मप्र कोरोना/ सरकार प्रैक्टिकल के तौर पर काम न करे और इससे भी कठोर कदम उठाए, केवल घोषणा न करे

भोपाल-


कोरोना वायरस के चलते सब सेवाभाव में लग गए अच्छी बात है और करनी भी चाहिए। कोई किसी को खाना तो कोई पैसा दे रहा हैं। कोई सरकार को दान कर रहा है । क्या सरकार के पास पैसा नहीं है? लेकिन क्या हम इस महामारी से ऐसे निकलेगें? क्या ये सरकार कि नकामी नहीं दिख रही?  बिना किसी प्लानिंग के सब एक दम कर दिया गया आखिर क्यों ? लोग जस के तस रह गए। जिनके घर में खाना है वो थाली पीट चुके है। अब वो थाली पीट रहे है जिनके पास न खाना है और न राशन के लिए पैसा। अस्पताल के हालत खराब है कहीं डॉक्टर नही है तो कहीं वेंटिलेटर नही । कुछ दिन पहले कि घटना है सारंगपुर सरकारी अस्पताल में केवल वेंटिलेटर न होने से एक माँ को अपना बच्चा खोना पड़ा। 
कोराना वायरस के कई ऐसे कई तथ्य है जो किसी आमजन के समझ से बहार है। समय ऐसा हो गया कि - न हँस सकते है न कुछ कर सकते है। हर वो व्यक्ति जो केवल न्यूज़  टेलीविज़न की केवल स्क्रिन देखकर सही गलत का अंदाजा लगाता है जबकि वो गलत होता है, यदि उस समाचार या डीबेट पर भरोसा भी करते हो तो । एक बार उसी टीवी की वेबसाईट पर जाकर पता करे और हर ख़बर जो आपने केवल टीवी या यूट्यूब पर कुछ देर का वीडियो देखा है, उसमें और उसी चैनल की वेबसाईट पर आपको अलग न्यूज़ मिलेगी। इसके लिए आपको पढ़ना पड़ेगा।


कोरोना वायरस चीन के एक शहर से निकलता है और धीरे-धीरे विश्व में फैल जाता है। लेकिन चीन के अन्य शहरों में नहीं फैलता और अब चीन ने उस पर काबू भी पा लिया है। अब यह क्यों और कैसे फैला? इससे किस देश को फायदा या नुकसान होगा? यह विषय ये नही है।
जब यह चीन से निकलकर फैल रहा था तब तक भारत सरकार को क्या इसका अंदाजा नहीं था कि ये वायरस हमारे देश में भी आ सकता है? यदि आ गया तो हमें इससे कैसे निपटा जाए? दो महिने पहले से इस कोरोना की ख़बरे आ रही थी। और भारत में सब सामान्य था इसका मतलब हम घटना घटने का इंतजार कर रहे थे। उसी घटनाक्रम में मप्र में राजनीति की उठा-पटक भी चल रही थी। और नोटबंदी जैसे ही प्रधानमंत्री कोरोना वायरस को लेकर भाषण देते है और एक दिन का जनता कर्फ्यू का ऐलान करते है। लोगों ने समझा और जस-का-तस हुआ। लेकिन कोई असर नहीं हुआ देर रात तक अलग-अलग जिले, प्रदेश से कर्फ्यू के दिन बढ़ाने के डीएम के आदेश आते है। करोड़ों लोग जहाँ थे वही रह गए। एक बार फिर भारत के प्रधानमंत्री जी जनता को संबोधित करते है और बिना किसी व्यवस्था व प्लानिंग के 21 दिन का भारत बंद का ऐलान हो जाता है। शासन - प्रशासन शख्त रूख में आ जाते है कढ़ाई से जनता से पालन कराते नज़र आते है। जैसा हम फोटो-वीडियों में देखते है। हम यह नहीं कहते है कि सरकार ने गलत किया व गलत निर्णय लिया है जनता व देश की भलाई के लिए हर निर्णय सही होता है लेकिन नोटबंदी, जीएसटी जैसे निर्णयों का क्या परिणाम रहा है? सब जानते है।
हर डॉक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर या आम नागरिक जब कोई काम करता है तो उसका स्ट्रेक्चर तैयार करता है, रिसर्च करता है उसके हर परिणाम से सबक लेकर बेहतर करने का प्रयास करता है। फिर ऐसी वस्तु पर प्रैक्टिकल करता है जिससे कोई हानि न हो।
इस तारतम्य मैं यह बताना चाहता हू कि मौजूदा सरकार ने बिना किसी व्यवस्था के हर बड़े फैसले जो देशहित की आड़ में केवल और केवल भारत की जनता को ही प्रैक्टिकल के रूप में उपयोग किया है। 
आज जो लोग बहार जिलों में, प्रेदेशों के बड़े शहरों व राजधानी में फँसे है, उनको घर जाने का मौका नहीं दिया वे सैकड़ों मील पैदल चलने को मजबूर हो गए। जनता को पर्याप्त राशन घर में भरने का समय नहीं दिया, जिससे वे भूखे नहीं मरते। फिर 21 दिन क्या वे और कई दिन लॉकडाउन में रहते। कोई बहार नौकर कर रहा, कोई पढ़ाई कर रहा था वे कुछ दिन की बात है कहकर वहीं रह गए और अब घर जाने को तरस रहे है। एक दिन की छुट देकर एक महिने का लॉकडाउन कर सकते थे ऐसा नही था की कोरोना ऑक्सीजन की तरह हवा में फैल जाता। अब भी फँसे हुए लोग रात में निकलकर आ रहे है और जैसी ही कोई ख़बर फैलती है सरकार की तरफ से घोषणाओं के फूल फैके जाते है लेकिन राहत नहीं मिलती । इसका तो यही अर्थ हुआ की आप हम जनता पर प्रैक्टिकल कर रहे है कि हम कितने लाचार व बेबस है और जैसा आप कहेगें हम वैसा ही करेगें। जो चींजे पहले हो सकती थी उन्हें तब किया जा रहा जब वो घटना हो चुकी है। (कहावत है- मरने के बाद क्या पानी पिलाना) ।
गरिबों के पास पैसा खत्म हो चुका है, सरकार घोषणा कर रही है कि आपके खाते में पैसा भेजा जाएगा और वह राहत का पैसा कुछ दिनों बाद भ्रष्टाचार में बदल जाता है। यह भी पहले किया जा सकता था । भारत सरकार के पास पर्याप्त समय था। 


