बाबा तेरा मर्म न जाना !! - डॉ सूर्या बाली “सूरज धुर्वे” 

परिनिर्वाण विशेष-
किसी भी महान शख्शियत या महापुरुष के लिए उससे बुरा दिन कोई नहीं हो सकता जिस दिन उसके चाहने वाले उसके बताये गए रास्ते से भटक जायें और किसी अन्य गलत रास्ते पर चलने लगें।
आज कमोवेश कुछ ऐसा ही बाबा साहब के साथ भी हो रहा है बाबा साहब ने जिंदगी भर जिन कर्मकांडों का विरोध किया और जिनके विरोध में पत्थर की दीवार की तरह खड़े रहे आज उन्ही के भक्त उन्ही चीजों को अपनाकर बाबा साहेब की आत्मा को रौंद रहे हैं और उनके आदर्शों और विचारों का खुल्लमखुल्ला मज़ाक उड़ा रहे हैं।
बाबा आज आपका महापरिनिर्वाण दिवस है। आज पूरे दिन भर लोग आपकी तस्वीरों और मूर्तियों को फूल माला अगरबत्ती धूप से पाट देंगे लेकिन बहुत कम होंगे जो आपके बताये रास्ते पर चलने का प्रण लेंगे और आपकी २२ प्रतिज्ञाओं का पालन करेंगे।
बाबा साहेब ने कहा था कि हमें अलग-अलग जाति को छोड़कर सबको एक धागे में पिरोकर रहना होगा। बाबा साहेब ने तीन मंत्र दिए थे, शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो । अगर सभी बहुजन एक होकर इस विचारधारा पर चलेंगे तभी देश में एकता आएगी और हम ब्राह्मणवाद के खिलाफ खड़े हो पाएंगे लेकिन आज ज्यादातर बहुजन लोग बिलकुल इसके उलट कार्य कर रहे हैं। 
वे अपने निजी स्वार्थों, अनावश्यक अहम्, झूठी शान और पद प्रतिष्ठा के चक्कर में बाबा द्वारा बताये क्रम में न बढ़ कर बेतरतीब बढ़ रहे हैं इसलिए सफलता से कोसों दूर हैं। अगर आज संघर्ष कर रहे लोगों को देखें तो कम पढ़े लिखे लोग ही सड़क पर उतर रहे हैं और जो पढ़े लिखे लोग हैं वो संगठित  नहीं हो रहे हैं और छोटे छोटे संगठन बनाकर संघर्ष करने की नौटंकी कर रहे हैं। जबकि बाबा साहेब ने कहा था की पहले स्तर पर शिक्षित बनों फिर दूसरे स्तर पर अपनी तरह के शिक्षित लोगों को संगठित करो और जब बेहतरीन संगठन बन जाए तब तीसरे स्तर पर जाओ यानि कि अपने हक़ और अधिकार के लिए संघर्ष करो। अगर ऐसा करोगे तो एक न एक दिन सफलता अवश्य मिलेगी लेकिन आज बाबा साहेब की आत्मा भारत के बहुजनों के इस उलट रवैये को देख कर बहुत ज्यादा दुखी होगी।



आज बहुजन समाज में जिस तरह से छोटे छोटे संगठन कुकुरमुत्ते की तरह उग आये हैं वो बाबा साहेब के सपनों को बर्बाद करने पर तुले हैं। इस स्व-तुष्टिकरण के मर्ज से आज बहुजनों को बचाना होगा और पढ़े लिखे लोगों को एक बड़े मंच से जुड़ना होगा जो सभी भारतीयों का प्रतिनिधित्व कर सकता हो।
अपने अंतिम दिनों में बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि मेरे बच्चों मैंने जिस कारवां को इतनी मुश्किलों के बाद इस जगह तक लाया है इसे कभी बिखरने मत देना और हो सके तो इसे आगे बढ़ाते रहना लेकिन कभी भी पीछे मत जाने देना। लेकिन आज हम सभी बहुजन क्या कर रहे हैं ? बाबा साहेब के बताये गए मन्त्रों  का खुल्लमखुल्ला उलंघन कर रहे हैं और अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग गा रहे हैं।
