युवा काफिला, भोपाल-
◆ डॉ हेमंत एम. तिरपुड़े सर की मराठी का हिंदी अनुवादित स्वरूप प्रस्तुत है
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1️⃣ समस्या - ये मान लिया गया है कि आरक्षण ये जाति पर आधारित है।
लेकिन ऐसा बिलकुल नही है आरक्षण जाति पर आधारित नही बल्कि आरक्षण का आधार है ID3,
I - Inequality, (असमानता का व्यवहार करना)
D - Discrimination, (भेदभाव करना)
D - Deprivation, ( हक-अधिकारों से वंचित रखना)
D - Denial of opportunities (किसी भी प्रकार के अवसर को नकारना)
इसी कारण से समाज के एक बहुत बड़े वर्ग में सामाजिक और शैक्षणिक रूप में पिछड़ापन का निर्माण हुआ। कि आरक्षण जाति पर आधारित है ऐसा बताकर SC/ST/OBC के लोगो के मन में खुद को कम आंकना (Humiliation), हीन भावना (Inferiority), तथा अपराधबोध की भावना (Guilt) निर्माण की जाती है जिससे वे अपना आत्मसम्मान और आत्मविश्वास खो देते हैं।
इसका परिणाम स्वरूप वे अपना ध्यान पढ़ाई पर लगा नही पाते है और इनके परफॉरमेंस पर भी विपरीत परिणाम होते है।
🔹उपाय🔹 - आरक्षण जाति पर आधारित है ऐसा बोलना, ऐसा प्रसार प्रचार करना और ऐसा मानना यह सभी एट्रोसिटी एक्ट के अंतर्गत कानूनन जुर्म माना जाना चाहिए।
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖2️⃣ समस्या - आरक्षण का लाभ उठाने के लिए जारी किए गए प्रमाण पत्र का शीर्षक
अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र है जो कि गलत संदेश देता है कि आरक्षण जाति पर आधारित है।
🔹उपाय🔹 जारी किए गए प्रमाण पत्र का शीर्षक
सामाजिक न्याय के लिए प्रमाण पत्र (Certificate for Social Justice ) ~ (CSJ) ऐसा होना चाहिए।
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3️⃣ समस्या - केंद्रीय / राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण के परिणामस्वरूप आरक्षण नीति की समाप्ति हुई है और SC/ST/OBC के प्रतिनिधित्व का नुकसान हुआ है।
🔹उपाय🔹 - Profit making उद्योगों के निजीकरण को रोका जाना चाहिए, सरकारी उद्योग जो लापरवाही के कारण भारी वित्तीय नुकसान उठा चुके हैं, उनके राजनीतिक निर्णय प्रक्रिया और प्रबंधन को दंडित किया जाना चाहिए और निजीकरण के पहले नए प्रबंधन को पर्याप्त समय देना चाहिए। स्थिति में सुधार न होने पर ही उद्योग का सशर्त निजीकरण किया जाना चाहिए।
🔺 पहली शर्त - निजीकरण के बाद भी आरक्षण नीति जारी रहेगी,
🔺 दूसरी शर्त - यदि उद्योग निर्धारित अवधि के भीतर निर्धारित Profits हासिल नहीं करता है, तो सरकार इसे फिर से अधिगृहित कर लेगी।
अब तक जिन उद्योगों का निजीकरण हो चुका है, अगर उनमें पिछड़ी श्रेणियों की संख्या कम है, तो तुरंत आरक्षण नीति लागू किया जाना चाहिए।
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4️⃣ समस्या - सरकारी कार्यालयों में, विभागों में, Contract / Outsourcing प्रणाली को अपनाने के कारण, आरक्षण नीति को समाप्त कर दिया गया और SC/ST/OBC के प्रतिनिधित्व को नष्ट कर दिया गया।
भले ही यह कर्मचारी सरकारी काम कर रहे हों, लेकिन फिर भी वे सरकार के सभी लाभों से वंचित हैं।
🔹उपाय🔹- सरकारी कार्यालयों, विभागों, Contract / Outsourcing प्रणाली को बंद किया जाना चाहिए तथा पर्याप्त नियुक्तियां करनी चाहिए।
