तापसी का रूढ़िवादी परम्पराओं को जोरदार थप्पड़ और बेहतरीन रहा हमारा अनुभव

भोपाल-


कलाकार-  तापसी पन्नू,,पवैल गुलाटी, रत्ना पाठक शाह, कुमुद मिश्रा, तन्वी आजमी, मानव कौल, माया रवाल, विद्या ओहलियान, संदीप यादव।



तापसी पन्‍नू की थप्‍पड़ एक शानदार महिला सशक्तिकरण की बेमिसाल फिल्म है। यह तो बस एक जरिया है यह बताने के लिए कि ना थप्‍पड़ कोई मजाक है और ना औरत कोई चीज । थप्पड़ वह नहीं जो सिर्फ चेहरे पर आकर लगता हैं, थप्पड़ हैं हर वह शब्द जो आत्मसम्मान पर हमला हैं। इस फिल्म के डायलॉग दिल को छू जाते हैं। फ़िल्म की शुरुआत एक हंसते-खेलते परिवार से होती है।



फिल्‍म में अलग-अलग चरित्र जो कि महिला वकील, घरेलू कामकाजी महिला, कॉर्पोरेट जगत में काम करने वाली महिला और पति-पत्नी की कहानी को प्रदर्शित करता हैं। यह फिल्म सिर्फ इस एक मुद्दे को नहीं दर्शाती बल्‍क‍ि औरत के कमजोर होने के पीछे छिपी उन सभी वजहों को भी उजागर करती है। जैसे औरत का अत्‍याचार सहना, समाज की रूढ़िवादी परम्पराओं को ढोते हुए एक मां अपनी बेटी को घर ही सम्भालने को कहती हैं और समाज का ख्‍याल रखने का हवाला देकर हर वह बात जिसका नारी शक्ति को डटकर मुकाबला करना चाहिए उसे सहने को कहती हैं ।



तापसी पन्नू ने इसमें अमृता नाम की ऐसी महिला का किरदार निभाया है जो एक समर्पित पत्नी  है। हालांकि वो एक नृत्यांगना भी रही है लेकिन वो सब कुछ छोड़-छाड़कर पूरी तरह गृहस्थी में रम गई है। अपनी सास का ब्लड शुगर लेवेल रोज नापती है, पति के लिए रोज चाय बनाती है, जब वो ऑफिस जाता है तो घर से बाहर कार तक आकर उसे रोज पर्स, पानी का बॉटल और लंच बॉक्स पकड़ाती है। यानी पूरी तरह से गृहिणी है। जीवन ऐसा ही चल रहा होता है। पर तभी एक वाकया घटता है। पति ने घर में पार्टी दी होती है और उसी दौरान उसे खबर मिलती है उसका प्रमोशन नहीं हुआ और इसी गुस्से में भरी पार्टी में अमृता को थप्पड़ मार देता है।



उसके बाद तो अमृता की पूरी दुनिया उलट जाती है। क्या अब वो अपने पति के साथ रहेगी या उसका घर छोड़ देगी?
वहीं तापसी पन्‍नू के साथ अनुभव की यह दूसरी फिल्‍म है।



तापसी ने इससे पहले अनुभव के साथ मुल्‍क में काम किया था, हालांकि, मुल्‍क की कहानी अलग थी लेकिन इसमें भी एक गंभीर मुद्दे का सच सबके सामने लाया गया था। वर्तमान समाज की कुरीतियों को फिल्‍मों के माध्यम से लोगों नके सामने बखूबी अनुभव सिन्‍हा ने अपनी फिल्‍मों के जरिए दिखाया है । 



अमृता के पिता के रूप में कुमुद मिश्रा ने जो भूमिका निभाई है वो ऐसे पुरुष की है जो अपनी बेटी के साथ खड़ा है और ये कभी नहीं कहता कि ‘तुमको अपने पति के पास लौट जाना चाहिए। रत्ना पाठक शाह ने बिल्कुल साधारण गृहकाज करने वाली औरत लगी हैं। अनुभव सिन्हा की ये फिल्म सदियों से चली आ रही समझ और रिवाज को आईना दिखाने वाली है।



अपने हर कैरेक्‍टर की तरह इस बार भी तापसी पन्‍नू अमृता के कैरेक्‍टर में सटीक नजर आईं। खुशमिजाज महिला से लेकर उदास और अंदर से टूटी महिला के किरदार को तापसी ने पर्दे पर खूब जिया । तापसी ने इससे पहले भी गंभीर रोल निभाए हैं पर थप्‍पड़ की बात ही कुछ अलग है। फिल्‍म में उनका डायलॉग-
 'बस एक थप्‍पड़ पर नहीं मार सकता ।'



वकील- एक औरत को अपना घर जोड़े रखने के लिए थोड़ा बर्दाश्‍त करना पड़ता है...
अमृता (तापसी पन्नू) - जिस चीज को जोड़ना पड़े मतलब वो पहले से ही टूटी हुई है।