◆ अवंती हैं मालव जनपद का प्राचीन नाम हैं
◆ गौतम बुद्ध के समकालीन थे अवंती के शासक चंद्रप्रद्योत
◆ बिंदुसार और सम्राट अशोक के समय अवंती, मगध साम्राज्य का प्रधान मध्यवर्ती प्रांत था
◆ बौद्ध काल में अवंती उत्तरभारत के शोडश महाजनपदों में से थी जिनकी सूची अंगुत्तरनिकाय में हैं
युवा काफिला, भोपाल-
जनप्रवर्तक संघ दिघी, पुणे की ओर से एक वेबिनार आयोजित किया गया। जिसमें विक्रम विश्विद्यालय के भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययन शाला के विभागाध्यक्ष डॉ रामकुमार अहिरवार ने भारतीय बौद्ध संस्कृति और उज्जैन में बौद्ध धम्म के महत्व पर वक्तव्य दिया। जिसमें उन्होंने कहा कि बुद्ध काल में कुल 16 महाजनपद थे जिनमें अवंति जनपद अपना विशेष महत्व रखता था। सम्राट अशोक ने 11 वर्ष तक अवंती पर शासन किया और यह बौद्ध धम्म के प्रचार प्रसार का महत्वपूर्ण केंद्र बना। तक्षशिला विजय के बाद अवंति का नाम बदलकर उज्जयिनी कर दिया गया क्योंकि सम्राट अशोक की तक्षशिला पर विजय उत्कर्षपूर्ण थीं। महाकारुणिक बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद उनका चीवर और आसंदी अवंती प्रदेश को प्राप्त हुआ था जिस पर आगे चलकर स्तूप बनाया गया। बुद्ध के जीवनकाल में चंद्रप्रद्योत नामक सम्राट सिंहासनारूढ़ थे। उनके मंत्री आचार्य महाकात्यायन गौतम बुद्ध को उज्जैन लाने हेतु गए परंतु अस्वस्थता वश वे नहीं आ पाए, महाकात्यायन जी ने बुद्ध के पास रहकर धम्म का प्रशिक्षण लिया और स्वस्थ होने पर पुनः तथागत से अवंती चलने का आग्रह किया परंतु तथागत ने उन्हें कहा अब आप स्वयं सम्राट चंद्रप्रद्योत को धम्म समझा सकते हैं और फिर लौटकर अवंती जनपद में धम्म का भरपूर प्रचार-प्रसार किया। यहीं से भिक्खुणी संघमित्रा, बौद्ध धम्म को श्रीलंका तक बोधिवृक्ष के साथ ले गई तथा उनके साथ मध्यप्रदेश से कई भिक्खुनियां भी गई। यही से भिक्खु संघ को तथागत से पांच नियमों में परिवर्तन करना पड़ा जिनमें चप्पल पहनने, अतिरिक्त चीवर रखने की अनुमति विशेष रही।
मध्यप्रदेश के प्रमुख बौद्ध स्थलों की विशेषता के साथ वैश्य टेकरी को विस्तार से समझया गया। साथ ही वर्तमान कई वैज्ञानिकवाद पर और पुरातात्विक स्थलों पर विशेष चर्चा की गई कि वे किस प्रकार बौद्ध धम्म से सम्बंधित रहे। इस वेबिनार में 100 से अधिक लोग जुड़े रहे जो सम्पूर्ण भारत से थे। जिन्होंने बौद्ध विरासत और बुद्ध धम्म से सम्बंधित कई प्रश्न डॉ अहिरवार जी से किये और जिनका सविस्तार जवाब डॉ अहिरवार जी के द्वार दिया गया। संचालक सुमेध थोरात ने कहा कि सभी को बौद्ध धम्म ऐतिहासिक दृष्टिकोण से सीखने को मिला। संचालक द्वारा डॉ अहिरवार को धम्म की अलख जगाने और बौद्ध धम्म का इतिहास पर साहित्य लिखने और निरन्तर धम्म के प्रचार प्रसार करने के लिए साधुवाद ज्ञापित किया गया।