(संत गाडगे बाबा जन्मोत्सव विशेष) -
(23/02/1876 से 20/12/1956)
संत गाडगे बाबा का जन्म 23 फरवरी 1876 को जिला- अमरावती (महाराष्ट्र) के अंजनगांव सुरजी तहसील के शेणे गाँव में एक धोबी (वारकरि- सम्प्रदाय) में हुआ | उनके पिता झिंगराजी तथा माता सखुबाई महाराष्ट्र के ही मूलनिवासी थे | इनका पूरा नाम देवीदास झिंगराजी जानोरकर था जो आगे चलकर संत गाडगे बाबा कहलाये |
वे एक गरीब व अशिक्षित परिवार से थे क्योकि उस समय जातिभेद तथा रंगभेद कि भावना देश में चरम पर थीं |
संत गाडगे बाबा 1905 में 29 वर्ष की अल्प आयु में ही अपना भरा-पूरा परिवार छोडकर अपने घर से एक घुमक्कड भिक्षुक के रूप में जो निकले तो फिर लौटकर वापस नहीं आये |
अपने 50 वर्ष के सार्वजनिक तथा समाज सुधारक जीवन में वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर पैदल चलकर जनकल्याण के साप्ताहिक कार्यक्रम कर ग्रामीणो को अंधश्रध्दा,अन्धविश्वास,शिक्षा और साफ-सफाई के प्रति जागरूक करते थे |
संत गाडगे बाबा सदैव पैरो में फटी-टूटी चप्पल,सिर पर मिट्टी का आधा टूटा हुआ कटोरा रखकर ही कीर्तन करते थे , इसलिए लोग उन्हें गाडगे महाराज कहकर पुकारते थे|
जब भी उनका आगमन किसी गाँव में होता तो वे तुरंत हाथ में रखी झाडू से गाँव के रास्तो को साफ करने लग जाते और काम खत्म कर स्वयं को बधाई भी देते |
वे अंधविश्वास पर कडा प्रहार करते हुए कहते - संतान प्राप्ति के लिए लोग मंदिरो,तमाम देवघरो, चर्च ,गुरूद्वारो तथा मस्जिदो के चक्कर लगाते हैं और फिर झाड-फूंक के फिराक में बाबाओ और फकीरो के पास जाते और गरीब होते जाते हैं लेकिन इस बीमारी से ठीक होने के लिए इलाज नहीं करना चाहते हैं |
वे लोगो से पूछ बैठते कि क्या इन झाड-फूंक करने वाले लोगो के घर के लोग नहीं मरते हैं क्या ?
जब वे अपने घर के ही लोगो को नहीं बचा सकते तो तुम्हारा रोग कैसे ठीक कर पायेंगे |
संत गाडगे बाबा ने जीवन भर चमत्कार का विरोध किया,परंतु उस समय भी चमत्कार पर विश्वास रखने वालो ने उन्हें नही छोड़ा | लोगो ने अफवाह फैलायी की संत गाडगे बाबा कीर्तन के बाद हवा में विलीन हो जाते हैं, वे हवा में तैरते हुए सैकडो मील तक चले जाते हैं और एक ही समय में कई स्थानो पर देखे जा सकते हैं | इस पर संत गाडगे बाबा प्रतिक्रिया देते हुए कहते की कीर्तन के बाद वे किसी अंधेरी जगह पर इसलिए छिप जाते हैं ताकी लोग उन्हें पैर छूने के लिए तंग न करे |
वे चमत्कार के विरोध में कहते - यदि कोई गुप्त शक्ति से किसी को नष्ट कर दे तो अवश्य ही उसका स्थान ईश्वर से उंचा होना चाहिए,क्या ऐसे आधे दर्जन लोगो को युध्द के मैदान में उतार देना पर्याप्त नहीं होगा जो अपनी इस प्रकार की शक्ति से राइफल,बंदूक,बम और बारूद से भरी तोपो को नाकाम कर दे |
संत गाडगे बाबा हमेशा अपने कीर्तनो में कहते - लोग कहते हैं कि सपने में मैंने भगवान का दर्शन किया हैं - हाथ में शंक,चक्र, गदा और सभी साज समान के साथ वे विराजमान थे |
बाबा कहते जो हम मन में सोचते रहते हैं वही हमें सपने में दिखती हैं |
वे लोगो से पूछते - मेरे बाप को आपने क्या कभी देखा हैं ? लोगो से जवाब मिलता - नहीं, तो वे कहते जो देखा ही नहीं,वह दिखता नहीं |
गाँव में कीर्तन में लोग उन्हें पैसे देते थे परंतु इस महापुरूष ने लोगो से प्राप्त दान के पैसो से कभी एक कुटिया तक नहीं बनायी अपितु 31 शिक्षण संस्थाओ की स्थापना की जिसमें 10 आश्रम, 8 - स्कूल आदिवासियो के लिए , पिछडा एवं घुमक्कड जातियो सहित महिला आश्रमो का भी निर्माण कराया |
संत गाडगे बाबा कहते-
अपने बच्चो को पढाओ | तुम कहते हो पैसा नहीं हैं तो खाने की थाली बेच डालो,चाहे तो हाथ में रोटी रखकर खाओ | अपनी पत्नी के लिए सस्ती साडियां खरिदो,रिश्तेदारो की खातिरदारी में ज्यादा पैसा न उडाओ बल्कि बच्चो को पाठशाला में शिक्षा ग्रहण करने जरूर भेजो |
संत गाडगे बाबा का डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर से गहरा लगाव था, वे डॉ. बाबा साहेब के प्रबल प्रशंसक और समर्थक थें इसलिए गाडगे महाराज ने बाबा साहेब को अपने ट्रस्ट का ट्रस्टी भी बनाया था |
डॉ . आम्बेडकर की 6 दिसम्बर 1956 को हुई मृत्यु का सदमा वे सहन न कर पाये और उनकी मृत्यु बलगांव (अमरावती) के निकट 20 दिसम्बर 1956 को हुई |
महाराष्ट्र सरकार ने "संत गाडगे बाबा ग्राम स्वच्छता अभियान" का शुभारंभ सन् 2000-01में किया | जो ग्राम स्वच्छ होते हैं उन्हें यह पुरस्कार संत गाडगे बाबा के नाम पर दिया जाता हैं |
भारत सरकार ने गाडगे महाराज का सम्मान करते हुए अमरावती यूनिवर्सिटी का नाम -संत गाडगे बाबा अमरावती विधापीठ रखा |