भोपाल-
सम्राट अशोक भारत के ऐसे प्रथम पाॅलिटिक्ल फिलाॅसफर थे, जिन्होंने राजपद और शासन के आदर्श सबसे पहले लिखित रूप में जारी किए।
अशोक के राजपद का आदर्श था कि हर समय और हर जगह पर जनता की आवाज सुनने के लिए मैं तैयार हूँ।
चाहे रसोईघर में होऊँ, चाहे अंतःपुर में, मैं सो रहा होऊँ या उद्यान में होऊँ, जनता की कोई भी बात मुझ तक पहुँचाई जा सकती है।
छठे शिलालेख में अशोक ने इतना ही नहीं बल्कि यह भी लिखवाया है कि मैं सर्वत्र जनता का काम करूँगा और सभी का हित मेरा कर्तव्य है।
सम्राट अशोक का आदर्श वाक्य था कि सवे मुनिसे पजा ममा अर्थात सभी मनुष्य मेरी संतान हैं।
कर्मचारी जनता के सुख और कल्याण का हमेशा ख्याल रखें, जैसे कुशल धाय बच्चे की प्रसन्नता का ख्याल रखती हैं।
आश्चर्य इस बात की है कि अशोक ने अपने कई लघु शिलालेखों में अवसर की समानता की बात कही है।
अचरज होता है कि आज से कोई सवा दो हजार साल पहले का कोई पाॅलिटिक्ल फिलाॅसफर, वो भी जो एक राजा हो, इस तरह की बात सोचता हो।
देश के यशस्वी सम्राट अशोक ने पाॅलिटिक्ल फिलाॅसफी के क्षेत्र में अभूतपूर्व मानदंड स्थापित किए, जिन्हें छूने के लिए अनेक राजा ललचते रहे और छू नहीं पाए।
मार्क्स के सिद्धांतों को प्रशासन के क्षेत्र में लेनिन ने लागू किया और बुद्ध के सिद्धांतों को प्रशासन के क्षेत्र में सम्राट अशोक ने लागू किया।
बुद्ध के सिद्धांतों को प्रशासन के क्षेत्र में लागू किए जाने की जरूरत है। यहीं समय का तकाजा है।
प्रशासन के क्षेत्र में न केवल मानवाधिकार संरक्षण को बल्कि जीवाधिकार संरक्षण को भी स्थापित करने का श्रेय सम्राट अशोक को है।
जीवों के शोक हरने वाले अशोक को नमन ।