लखनऊ-
गोरखनाथ कबीर से पहले हुए । कबीर ने गोरख की प्रशंसा में झड़ी लगा दी है ।
कबीर ने लिखा है कि गोरख की साखी अमर है। मैं तो मन को ही गोरख बना देना चाहता हूँ।
गोरख से तुलसी बहुत नाराज थे। वे मानते थे कि कलियुग लाने में गोरख की भी भूमिका है। ध्यान रखिए, तुलसी ने अपने पूरे साहित्य में हिंदी के सिर्फ एक कवि का नाम लिया है और वे कवि गोरख हैं । मगर तुलसी ने गोरख का नाम उनकी निंदा करने के लिए लिया है ।
शायद अब समझ गए होंगे कि गोरख वैचारिक रूप से कबीर के खेमे के कवि थे और यही कारण है कि हिंदी में गोरख को बदनाम करने के लिए गोरखधंधा जैसे शब्द का प्रचलन हुआ।
यह गोरखधंधा शब्द आगे चलकर यह साबित करेगा कि गोरखनाथ तिकड़मबाज कवि थे जो तिकड़म से अवैध कमाई किया करते थे। गोरखधंधा में यही भाव है।