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5️⃣ समस्या - सरकारी कार्यालयों में संवैधानिक आरक्षण नीति का गलत तरीके से क्रियान्वयन होता रहा है।
किसी भी प्रकार के (Relaxation) रियायत का लाभ न लेकर जो SC/ST/OBC जनरल मेरिट श्रेणी में चुने जाते है उन्हें आरक्षित श्रेणी में दिखाया जाता है, जैसे कि Open श्रेणी की सीटों पर पात्रता होने के बावजूद भी उनके आवेदन स्वीकार नहीं किये जाते।
🔹उपाय🔹 - संवैधानिक आरक्षण नीति के गलत कार्यान्वयन को एट्रोसिटी अधिनियम के तहत अपराध घोषित करना चाहिए।
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6️⃣ समस्या - विश्वविद्यालयों में OBC में एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर पद के लिए कोई आरक्षण नहीं है।
🔹उपाय🔹 - संबंधित राज्य और केंद्र के कानून में संशोधन करके OBC के लिए इन पदों पर आरक्षण का प्रावधान किया जाना चाहिए।
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7️⃣ समस्या - तमिलनाडु राज्य को छोड़कर किसी भी राज्य और केंद्र में OBC को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण नहीं दिया गया है।
🔹उपाय🔹 - संसद को संविधान में संशोधन करके OBC को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने वाला कानून पारित करना चाहिए।
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8️⃣ समस्या - OBC को 1992 में केंद्र सरकार की सेवाओं में आरक्षण मिला और 2006 में केंद्रीय शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण मिला। अर्थात् OBC वर्ग को संविधान (1950) लागू होने के पश्चात केंद्रीय सेवा में 42 साल और केंद्रीय शैक्षिक संस्थानों में 56 साल तक वंचित रहना पड़ा, जिसके परिणाम स्वरूप OBC की कई पीढ़ियों का स्थायी रूप से नुकसान हुआ। और OBC वर्ग को इस स्थायी नुकसान का अभी तक कोई भी मुआवजा नहीं मिला।
🔹उपाय🔹 - संसद को इस स्थायी नुकसान के बदले में OBC वर्ग को मुआवजा देने के लिए एक कानून बनाना चाहिए।
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9️⃣ समस्या - SC/ST/OBC यही केवल तीन संवैधानिक श्रेणियां हैं। NT एवं DNT की कोई संवैधानिक श्रेणी नहीं है इसलिए NT/DNT को केंद्रीय स्तर पर OBC माना जाता है। इसलिए NT DNT का केंद्रीय स्तर पर नगण्य प्रतिनिधित्व है।
🔹उपाय🔹 - NT/DNT श्रेणी को संवैधानिक दर्जा देने के लिए और उन्हें केंद्रीय स्तर पर स्वतंत्र आरक्षण का प्रावधान करने के लिए संसद ने संविधान संशोधन करना चाहिए।
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🔟 समस्या - SC/ST के लिए संविधान में प्रावधान है कि विधानमंडल (संसद, राज्य विधानमंडल) में प्रतिनिधित्व दिया जाए लेकिन ओबीसी के लिए नहीं। SC/ST/OBC वर्ग के लिए कार्यकारी (केंद्र सरकार, राज्य सरकार) और न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व करने के लिए संविधान में कोई प्रावधान नहीं है।
🔹उपाय🔹 - संसद ने SC/ST/OBC वर्ग को कार्यपालिका और न्यायपालिका में भी प्रतिनिधित्व मिलने के लिए संविधान संशोधन करना चाहिए।
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(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। ये जरूरी नहीं कि युवा काफिला समाचार पत्र इससे सहमत हो। इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है।)