आइये समझते हैं कि बाबा साहब ने किसे कारवां कहा था और किसे मंजिल कहा था? बाबा साहेब इस देश में ब्राह्मणवाद को पोषित करने वाली जातिवादी व्यवस्था के बिलकुल खिलाफ थे वे कहते थे बिना जातियों का समूल नाश किये बहुजनों का हित और विकास संभव नही है। उन्होंने बड़ी गहराई से भारत में व्याप्त जातिवाद का अध्ययन किया और उसके खतरनाक परिणामों से दुनिया को अवगत कराया और पूरे जीवन भर जातिवादी व्यवस्था और ब्राह्मणवाद से लड़ते रहे। बाबा साहेब अपने अथक प्रयाशों से भारत की 6000 से ज्यादा जातियों में बंटे बहुजन समाज को तीन वर्गों तक ले आये (ओ.बी.सी, एस.सी, एस.टी) और उनका लक्ष्य था कि यहाँ से आगे की प्रक्रिया द्वारा इन तीनों को एक किया जाना था और उसे शैक्षिक और समाजिक रूप से पिछड़ा वर्ग (बहुजन समाज) कहा गया। पूरी भरतीय मूल निवासियों (कोइतूरों) को एक साथ रखना ही कारवां का मंजिल तक पहुँचाना था जो उनकी असामयिक और दुखद मृत्यु के कारण आधे रास्ते में ही अटक गया। बाबा साहब को इसी बात का डर था कि कहीं उनकी मृत्यु के बाद एस.सी, एस.टी और ओ.बी.सी फिर से अपनी जातीय अस्मिता में फंसकर पीछे न जाने लगे और इसी को उन्हों कारवां को पीछे जाना कहा था।  
आज बाबा साहब की आत्मा बहुत दुखी होगी ये देख कर कि जिस बात के लिए उन्होंने पूरे जीवन बहुजनों को चेताया था आज बिलकुल वही हो रहा है। बहुजन लोग बाबा साहब के द्वारा बताये गए रस्ते से बिलकुल अलग रास्ता अख्तियार कर लिए हैं और अपनी अपनी जातियों के गुण गा गा कर जातीय नेतृत्व के अहम् में अपना और अपने समाज का सर्वनाश कर रहे हैं। आज कोई यादव के, कोई पटेल, कोई कुशवाहा, कोई पासी, कोई महार, कोई चमार, कोई  जाटव तो  कोई गोंड, भील, संथाल, मुंडा इत्यादि जातियों के नाम पर संगठन चला रहा है और जातीय नेता बनकर अपने आप को महान समझ रहा है जबकि उसे पता नहीं है कि ऐसा करके वो पूरे बहुजन समाज की एकता के लिए खतरा बन रहा है और उसी डाल को काट रहा है जिस खुद बैठा हुआ है।



लेकिन आज बाबा साहब के ज़्यादातर भक्त उनको माला फूल पहना कर, अगरबत्ती धूप देकर, थोड़ी भाषणबाज़ी और उनके गीत गाकर अपने कर्मों की इतिश्री समझ लेंगे। मुझे तो बहुत डर लग रहा है ! बाबा साहेब के भक्त ही उनके कारवाँ को पीछे ले जा रहे हैं जिसका अंदेशा उन जैसे दूरदर्शी महामानव को बहुत पहले ही हो गया था।
आइये बताते हैं कि ये मूरख ऐसा क्यों करते हैं? लोगों को बाबा साहेब के विचारों और प्रतिज्ञाओं का अनुपालन करते हुए  कारवाँ के साथ चलने में बड़ी परेशानी होती है। एक बात और सच है कि बाबा साहब के बताये गए और बनाये गए कारवां को आगे ले जाने में बड़ा कष्ट सहना पड़ता है, बहुत त्याग करना होता है, बहुत समर्पित होना पड़ता है, अपनी और अपने परिवार की महत्वाकांक्षाओं को पीछे छोडना पड़ता है लेकिन इन आराम तलब और स्वार्थी लोगों से ये सब कहाँ होता है? ये लोग अपने नौकरी पेशे, घर परिवार और ख़ुद के आन बाँन में इतना मशगूल होते हैं कि इन्हें बाबा साहब के कारवाँ के बारे में सोचने की फ़ुर्सत कहाँ हैं? 
