भारत में कोइतूरों की स्थिति और उनकी भूमिका : डॉ सूर्या बाली “सूरज धुर्वे” 

 


 


भोपाल- हे भारत के कोइतूरों ! ज़रा सोचो, विचारो, समझो और खुद से पूछो की आखिर तुम कहाँ हो ??


भारतभूमि सदियों से अपनी कोइतूर संस्कृति, ज्ञान विज्ञान, धन सम्पदा, वैभव और संमृद्धि के लिए जानी  जाती रही है l हजारों वर्षों से इस धरा ने बाहरी आक्रमणकारियों, आतताइयों और लुटेरों के अन्याय और दमन के मंज़र देखा है और अपनी कोख के सपूतों की वीरता के प्रदर्शन भी अपनी आँखों से देखे हैं जो अपने स्वाभिमान, गौरव और सम्मान के लिए अपनी कोइतूरियन माटी पर बलिदान हो गए थेl  अपनी प्राकृतिक व्यवहार और सबको बराबर समझने वाले कोइतूरों ने हमेशा सबका इस धरती पर स्वागत किया और उन्हें आश्रय भी दिया लेकिन बाहरी लोगों की कोइतूरों पर शासन करने की हवस ने पूरे प्राकृतिक सामंजस्य और ताने बाने को नष्ट कर दियाl 


इन बाहरी आक्रमणकारियों और लुटेरों द्वारा बाहर से लायी गई सभी संस्कृतियों ने यहाँ की मूल कोयापुनेमी  संस्कृतियों को समूल नष्ट करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है l अपनी संस्कृति, सभ्यता और गौरव को बचाने के लिए यहाँ के मूलनिवासी कोइतूर, बाहरी आतताइयों के अप्राकृतिक कृत्यों का हमेशा विरोध करते रहे जिसके कारण टकराव की स्थिति बनती रही l अपने छल बल, कूटनीतिक और सामरिक रणनीतियों से बाहरी लोग(दिकु) धीरे धीरे यहाँ पर अपने पाँव ज़माने लगे यहाँ के मूल निवासी कोइतूरों के संसाधनों को अपने नियंत्रण में लेने लगेl 
सत्रहवी सदी में जब अंग्रेज आक्रमणकारी समुद्री किनारों को छोड़कर भारत के आन्तरिक हिस्सों में घुसने लगे तो सबसे ज्यादा विरोध यहाँ की मूलनिवासी कोइतूरों ने ही किया और इसके विपरीत पहले से आई अन्य बाहरी संस्कृतियों और धर्मों के मानने वालों ने अंग्रेजों का समर्थन और साथ दियाl सैकड़ों वर्षों तक कोइतूर समाज के लाखों वीरों ने अंग्रेजों का विरोध करते हुए अपने प्राण गवां दिए और गुमनामी के अंधेरों में खो गएl कोइतूरों को अपने ही देश में पहले से स्थापित बड़े दिकुओं और नए आक्रमणकारी अंग्रेजों,  दोनों से निपटन होता थाl 


इस देश के बाहरी तत्वों जिनमें हिन्दू और मुसलमान दोनों थे दोनों ने अंग्रेजों का साथ दिया और वे हमेशा मूलनिवासी कोइतूरों के खिलाफ रहे l इस तरह एक तरफ यहाँ के मूलनिवासी कोइतूर जातियां रहीं और दूसरी तरह बाहर से आई सभी धर्म और संस्कृतियाँ थीं l यहाँ की कोइतूर जातियां सैकड़ों वर्षों तक इस लड़ाई को लड़ते हुए अपना सब कुछ खोती चली गई लेकिन सीना ताने हुए अंग्रेजों के खिलाफ खड़ी रहीं l  धीरे धीरे अंग्रेजों की हिम्मत ढीली पड़ने लगी और वो जन जातियों से समझौते और सुलह पर उतर आयेl इस बात को देखते हुए जो हिन्दू मुसलमान और अन्य धर्मों के लोग जो पहले अंग्रेजों का साथ दे रहे थे वो अब धीरे धीरे पाला बदलने लगेl हिन्दू और मुसलमान जो कभी अंग्रेजों के बहुत घनिष्ट साथी और सलाहकार हुआ करते थे धीरे धीरे समझने लगे कहीं ये कोइतूर जनजातियाँ अंग्रेजों से सुलह करके यहाँ पर फिर से अपनी सत्ता स्थापित न कर लेंl



