मध्यप्रदेश सियासी संकट/ क्या मध्यप्रदेश में इतिहास दोहराने की तैयारी है??? कहीं राजमाता के पदचिन्हों पर तो नहीं सिंधिया ???

भोपाल-


कहते है इतिहास अपने आप को दोहराता हैं। मध्यप्रदेश की राजनीति में भी इन दिनों इतिहास की पुनरावृत्ति देखने को मिल सकती हैं। होली के एक दिन पहले सिंधिया समर्थकों का दिल्ली में जमावड़ा शायद इसी और संकेत दे रहा है। 1967 में मुख्यमंत्री डीपी मिश्र लगातार राजमाता विजयाराजे सिंधिया को जानबूझकर अपमानित कर रहे थे । कभी सीएम हाउस में बुलाकर इंतजार कराते, तो कभी राजमाता की बात को मखोल बनाकर हवा में उड़ा देते। तब पचमढ़ी में हुए कार्यकर्ता सम्मेलन में राजशाही पर हमला बोल दिया। 
क्षुब्ध राजमाता ने मन मारकर 35 विधायको को कांग्रेस से तोड़कर संघ और प्रजा सोसलिस्ट पार्टी के साथ मिलकर संविदा सरकार बनाई थी। खुद सदन की नेता बनी और गोविंदनारायन सिंह मुख्यमंत्री।


वर्तमान में भी सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका होने के बावजूद सरकार और मुखिया से बार-बार उपेक्षा का शिकार हो रहे सिंधिया ने जब सड़क पर उतरने की बात की तो डीपी मिश्र की तरह कमलनाथ ने भी बात को हवा में उड़ा दिया और जिसे आज भी सिंधिया अपना साम्राज्य मानते है। उस ग्वालियर में कमलनाथ कह आये की जिसे उतरना है सड़क पर उतर जाए यानी सिंधिया के गढ़ में सिंधिया को चुनौती?फिर तो सिंधिया पारा चढ़ना ही था।



होली के एक दिन पहले सरकार के 15 प्रतिशत विधायक सिंधिया के दिल्ली निवास पर थे और ये संख्या 35 तक जा सकती है।


राजनैतिक विश्लेषक की माने तो यदि संख्या बल 38 को छू गया तो संविदा सरकार के इतिहास की पुनरावृत्ति हो सकती है। फर्क ये होगा कि तब राजमाता ने किसी और को कमान सौंपी थी। अब ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद सीएम होंगे और जोरा से उपचुनाव भी लड़ सकते है। अब देेखना यह हैैं कि क्या मध्यप्रदेश में इतिहास दोहराने की तैयारी है??? 
कहीं राजमाता के पदचिन्हों पर तो नहीं सिंधिया ???


सिंधिया के दिल्ली निवास पर बड़ी सरगर्मी ,समर्थक विधायक,मंत्री मौजूद हैं।