एंटन चेखोव की कहानी 'दि बेट'-
एक वृध्द साहूकार महाजन ने अपने घर एक दावत दी। उस पार्टी में एक से बढ़कर एक विद्वान व्यक्ति आए थे । फिर चल पड़ा रोचक बातों का दौर । विषयों के तानेबाने के बीच बात मृत्यु-दंड पर आ गई। मेंहमानों में कई विद्वान व्यक्ति तथा पत्रकार भी थे। जो मृत्युदंड के विरोध में थे और मानते थे कि यह प्रथा समाप्त हो जानी चाहिये क्योंकि वह सभ्य समाज के लिये अशोभनीय तथा अनैतिक है। उनमें कुछ लोगों का कहना था कि - मृत्युदंड के स्थान पर आजीवन कारावास की सजा पर्याप्त होनी चाहिये।
गृहस्वामी ने कहा -
''मैं इससे असहमत हूं। वैसे न तो मुझे मृत्युदंड का ही अनुभव है और न ही मैं आजीवन कैद के बारे मे ही कुछ जानता हूं। पर मेरे विचार में मृत्युदंड आजीवन कारावास से अधिक नैतिक तथा मानवीय है। फांसी से तो अभियुक्त की तत्काल मृत्यु हो जाती है पर आजीवन कारावास तो घुट-घुट के मृत्यु तक ले जाता है। अब बतलाइये किसको अधिक दयालू और मानवीय कहा जायेगा?
जो कुछ ही पलों में जीवन समाप्त कर दे या धीरे - धीरे तरसा-तरसा कर मारे ?''
एक अतिथि बोला '' दोनो ही अनैतिक हैं क्योंकि ध्येय तो दोनो का एक ही है। जीवन को समाप्त कर देना और सरकार परमेश्वर तो है नहीं? उसको यह अधिकार नहीं होना चाहिये कि जिसे वह ले तो ले पर वापिस न कर सके।''
वहीं उन अतिथियों मे एक पच्चीस वर्षीय युवा वकील भी था। उसकी राय पूछे जाने पर वह कहने लगा '' मृत्यदंड या आजीवन कारावास दोनो ही अनैतिक हैं।
किन्तु यदि मुझे दोनो में से एक को चुनने का अवसर मिले तो मैं तो आजीवन कारावास ही को चाहूंगा। न जीने से तो बेहतर हैं कि किसी तरह का जीवन हो उसे ही मैं बेहतर समझूंगा।''
इस पर काफी जोशीली बहस छिड गई। वह साहूकार महाजन जो कि गृहस्वामी था और उस समय जवान था और अत्यंत अधीर प्रकृति का था एकदम क्रोधित हो गया। ऊसने अपने हाथ की मुठ्ठी को जोर से मेज पर पटका और चिल्ला कर कहने लगा '' तुम झूठ बोल रहे हो। मैं शर्त लगा कर कह सकता हूं कि तुम इस प्रकार कारावास में पांच साल भी नहीं रह सकोगे।''
इस पर युवा वकील बोला '' यदि तुम शर्त लगाते हो तो मैं भी शर्तिया कहता हूं कि - पांच साल तो क्या मैं पन्द्रह साल भी रह कर दिखा सकता हूं।
बोलो क्या शर्त मंजूर हैं?''
'' वकील- पंद्रह साल। हां मुझे मंजूर है। मैं दो करोड रूपये दांव पर लगाता हूं।''
'' बात पक्की हुई। तुम दो करोड रूपये लगा रहे हो और मैं पंद्रह साल की अपनी स्वतंत्रता को दांव पर रख रहा हूं। अब तुम मुकर नहीं सकते।'' युवा वकील ने कहा।
कहानी बड़े रोचक अंदाज में 15 सालों का जो चित्रण करती हैं वह मानव जीवन का चित्रण हैं,
और अंत हमे जो शिक्षा देता है वह अदभुत हैं ।
बहुत सुंदर तरीके से इसका कई रंगमंच में प्रस्तुति भी हो चुकी।
कॅरोना के इस दौर में घर में रहने से बस यूं ही आजीवन कारावास की सुंदर मानवीय संवेदनाओं और मूल्यों पर आधारित कहानी जेहन में उतर जाती हैं।
साभार- हिंदीनेस्ट. कॉम› कहानी
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