बड़ी चालाकी से कोइतूर जनजातियों के स्वतंत्रता आन्दोलन में  यहाँ के हिन्दू मुसलमान धुस गए और उस आन्दोलन के नेतृत्व को कोइतूरों से छीनकर अपने हाथों में ले लियाl  बड़ी चालाकी से अब वे खुद भी इन कोइतूरों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हो गए l इस तरह अब इस देश के तीन दावेदार मिलकर लड़ रहे थे और अंग्रेजों के भागने के बाद इन्ही तीनों को इस देश की सत्ता मिलनी चाहिए थी लेकिन दिकु हमेशा दिकु होता है वह कभी भी न्याय नहीं कर सकताl वक़्त बीतने के साथ साथ हिन्दू मुसलमान दोनों ने कोइतूर वीरों को और उनके योगदान को  भुलाना शुरू कर दिया और खुद उंगली कटा कर शहीद बनाने लगेl मुसलमानों ने अपना हिस्सा ले लिया हिन्दुओं ने अपना हिसा ले लिया और कोइतूरों का भारत पता नहीं कहाँ खो गया?  १९४७ में  सबके प्रयाशों से भारत आजाद हो गया लेकिन यहाँ का मूल मालिक कभी आजाद नहीं हो पाया बस अंग्रेजों से दमन और उत्पीडन की सत्ता खिसक कर  यहाँ के हिंदू और मुसलमानों के हाथों में आ गईl 


कोइतूरों को हासिये पर लाकर पूरा स्वतंत्रता  का आन्दोलन अपने हाथों में लिया और इस देश को आपस में बाँट लिया और दोनों ने सहमति से यहाँ के सभी संसाधनों पर कब्ज़ा कर लियाl और आज आप देख सकते हैं की हर तरह यही दोनों एक दूसरे के सामने खड़े हुए हैं और कभी यहाँ के मूल मालिक कोइतूरों की आवाज सामने नहीं आने देते और न ही कभी उनके मुद्दों की  बात करते हैंl जब भी यहं के मूलनिवासी कोइतूरों की बात होती है ये तुरंत हिन्दू मुस्लिम करते हुए दुनिया का ध्यान इनके मूल मुद्दों से भटका देते हैं और हर तरफ फिर हिन्दू मुस्लिम की बात शुरू हो जाती है और पूरी कहानी का रूख कोइतूरों से हटकर इन्ही दोनों की लडाइयों की तरफ चला जाता हैl 


कोइतूरों को इस द्वीपक्षीय सिस्टम को तोडना होगा और अपना पक्ष जोरदार से रखना होगा तभी इस देश के संसाधनों में भागीदारी सुनिश्चित हो पायेगी वरना ऐसे ही पिछलग्गू बने हुए धीरे धीरे ख़त्म हो जायेंगेl यह बात पूरी दुनिया को भी विशेषकर भारत के आम नागरिकों को भी समझनी होगी की ये भारत केवल हिन्दू और मुसलमानों का ही नहीं है और यहाँ पर और लोग भी हैं जिनका इस देश पर उनसे ज्यादा अधिकार और स्वामित्व हैl 
अगर हिन्दू मुस्लिम की द्वय (बाइनरी ) को त्रीपक्षीय नहीं बनाया गया और यहाँ का कोइतूर मात्र मूक दर्शक बना रहा तो उसकी धर्म संस्कृति सभ्यता की तरह उसका अस्तित्व भी खतरे में पड़ जायेगा l यह विचार आज के दौर में बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो चुका है l  पूरे कोइतूर समाज को इस पर गंभीरता से सोचना होगा कि  कैसे आज की इस द्वीपक्षीय व्यवस्था को त्रीपक्षीय  बनाकर अपनी उपस्थिति को दुनिया के सामने रख सके और अपने अधिकारों की बात कर सकेl 


डॉ सूर्या बाली “सूरज धुर्वे” 
कोयापुनेमी चिंतनकार और कोइतूर विचारक