसरे खास और आम के बीच क्वॉरेंटाइन और आइसोलेशन को लेकर दोहरे मापदंड बने ।ऐसे में जब शिवराज कर्मचारियों के साथ मजदूर ,बेसहारा, गरीब और दूसरे वर्ग की रोजमर्रा की समस्या का समाधान निकालने में जुटे हैं । तो विपक्ष ने इस 3 हफ्ते की सरकार की कमजोर कड़ियों को उजागर कर पोस्टमार्टम शुरू कर दिया है। यह जानते हुए कि विपक्ष जिससे वह सुझाव मांग रहे वह सवाल खड़ा करने लगा है। ऐसे में बड़ा हमला पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दिल्ली से किया जिन्होंने मध्यप्रदेश के हालातों का हवाला देकर शिवराज ही नहीं मोदी को भी एक्सपोज करने की कोशिश की। मध्यप्रदेश में जब मंत्रिमंडल गठन की आहट सुनाई दे रही तब कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और सांसद विवेक तंखा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर हमला बोलते हुए एक साथ कई सवाल खड़े किए। तो दिग्विजय सिंह ने भी चिट्ठी लेकर कोरोना के कहर के बीच किसी अधिकारी को निलंबित और बदले जाने पर आपत्ति दर्ज कराई । कमलनाथ ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिए मीडिया से मुखातिब होकर दिल्ली से अपने मैनेजमेंट को सामने रखा। कुछ घंटे पहले ही शिवराज ने पूर्व मुख्यमंत्रियों में शामिल कमलनाथ से सुझाव और सहयोग मांगा था । उन्होंने सुझाव दिए लेकिन कोरोना की आड़ में मोदी और शिवराज की नीति और नियत पर एक साथ कई सवाल खड़े कर दिए। कोरोना को लेकर बिगड़ते हालात का हवाला देकर कमलनाथ ने यह तक कह दिया की मध्य प्रदेश में सरकार बनाने के लिए मोदी ने पूरे देश की जनता को संकट में डाला है। कमलनाथ ने कहा कि नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को लॉक डाउन बढ़ाने का जो फैसला देर से लिया उसकी वजह मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को गिराना ही था। पूर्व मुख्यमंत्री ने इसका पूरा ब्यौरा और घटनाक्रम जिस तरह तथ्य और तर्क के साथ सामने रखा उससे साफ है कि कमलनाथ ने मध्यप्रदेश का मैदान नहीं छोड़ने का भी संकेत दे दिया। तो यह भी साबित करने की कोशिश की कि यदि जमीनी हालात शिवराज सरकार के दावों और फैसलों से दूर है तो उसकी वजह है कथनी और करनी में अंतर । पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी साबित करने की कोशिश कि प्रशासनिक स्तर पर उनकी मैदानी जमावट और सूचना तंत्र पर उनकी पकड़ बनी हुई है। वह बात हो रही थी तख्तापलट की जानकारी होने के बावजूद कमलनाथ अपनी सरकार नहीं बचा पाए। ऐसा नहीं कि कमलनाथ ने सुझाव नहीं दिए उन्होंने पीड़ितों के टेस्ट, संक्रमित जिलों की रैपिड मैपिंग के साथ प्रवासी मजदूरों और छात्रों की मदद, रवि फसल की समर्थन मूल्य पर खरीदी ,डॉक्टरों की सुरक्षा और मनरेगा जैसे मुद्दों पर भी ध्यान आकर्षित किया जिसके लिए वह लगातार चिट्ठी भी लिख रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ने यही साबित करने की कोशिश की कि दूसरे राज्यों की तुलना में मध्यप्रदेश के हालात कुछ अलग है । जहां प्रजातंत्र के नाम पर एक मुख्यमंत्री है ,ना कोई स्वास्थ्य मंत्री और न गृहमंत्री कोई कैबिनेट नहीं बनी है और ना ही नगरी निकाय सब नदारद हैं। सिर्फ कमलनाथ नहीं बल्कि कांग्रेस सांसद विवेक तंखा ने भी बिना कैबिनेट की शिवराज सरकार के खिलाफ संवैधानिक संकट का हवाला देकर न्यायालय की शरण लेने के बीच संकेत दे दिए। विवेक तंखा ने राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर डाली। जिस तरह कमलनाथ और विवेक तंखा ने मंत्रिमंडल के गठन को एक नया बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की है। उसके पीछे कांग्रेस की रणनीति मंत्रिमंडल विस्तार की आड़ में भाजपा के अंदर कलह को जन्म देना है। इससे पहले अजय सिंह से लेकर केके मिश्रा जैसे जिम्मेदार नेता भी शिवराज पर वन मैन आर्मी की आड़ में खुद को नायक साबित करने का आरोप लगा चुके हैं । कमलनाथ का दिल्ली से वीडियो कॉन्फ्रेंस का मतलब संदेश सिर्फ शिवराज और प्रदेश की जनता को नहीं बल्कि कांग्रेस