अब इन्हें समाज के सामने भी कुछ न कुछ तो करके दिखाना भी है क्यूंकि बाबा द्वारा दिए गए अधिकारों के कारण ही ये आज इस जगह तक पहुंचे हैं। अब चालक और स्वार्थी बहुजनों ने एक नया तरीका अपना है बाबा साहब को पूजने का  जिसके खिलाफ खुद बाबा साहब हुआ करते थे। किसी की पूजा करना बड़ा आसान और कम समय में ही कार्यक्रम हो जाता है और ज्यादा माथापच्ची भी नही करनी पड़ता है। जल्दी से इन पूजापाठ और माल्यार्पण के कार्यक्रमों से मुक्त होकर फिर से अपने रोजमर्रा के कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं।
हे बाबा ! ये भारत के बहुजन बड़े चालक लोग हैं चूंकि इन्हे दिखाना भी है कि ये आपको और आपकी शिक्षा को मानने वाले हैं तो ये कुछ न कुछ कर्मकांड करके आपको खुश करना चाहते हैं और दुनिया की नज़र में अंबेडकरवादी बनना चाहते हैं लेकिन आपके कारवां के लिए जरूरी चीजें बिलकुल नहीं करेंगे। 
हम सभी जानते हैं कि इस देश में जब कुछ न कर सको तो एक कर्मकांड करके अपने दिल को तसल्ली तो दे ही सकते हो कि जितना मेरे बस में था किया और क्या कर सकता था? बस यही काम आज के दिन आपको चाहने वाले भी कर रहे हैं। उन सभी को लग रहा है कि आपकी तस्वीर और मूर्ति को पूज लेने से आपकी अंतिम इच्छा पूरी हो जाएगी और आपका कारवां अपनी मंजिल तक पहुँच जाएगा। 
हे बाबा आप इन्हें माफ़ करना !! ये आपकी नही अपनी इच्छा पूरी कर रहे हैं और शॉर्ट कट रास्ते से अपने कर्तव्य की इतिश्री कर रहे हैं क्यूँकि इनसे इतना कठिन, मुश्किल सफ़र इन आराम तलब लोगों से नही चला जा रहा है। जब इनसे एक सच्चे मुसाफिर की तरह कारवां का हिस्सा नहीं बना जाता तो ये बड़ी चालाकी से आपकी तस्वीर टाँगकर, मूर्ति बनाकर, मंदिर बनाकर  आपको पूजने लगते हैं। 
बाबा साहब ने सम्पूर्ण जीवन जिस कर्मकांड का विरोध किया आज उनके भक्त उन्ही कर्मकांडों में आकंठ डूबे जा रहे हैं हैं। उनको लगता है कि घर में, आफिस में बाबा साहब की तस्वीर टाँग कर उन्होने अंबेडकरवाद का सफर पूरा कर लिया।  आज के दिन मुझे इतनी बात तो समझ आ गई है की आज के बहुजन दुनिया को बस  दिखा रहे हैं कि वे बाबा साहब के कारवाँ के मुसाफ़िर हैं जबकि वे केवल मूक दर्शक और भक्त मात्र हैं जिन्हें बाबा साहब के कारवाँ और उसकी मंज़िल की चिंता नही है।
आज बाबा साहब की 63वीं पुण्यतिथि पर मेरी सभी बहुजनों से विनती है कि वे अपने अधिकारों के साथ साथ ईमानदारी से बहुजन समाज के लिए काम भी करें और बहुजन होने का अर्थ समझे तभी बाबा साहब का बहुजन भारत का सपना पूरा हो सकेगा। 
जय भीम ! 
डॉ सूर्या बाली “सूरज धुर्वे”