मेरे द्वारा कुछ वेबसाईट पर इस वायरस की रिपोर्ट पढ़ी और कुछ आकड़े रविश कुमार के प्राईम टाईम ने दिखाए है। जो कि वास्तविक है लेकिन भारत के डॉक्टर और सरकारी अस्पताल और काम प्रति गम्भीरता तो हम सब जानते है। किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए हमारे पास पर्याप्त मेडिकल सुविधा, दवाई, हॉस्पिटल, डॉक्टर व स्टॉफ की जरूरत होती है। आज अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश कोरोना से झूझ रहा है वह कि सरकार वोंटिलेटर के लिए चिंतित है तो सोचे यदि यह हालात भारत में हो जाएगा तो क्या होगा, प्रकृति ऐसा न करे।  भारत के सरकारी अस्पताल में पलंग व डॉक्टर तक ठिक से नहीं मिलता है तो आपको वेंटिलेटर कैसे मिल जाएगा? और कोई आम आदमी प्राईवेट हॉस्पिटल का खर्च कैसे उठाएगा? 
आज एक सप्ताह हो चुका है जनता कर्फ्यू को और इस सप्ताह में सरकार ने प्रैक्टिकल के तौर पर नए-नए बयान आते है और आगे भी आते रहेगे। जैसा कि नोटबंदी व जीएसटी को लेकर आए थे और परिणाम शुन्य रहा था।


कोरोना वायरस कब तक भारत में रहेगा पता नहीं, लेकिन केन्द्र व राज्य सरकारों ने इसे रोकने के लिए कर्फ्यू के अलावा और क्या उपाय किया है। क्या भारत के पास इस वायरस के स्पेशन डॉक्टर, स्पेशल हॉस्पिटल है। क्या कोरोना वायरस के लिए चैक पोस्ट व बीमारी का पता लगाने के लिए पर्याप्त संसाधन है? या फिर अब खरीदेगे या व्यवस्था करेगे, यदि ऐसा हुआ तो आप जतना के लिए बिलकुल चिंतित नही है।
जो लोग फँसे हुए है भूखे है उनकी मदद के लिए भी आम लोग ही सामने आ रहे है उनको पैसा व भोजन कि व्यवस्था कर रहे है। लेकिन किसी ने सवाल नहीं किया कि सरकार ने इनके लिए कोई संसाधन क्यों नही जुटाए। 


बहार फँसे हुए लोग सूनसान सड़कों पर पैदल गांव की ओर चल दिए, कोई खाने-पीने और रास्ते मे ठहरने की सुविधा तक नही है। ऊपर से पुलिस कहीं डंडे मार रही है तो कही उठक-बैठक करवा रही है। कुछ को मुर्गा बना रही। कोई बेवजाह घुम रहे उनके लिए ठिक है लेकिन बिना किसी व्यवस्था व संसाधन के घर में बिठा दिया और जरूरी समान लाना हो तो भी पुलिस का डर रहता है। कोई किसी की चहते हुए भी मदद नहीं कर पा रहा है कही बहार निकलते है डंडे न खाने पड़ जाए। सरकार को हर पंचायत, तहसील स्तर पर वॉलेंटियर रखना था जो पुरा सुरक्षित हो। ताकि उसके माध्यम से लोगों को मदद मिल जाए और कोई डर न हो। यह दौर एक तरह से गुलामी की तरह दिखाई दे रहा है आप बस जिंदा रहे लेकिन आपके लिए कुछ नहीं है। इस कर्फ्यू का ज्यादा असर गरिब, मजदूर, किसान और जो बहार शहरों व प्रदेशों में काम करने वाले, छोटे दुकानदारों पर गहरा प्रभाव रहेगा। उनकी आर्थिक कमर टूट जाएगी। यदि सामाजिक तौर पर देखा जाए तो दलित-आदिवासी व गरिब पिछड़ो को झेलना होगा। क्योकि ज्यादातर इन्ही वर्गो के लोग गरिब व दिहाड़ी मजदूर है।
यह लेख जो मैने लिखा शायद सरकार को या उनके समर्थको को अच्छा न लगे, लेकिन यह सच्चाई है जो आज नही तो कल उजागर होकर रहेगी और उनके पास कोई जवाब नहीं होगा जैसा नोटबंदी पर चुप है। हम सरकार से अपील करते है कि इससे भी कठोर कदम उठाए न कि प्रैक्टिकल के तौर देखकर काम करे।
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कबीर मिशन समाचार 
मप्र संवाददाता रामेश्वर मालवीय 
84620 72516