हाईकमान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी देना है । कहीं ना कहीं कमलनाथ ने दिल्ली के मीडिया और उसके दायरे में  मध्यप्रदेश के मीडिया के जरिए चुनौतियों से जूझ रहे शिवराज की छवि पर बट्टा लगाने की कोशिश की है। जिनकी मंशा साफ जो शायद दूसरे राज्यों के मुकाबले मध्य प्रदेश मे कोरोना को लेकर नाकामयाबी गिना कर सियासी हित साधना चाहते हैं । जिस तरह कोरोना के साथ मंत्रिमंडल को जोड़ा उससे अंदाजा लगाया जा सकता कि कांग्रेस को उपचुनावों का इंतजार है। चर्चा तो यह भी है कमलनाथ कांग्रेस से बगावत करने वाले पूर्व विधायकों के साथ नए सिरे से कुछ भाजपा विधायकों पर डोरे डाल रहे हैं। इस बीच भाजपा विधायक कम कमलनाथ के चहेते नारायण त्रिपाठी ने कोरोना पीड़ित अपराधियों को सतना जेल भेजे जाने की आड़ में सरकार की कार्यशैली को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया। तो क्या कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस भाजपा से ज्यादा वह मुख्यमंत्री शिवराज के खिलाफ माहौल बनाने लगी है। सवाल क्या मुख्यमंत्री शिवराज कांग्रेस की रणनीति से अनजान है ऐसा नहीं लगता क्योंकि तख्तापलट से सबसे ज्यादा फजीहत यदि किसी की हुई तो वह सबसे अनुभवी कांग्रेस के नेता कमलनाथ की जो अपने मैनेजमेंट के दम पर इस सरकार को 5 साल चलाने के साथ दोबारा चुनाव जीत कर आने का दावा करते रहे। कमलनाथ ने फिर दावा किया था कि जल्द वह लौटेंगे। तो समर्थकों का मानना है कि 15 अगस्त का झंडा कमलनाथ की फहराएंगे । अब जब को कोरोना ने राज्यसभा से लेकर मंत्रिमंडल विस्तार और उपचुनाव का गणित भी गड़बड़ाने में कोई नहीं छोड़ी। तब सवाल शिवराज की मेहनत, समर्पण, समन्वय की सियासत आखिर रंग क्यों नहीं ला रही हैं। मीडिया मैनेजमेंट के मोर्चे पर शिवराज जब लगातार अपनी मौजूदगी का एहसास करा रहे तब उनकी उपलब्धियों से ज्यादा चर्चा विरोधियों द्वारा खड़े किए जा रहे सवालों की क्यों है? क्या भाजपा संगठन उसका मीडिया मैनेजमेंट शिवराज की ताकत साबित नहीं हो पा रहा या फिर पुराने अधिकारियों की जमावट शिवराज के लिए नई चुनौतियों से खड़ी हुई समस्या का समाधान कम उसकी चिंता में इजाफा कर रहे हैं? क्या अधिकारी फिर शिवराज पर भारी साबित हो रहे? खासतौर से जो कमलनाथ के संकटमोचक बनकर उनकी सरकार बचाने के लिए कुछ दिन पहले तक शिवराज के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे। कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते मीडिया के चहेते बने रहे शिवराज क्या अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ता के साथ जन अपेक्षाओं को समझने में किसी गलतफहमी का शिकार हो गए हैं । आखिर वह कौन सी मजबूरी है जो शिवराज के हाथ बांध  चुकी है। दिग्विजय सिंह ने तो किसी अधिकारी को हटाए जाने को गैरजरूरी करार कर अपनी सरकार के अधिकारियों को भरोसे में लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी है । कभी मुख्यमंत्री रहते सरकार की जन हितैषी योजनाओं के जरिए जनता से सीधे संवाद कर अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवाते रहे। शिवराज ने वीडियो कॉन्फ्रेंस और जिस ऑडियो ब्रिज के नेटवर्क के जरिए कोरोना की बंदिशों को तोड़ा क्या सही फीडबैक उन तक नहीं पहुंच रहा है । क्या विधानसभा से लेकर जिला स्तर पर कार्यकर्ताओं को  भाजपा के सरकार में आने का एहसास होने लगा है ? जबकि अधिकांश पुराने अधिकारियों  की कार्यशैली भाजपा कार्यकर्ताओं को रास नहीं आ रही। खासतौर से बढ़ती सियासी चुनौतियां कोरोना संक्रमण से आगे मंत्रिमंडल गठन और उपचुनाव तक शिवराज की उपयोगिता को जोड़ती है। सवाल क्या शिवराज को कांग्रेस की रणनीति के साथ उस पब्लिक परसेप्शन को भी समय रहते समझना होगा जो मुख्यमंत्री की चौथी पारी में नए और बदले शिवराज को देखना चाहता। क्या कोरोना संक्रमण से लड़ते हुए नजर आ रहे शिवराज के लिए सियासी मोर्चे पर चुनौतियां कोई मायने नहीं रखती। जो कांग्रेस की रणनीति को नजरअंदाज कर रहे।